निर्भीक,निडर व साहसी पत्रकार के रूप में याद किये जाएंगे दिलीप : सुरेश बहादुर सिंह

लखनऊ : पत्रकारिता जगत के सितारे दिलीप अवस्थी अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका सोमवार को निधन हो गया। दिलीप शारीरिक रूप से भले ही हमारे बीच न रहे, लेकिन एक साहसी निडर व निर्भीक पत्रकार के रूप में वह हमेशा हमारे विचारों व ख्यालों में मौजूद रहेंगे।

दिलीप के निधन से पत्रकारिता जगत को भारी क्षति हुई है। देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों व समाचार पत्रिकाओं में कार्य कर चुके दिलीप अवस्थी को उनकी दिल दहलाने वाली खबरों के लिए भी याद किया जाएगा। उन्होंने उस दौर में पत्रकारिता की थी जब आज की आधुनिक सुविधाएं मौजूद नहीं थी। चम्बल के बीहड़ों में जाकर डाकू माधव सिंह व मोहर सिंह से मिलकर उन्होंने जो खबरें लिखी थीं वह आज भी रोंगटे खड़ी कर देती हैं और ऐसी खबरें सिर्फ दिलीप अवस्थी ही कर सकते थे।

अभी हाल ही में उन्होंने अपने पत्रकारिता के संस्मरण भी लिखने शुरू कर दिये थे। बीहड़ के अपने अनुभवों, व बाबरी मस्जिद विध्वंस की खबरों को अपने पत्रकार दोस्तों को भी सुनाते थे। दिलीप एक ऐसे पत्रकार थे जिन्होंने कभी भी अपने पत्रकारिता से समझौता नहीं किया है। एक ऐसा भी अवसर आया था जब उन्होंने प्रदेश के तात्कालीन मुख्यमंत्री के भाई के खिलाफ उन्हीं के जनपद में रिपोर्ट लिखवा दी थी। यह उनकी साहसिक पत्रकारिता का एक उदाहरण मात्र है।

दिलीप भाई मेरे विश्वविद्यालय के दिनों के साथी थे हालांकि वह पत्रकारिता में हमसे वरिष्ठ थे, लेकिन अपनी उस वरिष्ठता और अपनी लोकप्रियता को उन्होंने अपने साथियों पर हावी नहीं होने दिया। वह बहुत ही मृदुभाषी व मिलनसार थे जो एक बार भी उनसे मिल जाता था, उनका अपना हो जाता था और शायद यही उनकी पूंजी भी थी।

दिलीप भाई काफी दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे उन्हें किडनी की समस्या थी हालांकि वह उसका उपचार कराने में सफल हो गये थे। उनका बाहर निकलना भी काफी कम हो गया था हां, अपने मित्रों से फोन पर जरूर हालचाल लिया करते थे। ऐसे ही एक बार जब उनका फोन आया तो लगा कि दिलीप भाई काफी खुश थे। खैर, खुशी की बात भी थी। उन्हें एक प्रतिष्ठित समाचार पत्रिका ‘कंसल्टिंग’ सम्पादक का पदभार संभालने का अवसर मिला। उन्होंने उसे स्वीकार भी कर लिया था, लेकिन कोरोना काल के दौरान वह अपनी सेवाएं अपने आवास से ही दे रहे थे। फिलहाल पत्रकारिता की अपनी दूसरी पारी से वह बहुत खुश नजर आ रहे थे। ऐसा लग रहा था कि जो पत्रकारिता की पहली पाली में उनसे जो छूट गया था उसे भी उसी लगन, उत्साह, स्फूर्ति से पूरा करना चाहते थे, लेकिन ईश्वर को शायद यह मंजूर नहीं था और उन्होंने असमय ही हमसे उन्हें छीन लिया।

दिलीप अवस्थी पत्रकारिता की एक जीती जागती मिसाल थे। वह सच्चे मायने में पत्रकारिता के हर मापदंड पर खरे उतरे। अपनी खबरों में उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया, हालांकि उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा। इसी शहर क्लार्स होटल के समीप उनके ऊपर जानलेवा हमला भी हुआ, संयोग से मैं उसी समय वहां से गुजर रहा था और दिलीप भाई की गाड़ी देखकर न सिर्फ रुका बल्कि हम दोनों भाइयों ने उन्हें करारा जवाब दिया और उन दो बदमाशों को वहां से भागना पड़ा।दिलीप भाई के साथ के ऐसे कई किस्से हैं जो आज जेहन में उनके जाने के बाद याद आ रहे हैं। दिलीप भाई आपको कभी भूल नहीं पाएंगे और यह पत्रकार जगत भी आपका ऋणी रहेगा।

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