उत्तराखंड में 877.65 करोड़ का गड़बड़झाला, कैग की रिपोर्ट में खुलासा

भारत के महानियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने उत्तराखंड में विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन और विभागीय कार्यों में 877.65 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता पकड़ी है। यह गड़बड़झाला वित्तीय वर्ष 2012-13 से लेकर वर्ष 2016-17 के बीच किए गए कार्यों का है। 

प्रधान महालेखाकार एस. आलोक गुरुवार को पत्रकारों से रूबरू हुए। इस दौरान उन्होंने कहा कि जो वित्तीय अनियमितताएं लेखा परीक्षा में पकड़ी गई हैं, वह योजनाओं के क्रियान्वयन में विलंब, उच्च दर पर भुगतान, जुर्माना वसूली न करना, निरर्थक व्यय, धन का गबन करना, अनाधिकृत व्यय आदि से संबंधित हैं। इस गड़बड़झाले में आबकारी विभाग का 346.53 करोड़ रुपये का ऐसा मामला भी पकड़ा गया, जिसकी वसूली अधिकारियों ने डिस्टिलेरियों से की ही नहीं। 

इसी तरह कैग ने पेयजल, उत्तराखंड जलविद्युत निगम, ऊर्जा निगम, वाणिज्य कर (राज्य माल और सेवा कर), लोनिवि के कार्यों में बड़े स्तर पर वित्तीय गड़बड़ियां पकड़ी गर्इ हैं। धन के गबन की बात करें तो स्वास्थ्य विभाग के चर्चित टैक्सी किराये के घोटाले पर मुहर लगाते हुए कैग ने इस प्रकरण में 1.25 करोड़ रुपये का गबन करने की बात कही है। वहीं, दूसरी तरफ गंगा पुनर्जीवीकरण व स्वच्छता समेत खुले में शौच मुक्ति को लेकर सरकार के दावे की पोल भी खोलकर रख दी है। 

गंगा स्वच्छता की दिशा में सरकारी अभिलेखों के परीक्षण के बाद पता चला कि परीक्षण के चार सालों में विभिन्न मद में 25.46 फीसद से लेकर 58.71 फीसद बजट खर्च ही नहीं किया जा सका था। जबकि सरकार ने मई 2017 में खुले में शौच मुक्ति का जो दावा किया था, वह कैग की धरातलीय जांच में झूठा पाया गया। 

चार साल में 70.97 फीसद बढ़ा खर्च 

प्रधान महालेखाकार एस. आलोक ने बताया कि वर्ष 2013-13 से वर्ष 2016-17 के बीच राज्य का कुल व्यय 17 हजार 775 करोड़ रुपये से बढ़कर 30 हजार 391 करोड़ रुपये हो गया है। यह बढ़ोतरी 70.97 फीसद रही। वहीं, राजस्व व्यय की बात करें तो चार साल पहले जो व्यय 13 हजार 960 करोड़ रुपये था, वह मार्च 2017 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में 25 हजार 272 रुपये जा पहुंचा। यह बढ़ोतरी सबसे अधिक 81.03 फीसद रही। 

शराब डिस्टिलरियों ने लगाया 346 करोड़ का फटका 

राज्य की तीन शराब डिस्टिलरियों ने वर्ष 2014-15 से 2016-17 तक मानकों को ताक पर रखकर शराब का उत्पादन किया। कैग ने पाया कि नियमों की अनदेखी पर संबंधित शराब डिस्टिलरियों पर 346.53 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाना था। जबकि अधिकारियों ने इसकी वसूली न कर सरकार को भारी-भरकम चपत लगाई। 

कैग की रिपोर्ट के अनुसार, कुआंवाला, लक्सर व बाजपुर की डिस्टिलरियों ने वर्षाकाल में भी शराब का उत्पादन किया। जबकि पर्यावरणीय मानकों के अनुसार ऐसा करने पर बारिश के पानी के साथ डिस्टिलरियों का रासायनिक द्रव्य भूजल व भूमि को प्रदूषित कर सकता है। इसके बाद भी डिस्टिलरियों ने वर्ष 2014 से 17 के वर्षाकाल (जुलाई से सितंबर) बीच 17.76 लाख लीटर एल्कोहल का उत्पादन किया। जिस पर कुल 258.09 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाना था। 

क्षमता से अधिक उत्पादन की बात करें तो लक्सर की डिस्टिलरी ने अपनी प्रतिदिन की क्षमता के अनुरूप 2.68 लाख लीटर एल्कोहल का अधिक का उत्पादन किया। जिस पर 41.14 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाना था। जबकि बाजपुर की डिस्टलरी के क्षमता से 3.33 लाख लीटर एल्कोहल का अधिक उत्पादन करने पर 46.61 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाना चाहिए था। 

वहीं, कैग ने आबकारी अधिकारियों ने देशी मदिरा पर न्यूनतम प्रत्याभूत ड्यूटी, विदेशी मदिरा पर आबकारी शुल्क, डिस्टिलरी छीजन, विभिन्न लाइसेंस शुल्क के कम आरोपण के मामले भी पकड़े। इस तरह दस्तावेजों के परीक्षण के बाद स्पष्ट किया गया कि आबकारी विभाग ने 346.53 करोड़ रुपये की वसूली न कर सरकार को राजस्व क्षति पहुंचाई है। 

शीरे के नमूनों में परीक्षण में खामी 

कैग की रिपोर्ट के अनुसार, डिस्टिलरियों ने प्रभारी अधिकारी को तीन स्तर पर शीरे के नमूनों को एकत्रित कर परीक्षण कराया जाना चाहिए। जबकि जांच में पाया गया कि या तो नमूने परीक्षण को भेजे ही नहीं गए या संबंधित प्रयोगशालाओं से इसकी आख्या प्राप्त ही नहीं की गई। इसके अलावा आबकारी के विभिन्न उपकरणों की आपूर्ति में भी नियमों की अनदेखी पाई गई। 

ओडीएफ पर सरकार की घोषणा थी झूठी 

कैग ने मई 2017 में सरकार की उस घोषणा को झूठा करार दिया, जिसमें प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों को ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) बताया था। 

बुधवार को पत्रकारों से रूबरू प्रधान महालेखाकार एस आलोक ने कहा कि सरकार ने 1.8 लाख लाभार्थियों को एक्शन प्लान में शामिल ही नहीं किया था। यानी, सरकार की खुले में शौचमुक्ति की उपलब्धि महज 67 फीसद थी। इसके अलावा 22 दिसंबर 2016 तक अल्मोड़ा में 5672 शौचालयों का निर्माण नहीं हो पाया था। सामुदायिक स्वच्छता परिसर की बात करें तो 546 में से 63 ही बने थे। मार्च 2017 तक इनकी प्रगति महज 11.54 फीसद थी। कैग ने 400 शौचालयों का धरातलीय निरीक्षण भी किया था। तब पता चला कि 253 में पानी ही नहीं है। 

कूड़ा प्रबंधन का भी इंतजाम नहीं 

कैग के प्रतिवेदन में कहा गया है कि ठोस कचरा प्रबंधन नियमावली 2016 के अनुसार 92 नगर निकायों में कूड़ा प्रबंधन के उचित इंतजाम किए जाने थे। जांच में जिन सात नगर निकायों के 10 कस्बों का चयन किया गया था, उनमें गोपेश्वर व मुनिकीरेती को छोड़कर शेष में कूड़ा प्रबंधन की स्थिति लचर पाई गई। कूड़ा ढलान वाले क्षेत्रों में डंप करने की तस्वीर जांच में सामने आई। 

नदियों में छोड़ा जा रहा सीवर 

कैग की जांच में पता चला कि हरिद्वार में रोजाना 80 मिलियन लीटर सीवर निकलता है, जिसमें से 45 मिलियन लीटर का ही शोधन किया जा रहा है। इस तरह 35 एमएलडी सीवर बिना निस्तारण के ही नदी-नालों में उड़ेला जा रहा है। दूसरी तरफ ऋषिकेश में 16 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) के सापेक्ष सिर्फ छह एमएलडी सीवर का ही निस्तारण नजर आया। इसी तरह देवप्रयाग में 1.4 एमएलडी की क्षमता के सापेक्ष 0.5 एमएलडी (3.57 फीसद) सीवर का ही शोधन होना पाया गया। जबकि उत्तरकाशी में गंगोत्री स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को अप्रैल 2014 तक बनाया जाना था, जिसका निर्माण अक्टूबर 2017 तक हो पाया। इस तरह तीन साल तक 0.75 एमएलडी सीवर गंगा नदी में ही छोड़ा गया। 

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