वार्ष‍िकी 2025 : मध्य प्रदेश में चीते की वापसी ने लिखी वन संरक्षण की नई कहानी

भोपाल : मध्य प्रदेश के इतिहास में वर्ष 2025 इस बात के लिए भी दर्ज किया जाएगा कि प्रकृति और वन्‍य जीव संरक्षण की दिशा में अनेक बड़े सफल प्रयोग किए गए। जिस चीते को भारत ने 1952 में हमेशा के लिए खो दिया था, वही चीता 2025 में मध्य प्रदेश की धरती पर न सिर्फ दौड़ता हुआ ही नजर नहीं आया, उसने अपने को फिर से मध्‍य प्रदेश का पूरी तरह से रहवीस बना लिया। इस तरह से यह वर्ष मध्य प्रदेश के लिए चीता संरक्षण के प्रयोग से निकलकर एक भरोसेमंद सफलता की ओर बढ़ने का साल साबित हुआ। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहते हैं कि राज्य

 

की समृद्ध वन संपदा में चीता मुकुटमणि और कोहिनूर के समान है।

 

इस पूरी कहानी का केंद्र बना श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क, जहां ‘प्रोजेक्‍ट चीता’ की नींव रखी गई थी। शुरुआती वर्षों में इस परियोजना को लेकर कई तरह की शंकाएं उठीं। कुछ चीतों की मौत, पर्यावरणीय अनुकूलन को लेकर सवाल और राजनीतिक आलोचनाएं भी सामने आईं। लेकिन 2025 आते आते तस्वीर बदलती गई। साल की शुरुआत तक कूनो में वयस्क चीतों और शावकों को मिलाकर लगभग 28 चीते सक्रिय थे। यह आंकड़ा इस बात का संकेत था कि चीते भारतीय परिस्थितियों में खुद को ढालने लगे हैं और अब यह प्रयोग एक प्रयास से आगे निकलकर परिणाम देने लगा है।

 

कूनो के जंगलों में 2025 के दौरान चीतों का व्यवहार भी बदला हुआ नजर आया। वे शिकार करने लगे, अपने क्षेत्र तय करने लगे और सबसे अहम बात यह रही कि उन्होंने प्रजनन को अपनाया। नवंबर 2025 में जब भारत में जन्मी मादा चीता मुखी ने पाँच स्वस्थ शावकों को जन्म दिया, तो यह खबर मप्र के लिए ही नहीं, पूरे देश के लिए ऐतिहासिक बन गई। यह पहली बार था जब भारत की धरती पर जन्मी किसी चीता ने सफलतापूर्वक शावकों को जन्म दिया।

 

दिसंबर 2025 में इंटरनेशनल चीता डे के अवसर पर कूनो ने एक और महत्वपूर्ण क्षण देखा। चीता वीरा और उसके दो शावकों को खुले जंगल में छोड़ा गया। यह इस बात का संकेत था कि प्रोजेक्‍ट चीता अब बाड़ों और निरंतर मानवीय निगरानी के चरण से आगे निकल चुका है। 2025 में मध्य प्रदेश सरकार और वन विभाग ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि चीता संरक्षण को किसी एक स्थान तक सीमित रखना भविष्य के लिए जोखिम भरा हो सकता है। इसी सोच के तहत गांधी सागर वन्य अभयारण्य को राज्य का दूसरा चीता आवास बनाया गया। अप्रैल 2025 में कूनो से कुछ चीतों को यहां स्थानांतरित किया गया।

 

इतना ही नहीं, 2025 में यह घोषणा भी की गई कि नौरादेही यानी वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व को तीसरे चीता आवास के रूप में विकसित किया जाएगा। हालांकि यहां चीतों का स्थानांतरण अभी भविष्य की योजना है, लेकिन प्रशासनिक मंजूरी और प्रारंभिक तैयारियों ने यह साफ कर दिया कि राज्य इस परियोजना को अल्पकालिक उपलब्धि नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की विरासत के रूप में देख रहा है।

 

साल के अंत तक मध्य प्रदेश में कुल 31 से 32 चीते दर्ज किए गए। लेकिन इस पूरे वर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धि केवल संख्या में वृद्धि नहीं रही है। असली सफलता उन संकेतों में छिपी थी, जो जमीन पर दिखाई दे रहे थे। शावकों की बेहतर जीवित रहने की दर, खुले जंगल में स्वाभाविक व्यवहार, नए इलाकों में चीतों की अनुकूलन क्षमता और मानव हस्तक्षेप पर धीरे धीरे निर्भरता का कम होना। ये सभी संकेत बताते हैं कि ‘प्रोजेक्‍ट चीता’ सही दिशा में आगे बढ़ रहा है।

 

2025 में प्रोजेक्‍ट चीता को राष्ट्रीय स्तर पर नवाचार पुरस्कार भी मिला। इससे मध्य प्रदेश की पहचान अब टाइगर स्टेट से आगे अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक सफल संरक्षण मॉडल के रूप में हुई है। यदि 2025 को एक शब्द में परिभाषित किया जाए, तो वह होगा टर्निंग पॉइंट। यह वह साल है जब मध्य प्रदेश में चीता संरक्षण ने प्रयोग के स्तर से आगे बढ़कर भरोसेमंद सफलता की राह पकड़ी है। राज्‍य में चीते की वापसी के साथ ही मध्य प्रदेश की पहचान भी अब नई रफ्तार से चीता स्‍टेट के रूप में आज आगे बढ़ रही है।

 

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकल्पों के अनुरूप श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क में चीतों के पुनर्स्थापन को नई दिशा मिली है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस के अवसर पर मादा चीता ‘वीरा’ के साथ उसके दो शावक खुले वन में विचरण के लिए छोड़ने से राज्य में चीतों की संख्या अब 32 हो गई है। इसमें गांधीसागर अभयारण्य के तीन चीते भी शामिल हैं। कूनो नेशनल पार्क चीतों के पुनर्वास से अब अंतरराष्ट्रीय स्तर का केंद्र बन चुका है।

 

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