वार्ष‍िकी 2025 : मध्य प्रदेश ने इस वर्ष पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीव सुरक्षा की दिशा में उठाए बड़े कदम

भोपाल : मध्य प्रदेश जिसे भारत का हृदय स्थल कहा जाता है, वह अपनी समृद्ध वन संपदा, जैव विविधता और वन्यजीव विरासत के लिए विश्‍व भर में अपनी विशिष्‍ट पहचान रखता है। वर्ष 2025 में इस पहचान को राज्‍य सरकार ने एक नई दिशा, नई गति और नई प्रतिबद्धता देने का काम किया है। यह वर्ष मध्य प्रदेश के लिए पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता संवर्धन और वन्यजीव सुरक्षा के क्षेत्र में नीतिगत, प्रशासनिक और वैचारिक स्तर पर एक निर्णायक मोड़ के रूप में उभरा।

 

मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सरकार ने 2025 को “संरक्षण आधारित विकास” का वर्ष बनाने का संकल्प लिया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा भी कि ‘हमारी वन संपदा भविष्य की पीढ़ियों के लिए धरोहर है और उनकी रक्षा राज्य की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल है।’

 

वर्ष 2025 में मध्य प्रदेश सरकार ने जो सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की, वह रही नए वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना और घोषणा। राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार के अनुसार 2025 में लिए गए निर्णयों का मूल उद्देश्य यह था कि राज्य के हर प्रमुख पारिस्थितिक क्षेत्र को संरक्षण के दायरे में लाया जाए और वन्यजीवों को सुरक्षित, निरंतर और वैज्ञानिक रूप से प्रबंधित आवास उपलब्ध कराया जाए।

 

डॉ. भीमराव आंबेडकर वन्यजीव अभयारण्य

 

2025 की शुरुआत में सागर जिले में डॉ. भीमराव आंबेडकर वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना ने पूरे राज्य में एक मजबूत संदेश दिया। यह राज्य का 25वाँ वन्यजीव अभयारण्य बना और इसका नामकरण अपने आप में ऐतिहासिक था। यह अभयारण्य सागर जिले के बांदा और शाहगढ़ क्षेत्र में लगभग 258 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यहाँ की पारिस्थितिकी शुष्क पर्णपाती वन, घासभूमि और झाड़ीदार वनस्पति का अद्वितीय मिश्रण है। इस क्षेत्र को संरक्षित दर्जा मिलने से चिंकारा, नीलगाय, सियार, लकड़बग्घा, विभिन्न पक्षी प्रजातियों और सरीसृपों को सुरक्षित आवास मिला। यह अभयारण्य स्थानीय समुदायों के लिए ईको-टूरिज्म, रोजगार और पर्यावरणीय जागरूकता के नए अवसर लेकर आया, जिससे संरक्षण और आजीविका के बीच संतुलन स्थापित हुआ।

 

नर्मदा घाटी का संरक्षण कवच ओंकारेश्वर वन्यजीव अभयारण्य

 

यदि डॉ. भीमराव आंबेडकर वन्यजीव अभयारण्य 2025 की आधारशिला था, तो ओंकारेश्वर वन्यजीव अभयारण्य उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में सामने आया। देवास और खंडवा जिलों में विस्तृत लगभग 614 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य की घोषणा राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर की गई, जो अपने आप में संरक्षण के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

 

उल्‍लेखनीय है, नर्मदा घाटी के इस क्षेत्र का महत्व वन्यजीवों के साथ धार्मिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। वन मंत्री के अनुसार, ओंकारेश्वर अभयारण्य वर्तमान वन्यजीवों की रक्षा तो करेगा ही साथ में भविष्य में जैविक कॉरिडोर विकसित करने की क्षमता रखता है। सरकार का विश्‍वास है कि यह अभयारण्य सतपुड़ा और नर्मदा क्षेत्र के वनों के बीच जैविक संपर्क को मजबूत करेगा, जिससे वन्यजीवों की आनुवंशिक विविधता और प्राकृतिक प्रवास को बढ़ावा मिलेगा।

 

भविष्य की संरक्षण रणनीति

 

वर्ष 2025 की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि रही श्योपुर जिले में जहानगढ़ वन्यजीव अभयारण्य का प्रस्ताव। यद्यपि इसकी औपचारिक अधिसूचना अभी शेष है, लेकिन इसका रणनीतिक महत्व अत्यंत गहरा है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान के समीप स्थित यह क्षेत्र जैविक कॉरिडोर के रूप में विकसित हो रहा है।नए अभयारण्यों की घोषणा से पहले पारिस्थितिक अध्ययन, वन्यजीव गणना और स्थानीय समुदायों के साथ संवाद को प्राथमिकता दी गई। मप्र में इन दिनों वन्‍य जीव संरक्षण के साथ-साथ ईको-टूरिज्म, रोजगार और पर्यावरण शिक्षा को भी समान महत्व दिया जा रहा है।

 

पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव

 

वर्ष 2025 में स्थापित और घोषित अभयारण्यों ने राज्य के पर्यावरणीय संतुलन को मजबूत किया जिसके परिणाम में आज इन क्षेत्रों के माध्यम से कार्बन अवशोषण बढ़ा, जल स्रोतों का संरक्षण हुआ और स्थानीय जलवायु पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जैव विविधता की रक्षा के साथ-साथ मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के प्रयास भी तेज हुए हैं।

 

समग्र रूप से देखा जाए तो वर्ष 2025 मध्य प्रदेश के पर्यावरणीय इतिहास में एक स्वर्णिम वर्ष के रूप में दर्ज हो गया। नए वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना, प्रस्तावित संरक्षण क्षेत्रों की स्पष्ट रणनीति और मुख्यमंत्री, वन मंत्री के दूरदर्शी विजन ने यह स्थापित कर दिया कि मध्य प्रदेश वन्यजीवों के लिए एक संरक्षण नेतृत्व का राज्य बनकर उभर रहा है।

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