कोलकाता : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि भारत पर अनेक आक्रमण हुए, लेकिन भारत एक रहा। लाहौर से लेकर ढाका तक यह सब हमारा अपना है। यह आने वाली पीढ़ी को बताना होगा। ढाका का ढाकेश्वरी मंदिर हमारी धरोहर है। भगवान राम के पुत्र लव द्वारा बसाया गया लाहौर भी हमारी ऐतिहासिक धरोहर है। यह हमारा था, है और रहेगा। हमारी नदियों, हमारी भूमि और हमारे स्वभाव का ज्ञान नई पीढ़ी में जागृत होना चाहिए।
कोलकाता स्थित नेशनल लाइब्रेरी में शुक्रवार को स्वदेशी जागरण मंच और स्वदेशी रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से स्वदेशी बलिदान दिवस पर आयाेजित कार्यक्रम काे मुख्य वक्ता के रुप में संबाेधित कर रहे थे।
अंग्रेजाें के विदेशी कपड़े के आयात का विरोध करने के दाैरान 12 दिसंबर, 1930 में बलिदान हुए बाबू गेनू को श्रद्धांजलि दी गई। उनके बलिदान को स्वदेशी चेतना का प्रेरक क्षण बताते हुए राष्ट्रनिर्माण में स्वदेशी की भूमिका पर विस्तार से चर्चा हुई। इस दाैरान समारोह के मुख्य अतिथि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस के साथ ही विश्व सेवा आश्रम संघ के ठाकुर समिर ब्रह्मचारी, नेशनल लाइब्रेरी के निदेशक प्रोफेसर अजय प्रताप सिंह और अर्थशास्त्री डॉ. धनपत राम अग्रवाल भी मौजूद रहे।
डॉ. कृष्ण गोपाल ने स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत काे याद करते हुए कहा कि 12 दिसंबर, 1930 का दिन स्वदेशी आंदोलन को नई दिशा देने वाला दिन था। उन्होंने कहा कि एक समय था जब भारत दुनिया के 40 प्रतिशत लोगों को कपड़ा निर्यात करता था। यूरोप कपास को पहचानता भी नहीं था और भारत वस्त्र उत्पादन में विश्वगुरु था। लेकिन अंग्रेज व्यापार करने नहीं आए थे, वे भारत की समृद्धि को नष्ट करने आए थे। हमारे उद्योग-धंधे को खत्म कर यही के धन का उपयोग कर ब्रिटेन से सामान भेजना शुरू किया गया। इसी षड्यंत्र के बीच 1905 में बंगाल का विभाजन कर भारत को बांटकर शासन करने की नीति अपनाई गई।
उन्होंने कहा कि 1840 से 1920 के बीच बंगाल स्वदेशी आंदोलन का प्रमुख केंद्र था। इस दौरान यहां के समाज ने वैदिक युग के गौरव को पुनर्जीवित किया और पूरे देश में स्वदेशी चेतना प्रबल हुई। अंग्रेजाें ने भारत के गौरवशाली इतिहास को धुंधला कर दिया, हमारी उपलब्धियों को छिपा दिया और अपनी लिखी किताबों में भारतीयों को अशिक्षित बताकर शिक्षा व्यवस्था को दिशा बदल दी।
डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि दुनिया में जब लोकतंत्र का नाम भी नहीं था, तब वैशाली में लोकतंत्र विकसित हो चुका था। लेकिन आज झूठ फैलाया जा रहा है कि लोकतंत्र की शुरुआत यूरोप में हुई। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत वैश्विक जीडीपी में 24 प्रतिशत योगदान देता था, लेकिन 1947 में यह घटकर केवल 2.2 प्रतिशत रह गया। इसके बाद भी भारत की आत्मा नहीं टूटी।
उन्होंने कहा कि भारत का समाज कर्तव्य आधारित था, लेकिन अब अधिकार आधारित समाज का विस्तार चिंता का विषय है। विकास तभी संभव है जब समाज स्वावलंबन की ओर लौटे और हर सुविधा सरकार पर निर्भर होकर न मांगे। अतीत में गुरुकुल, मंदिर और समाज ने मिलकर हर प्रकार की व्यवस्था बनाई थी, वही भावना फिर जागृत होनी चाहिए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस ने कहा कि भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है और अन्य भाषाओं के साथ सौतेली मां जैसा व्यवहार नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर “वोकल फॉर लोकल” का संदेश स्वदेशी को नई ऊर्जा दे रहा है। उन्होंने कहा कि भारत आत्मनिर्भर बनने की दिशा में तैयार है और बंगाल भी इस यात्रा में अग्रिम भूमिका निभा रहा है।
स्वामी विवेकानंद का संदेश दोहराते हुए उन्हाेंने कहा कि लक्ष्य प्राप्ति तक रुकना नहीं चाहिए। महाभारत का उल्लेख करते हुए कहा कि जैसे अर्जुन का रथ कृष्ण के उतरते ही चूर हो गया था, उसी तरह भारत नामक रथ आज सुरक्षित है क्योंकि इसका सारथी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा सक्षम नेतृत्व है।
नेशनल लाइब्रेरी के निदेशक अजय प्रताप सिंह ने कहा कि स्वदेशी अपनाना ही देश को विकास की राह पर ले जाना है। धनपत राम अग्रवाल ने भारत के गौरवशाली अतीत को याद करते हुए कहा कि यह देश स्वावलंबन के दम पर इतना मजबूत था कि दुनिया भर के लोग आकर्षित होकर आए और हमें लूट कर गरीब बना गए।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने इस बात पर जाेर दिया कि भारत का अतीत गौरवशाली था, वर्तमान चुनौतीपूर्ण है, लेकिन भविष्य केवल स्वदेशी के मार्ग पर ही गौरवशाली बन सकता है।—
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