दूसरे सबसे लंबे समय तक पद पर रहने का कीर्तिमान प्रधानमंत्री मोदी ने जनता के जनादेश से किया हासिल : भाजपा

नई दिल्ली : नरेंद्र मोदी भारत के लगातार सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले दूसरे प्रधानमंत्री बन गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री पद पर 4078 दिन पूरे कर लिए हैं। इसी के साथ उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 4077 दिनों (24 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1977) का रिकॉर्ड तोड़ा है। इस अवसर पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी निर्बाध कार्यकाल के साथ देश के दूसरे सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले प्रधानमंत्री बन गए हैं। जब पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी देश के प्रधानमंत्री बने, तो यह तत्कालीन परिस्थितियों का परिणाम था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने यह कीर्तिमान जनता के जनादेश से हासिल किया है।

शुक्रवार को भाजपा मुख्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू के बाद सबसे लंबे समय तक निरंतर प्रधानमंत्री के पद पर रहने का जन विश्वास, जन आशीर्वादऔर राष्ट्र की निष्ठा से युक्त इस कार्यकाल का रिकॉर्ड बनाने में जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र का योगदान रहा है, उससे हर भारतवासी हर्ष का अनुभव कर रहा है। एक तरफ पूर्व के जो दो प्रधानमंत्री हैं, उनके कार्यकाल में निरंकुशता के काले अध्याय रहे। दूसरी तरफ मोदी जी के कार्यालय में विकास के स्वर्णिम अध्याय रहे। नरेन्द्र मोदी जन समर्थन के द्वारा चुनकर आकर प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने वाले प्रधानमंत्री हैं, जबकि जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी दोनों पहली बार प्रधानमंत्री जन समर्थन से नहीं, बल्कि परिस्थितियों की अपरिहार्यता या राजनीतिक दांवपेंच के बीच से बने।

सुधांशु त्रिवेदी ने झारखंड सरकार के एक मंत्री अंसारी द्वारा दिए गए बयान को विद्वेषपूर्ण और अवमानना से भरा हुआ बताया। कांग्रेस पर पलटवार करते हुए उन्होंने कहा कि यह बयान एक बार फिर कांग्रेस की उसी घृणित मानसिकता को दर्शाता है। देश के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए एक चाय बनाने वाले के बेटे के बचपन और उनकी पृष्ठभूमि को लेकर दिया गया ये बयान कांग्रेस की एक सुविचारित योजना का हिस्सा है।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस और राहुल गांधी लगातार प्रधानमंत्री के बारे में अपमानजनक और अशोभनीय बातें करते रहे हैं। एक ओर चुनावी हार के बाद, राहुल गांधी अपनी हताशा जाहिर करते दिख रहे हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की श्रेणी पर सवाल उठाया है। अगर वह प्रोफेसरों पर सवाल उठा रहे हैं, तो उन्हें कम से कम नियुक्ति की उचित प्रक्रिया तो पता होनी चाहिए। आज के कई प्रोफेसर 15 साल पहले असिस्टेंट प्रोफेसर थे। उन्होंने राहुल गांधी से सवाल पूछते हुए कहा कि 2004 से 2014 के बीच, उनकी सरकार के कार्यकाल में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के कितने असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त किए गए?

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