भारत सरकार और लोगों का समर्थन तिब्बती समुदाय के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण: पेम्पा त्सेरिंग

लखनऊ : तिब्बती निर्वासित सरकार (केंद्रीय तिब्बती प्रशासन-सीटीए) के राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग ने तिब्बती इतिहास, संस्कृति और तिब्बत की वर्तमान स्थिति पर एक व्यापक प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि तिब्बती लिपि भारतीय गुप्त लिपि से विकसित हुई थी। उन्होंने भारत की प्राचीन नालंदा परंपरा की बौद्ध शिक्षाओं को संरक्षित करने में तिब्बत की दीर्घकालिक भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ये सांस्कृतिक परंपराएं प्राचीन भारतीय ज्ञान के एक महत्वपूर्ण भंडार के रूप में काम करती रहती हैं।

 

राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग 22 नवंबर की शाम उत्तर प्रदेश के लखनऊ पहुंचे हैं। राष्ट्रपति पेम्पा तिब्बत काे चीन के कब्जे से मुक्त कराने के लिए दुनियाभर में जनसमर्थन जुटाने के अभियान के तहत यहां आए हैं। पेम्पा इस अवधि में प्रमुख राजनीतिज्ञों, प्रबुद्धजनों, विभिन्न सामाजिक संगठनों, मीडिया संस्थानों, युवाओं,विद्यार्थियों और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों से विचार-विमर्श करेंगे।

 

इसी क्रम में तिब्बती निर्वासित सरकार (केंद्रीय तिब्बती प्रशासन-सीटीए) के राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग ने रविवार सुबह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कई राजनीतिक हस्तियों से भेंट की। इस दौरान उन्हाेंने तिब्बत की वर्तमान दशा और दिशा पर चर्चा की और इसकी स्वायत्तता बनाए रखने में सहयोग मांगा। इसके बाद तिब्बती निर्वासित सरकार (केंद्रीय तिब्बती प्रशासन-सीटीए) के राष्ट्रपति ने वॉरियर्स डिफेंस अकाडमी लखनऊ में सेना के भावी अधिकारियों को संबाेधित किया। उन्हाेंने तिब्बती इतिहास, संस्कृति और तिब्बत की वर्तमान स्थिति पर विस्तार से जानकारी दी। कोर ग्रुप फॉर तिब्बतियन काज के क्षेत्रीय संयोजक (यू.पी. एवं उत्तराखंड) डॉ. संजय शुक्ला ने कार्यक्रम की प्रस्तावना पर प्रकाश डाला।

 

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के क्षेत्रीय संगठन मंत्री घनश्याम शाही, भारतीय सेना के खुफिया विभाग के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ब्रिगेडियर राकेश भाटिया, पूर्व सैनिक सेवा परिषद के क्षेत्रीय संगठन मंत्री मेजर आनंद टंडन, जेपी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन के जेपी सिंह, वरिष्ठ पत्रकार दिलीप शुक्ला और वॉरियर्स डिफेंस अकादमी के निदेशक गुलाब सिंह ने उनका स्वागत किया।

 

तिब्बती राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग ने तिब्बत में बड़े पैमाने पर बांध निर्माण परियोजनाओं के बारे में चिंता व्यक्त की और चेतावनी दी कि इन विकास कार्याें का डाउनस्ट्रीम देशों पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है। तिब्बती राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग ने कहा कि तिब्बत पर चीनी सरकार के कब्जे के बाद परम पावन दलाई लामा ने आपातकालीन परिस्थितियों में 17 नवंबर 1950 को आध्यात्मिक और लौकिक नेतृत्व ग्रहण किया। उन्होंने सत्रह-सूत्रीय समझौते, परमपावन दलाई लामा के चीनी सरकार के साथ शांतिपूर्वक बातचीत करने के प्रयासों पर चर्चा की। इसके बाद सिक्योंग ने तिब्बती निर्वासित प्रशासन के गठन, परम पावन के मार्गदर्शन में तिब्बती लोकतांत्रिक संस्थानों के विकास और तिब्बती बस्तियों की स्थापना का संक्षेप में वर्णन किया। उन्होंने लंबे समय से समर्थन के लिए भारत सरकार और लोगों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह तिब्बती समुदाय के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।

 

तिब्बती राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग ने इस बात पर जोर दिया कि तिब्बती संघर्ष अहिंसा और शांतिपूर्ण समाधान पर आधारित है।

 

तिब्बत के अंदर मौजूदा स्थितियों पर तिब्बती राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग ने कहा कि तिब्बती बच्चों को तेजी से सरकार के संचालित बोर्डिंग स्कूलों में रखा जा रहा है, जहां शिक्षा की प्राथमिक भाषा चीनी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इससे तिब्बती भाषा और संस्कृति के संरक्षण को खतरा है। उन्होंने कहा कि तिब्बती बौद्ध संस्थानों को चीनीकरण के उद्देश्य से बनाई गई नीतियों के तहत बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है और परम पावन 14वें दलाई लामा के पुनर्जन्म की पहचान करने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की चीनी सरकार की नाजायज कोशिशों को व्यापक रूप से राजनीति से प्रेरित मा

ना जाता है।

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