कोरोना के इलाज के लिए जारी पतंजलि की आयुर्वेदिक दवा कोरोनिल पर एक बार फिर विवाद बढ़ गया है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) ने दवा के क्लीनिकल ट्रायल व उसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाए हैं। साथ ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन के प्रति नाराजगी जाहिर की है। आइएमए ने उन पर भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) के नियमों को तोड़ने का आरोप लगाया है और कई सवाल पूछे हैं। आइएमए ने कोरोनिल को बहकाने वाली दवा करार दिया है।

एसोसिएशन के महासचिव डा. जयेश एम लेले ने कहा कि एक निजी कंपनी की आयुर्वेदिक दवा को जारी करने के लिए डा. हर्षवर्धन सहित दो केंद्रीय मंत्री मौजूद थे। उस कार्यक्रम में यह दावा किया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे प्रमाणित किया है, जबकि डब्ल्यूएचओ का कोई प्रमाणपत्र चिकित्सा जगत के बीच मौजूद नहीं है। डब्ल्यूएचओ यूं ही किसी दवा को प्रमाणपत्र जारी नहीं करता। उसके लिए कुछ मानक हैं। यह लोगों को बहकाने की दवा है। इससे बीमारी ठीक होने के बजाय और बढ़ेगी।
डब्ल्यूएचओ के दक्षिणी पूर्व एशिया क्षेत्रीय कार्यालय ने अपने ट्विटर हैंडल से तीन दिन पहले ट्वीट कर कहा भी है कि डब्ल्यूएचओ ने पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के किसी भी दवा की समीक्षा नहीं की है और न ही प्रमाणित पत्र ही जारी किया है। उन्होंने कहा कि डा. हर्षवर्धन खुद डाक्टर हैं, इस नाते एमसीआइ में पंजीकृत हैं। इसलिए ड्रग एंड कास्मेटिक एक्ट के तहत किसी दवा को प्रोत्साहित नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस दवा को जारी करने के आयोजित कार्यक्रम में दावा किया गया कि यह कोरोना के इलाज के साथ-साथ बचाव में भी कारगर है। ऐसी स्थिति में लोग टीका नहीं लेंगे। इससे टीकाकरण अभियान प्रभावित हो सकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को यह बताना चाहिए कि इस दवा का ट्रायल कब और कितने लोगों पर किया गया। ट्रायल का पूरा साक्ष्य लोगों के बीच रखा जाना चाहिए।
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