सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की वंशज होने का दावा करने वाली एक महिला की याचिका को खारिज कर दिया. महिला ने अपनी वंशावली के आधार पर दिल्ली स्थित ऐतिहासिक लाल किले पर कब्जे की मांग की थी. मामले की सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ ने सुल्ताना बेगम द्वारा दायर याचिका को “पूरी तरह से गलत” करार दिया.
शीर्ष अदालत ने की कड़ी टिप्पणी
इस दौरान शीर्ष अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, “केवल लाल किला ही क्यों? फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं? उन्हें भी क्यों छोड़ दिया जाए. रिट पूरी तरह से गलत है. खारिज की जाती है.” वहीं याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि उनकी याचिका को केवल देरी के आधार पर खारिज किया जाए, जैसा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने किया था. उन्होंने कहा, “कृपया केवल देरी के आधार पर खारिज करें.” हालांकि, शीर्ष अदालत ने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और मामले को योग्यता के आधार पर ही खारिज कर दिया.
शीर्ष अदालत ने अपने संक्षिप्त आदेश में स्पष्ट रूप से कहा, “नहीं, याचिका खारिज की जाती है.” यह घटनाक्रम से ऐतिहासिक स्मारकों पर किए जाने वाले दावों और वर्तमान कानूनी व्यवस्था में उनकी वैधता पर सवाल उठाता है. सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला ऐसे दावों के लिए एक मजबूत संदेश देता हुआ नजर आएगा.
दिल्ली हाईकोर्ट में भी खारिज हो चुकी है याचिका
बता दें कि याचिकाकर्ता ने खुद को मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर (द्वितीय) के परपोते की विधवा सुल्ताना बेगम बताया था. सुल्ताना बेगम ने खुद को मुगल बादशाह का कानूनी उत्तराधिकारी बताते हुए दिल्ली के लाल किले पर कब्जा दिए जाने की मांग की थी. सुल्ताना बेगम ने इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट में भी याचिका दाखिल की थी.
जिसे दिल्ली उच्चन्यायालय ने भी खारिज कर दिया था. उसके बाद सुल्ताना बेगन ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी याचिका को खारिज कर दिया. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ये पूरी तरह से बे-सिर-पैर वाली याचिका है. जो सुनवाई के लायक नहीं है. सुल्ताना बेगम पश्चिम बंगाल के हावड़ा में रहती हैं.