चौरीचौरा कांड की 100वीं बरसी, देवरिया से बेहद खास है कनेक्शन!

गौरी बाजार थाने में दर्ज हुई थी रिपोर्ट

-अरुण कुमार राव

देवरिया : 4 फरवरी को चौरीचौरा कांड के 100 साल पूरे हो गए। ऐतिहासिक चौरी चौरा कांड से देवरिया का भी गहरा नाता रहा है अंग्रेजी सरकार के दमन के विरोध में 4 फरवरी 1922 को क्रांतिकारियों ने चौरीचौरा थाना फूंक दिया था। इस घटना में 23 पुलिस वालों की जलकर मौत हो गई थी। गुस्साई अंग्रेजी सरकार ने इलाके के लोगों पर कहर ढाना शुरू कर दिया। लोगों पर अत्याचार देखकर पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले देवरिया के संत बाबा राघव दास ने जाने-माने अधिवक्ता मदन मोहन मालवीय से क्रांतिकारियों का मुकदमा लड़ने की अपील की। बाबा के कहने पर मदन मोहन मालवीय ने क्रांतिकारियों का केस लड़ा। मालवीय की पैरवी के बाद उस घटना में फांसी की सजा पाए 114 लोगों में से मात्र 19 क्रांतिकारियों को ही फांसी की सजा दी जा सकी।

चौरी चौरा कांड में 114 लोगों को मिला था मृत्युदंड

स्थानीय जमीदार संत बक्स सिंह के नेतृत्व में 4 फरवरी 1922 को डूमरी के खलिहान में एकत्रित भीड़ चौरी चौरा थाने की ओर बढ़ी और थाने में आग लगा दी।जिसमें जलकर तत्कालीन थानेदार समेत 23 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी। इस मामले में गोरखपुर के न्यायालय में अब्दुल्ला बनाम सरकार के नाम से मुकदमा दर्ज हुआ था। घटना की जांच तत्कालीन डीआईजी सेन को मिली थी। जांच के बाद 4 फरवरी 1923 को अंग्रेजी सरकार ने क्षेत्र के 114 क्रांतिकारियों को मृत्युदंड और दर्जनों लोगों को काले पानी की सजा सुनाई। बाबा राघव दास भगवान दास पीजी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ अजय मिश्र के मुताबिक बाबा राघव दास जी ने 11 फरवरी 1923 को इस फैसले के विरोध में चौरीचौरा में सभा की। उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की और जोर देकर कहा कि सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ेगा।

मालवीय की पैरवी से 114 में से 95 लोगों की फांसी माफ हुई

बाबा राघव दास ने उस वक्त के जाने-माने वकील पंडित मदन मोहन मालवीय से अदालत में क्रांतिकारियों का पक्ष रखने की अपील की। बाबा राघव दास के कहने पर मालवीय ने अदालत में क्रांतिकारियों का पक्ष रखा और मृत्युदंड की सजा पाए 114 लोगों में से 95 लोगों की सजा माफ कराई। जबकि 19 क्रांतिकारियों की फांसी की सजा बरकरार रही। फांसी की सजा पाए 19 क्रांतिकारियों की तरफ से दया याचिका दायर हुई। 1 जुलाई 1923 को दया याचिका अस्वीकार कर दी गई। चौरी चौरा कांड के आरोप में देश के अलग-अलग जेलों में बंद 19 क्रांतिकारियों को 2 जुलाई 1923 को फांसी दी गई। जिले के बरहज कस्बे में बाबा राघव दास का आश्रम है। उनकी पुण्यतिथि पर हर साल यहां आयोजित होता है।

गौरी बाजार थाने में दर्ज हुई थी रिपोर्ट

स्वाधीनता संग्राम की अहम घटना चौरी चौरा की घटना कि पहली सूचना गौरी बाजार थाने में दर्ज हुई थी। तब देवरिया भी गोरखपुर जनपद का हिस्सा था और गौरी बाजार थाने को गौरी-झंगहा थाना कहा जाता था। चौरी चौरा कांड की जानकारी मिलने के बाद थाने में मौजूद सिपाही ने जीडी में घटना का रिपोर्ट दर्ज की थी। इसके बाद उच्चाधिकारियों को टेलीग्राम भेजकर घटना की सूचना दी थी। अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए महात्मा गांधी के आह्वान पर शुरू असहयोग आंदोलन के समर्थन में 4 फरवरी 1922 को चौरी चौरा में प्रदर्शन कर रहे लोगों से पुलिस वालों ने दुर्व्यवहार कर दिया।

गौरी बाजार थाने के रिकार्ड में सिद्दीकी को बताया गया है चौकीदार

गौरी बाजार थाने में उपलब्ध दस्तावेज में चौरी चौरा कांड की सूचना देने वाले सिद्दकी को चौरीचौरा थाने से जुड़ा ग्राम चौकीदार बताया गया है। दूसरी तरफ चौरी चौरा कांड पर तथ्यपरक और प्रामाणिक शोध करने वाले सुभाष चंद्र कुशवाहा ने अपनी किताब “चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता आंदोलन” में सिद्धकी को सिपाही बताया है। उन्होंने सिद्धकी के कांस्टेबल नंबर का भी उल्लेख किया है। जो उसके सिपाही होने को प्रमाणित करता है।

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