असम सरकार ने प्रदेश में बहुविवाह प्रथा पर प्रतिबंध लगाने लिए एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में चार सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। यह विशेषज्ञ समिति इस बात का अध्ययन करेगी कि राज्य विधायिका के पास बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने के अधिकार हैं या नहीं। असम सरकार के अनुसार, यह समिति अगले छह महीने के भीतर रिपोर्ट दाखिल करेगी।
गौरतलब है कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में बहुविवाह पर रोक लगाने के लिए इस विशेषज्ञ समिति का गठन करने की घोषणा की थी। बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने को लेकर कानूनी विशेषज्ञों और विद्वानों वाली यह समिति भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के साथ-साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 के प्रावधानों की जांच करेगी।
असम के मुख्यमंत्री ने हाल ही में यह भी कहा है कि ” हम यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड की ओर नहीं जा रहे हैं जिसके लिए एक राष्ट्रीय सहमति की आवश्यकता होती है, लेकिन असम में यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड के एक घटक के रूप में हम एक राज्य अधिनियम के माध्यम से बहुविवाह को असंवैधानिक और अवैध घोषित करना चाहते हैं।” मुख्यमंत्री के इस बयान ने ख़ासकर निचले असम में बसे बंगाली मूल के मुसलमानों को चिंता में डाल दिया है।
एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 1.4 फीसदी महिलाएं बहुविवाह में हैं जिनकी उम्र 15 से 49 साल है। आंकड़ों के मुताबिक बहुविवाह में सबसे ज्यादा महिलाएं उच्च जनजातीय आबादी वाले पूर्वोत्तर राज्य मेघालय (6.2 फीसदी) से हैं, जबकि राज्यों की इस सूची में असम 2.4 फीसदी के साथ छठे स्थान पर है।
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