बिहार से राजनीति में कदम रखने वाले प्रशांत किशोर के बारे में यह बातें नहीं जानते होंगे आप

प्रशांत किशोर 16 सितंबर को जनता दल यूनाइडेट (जदयू) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सामने पार्टी में सुबह के 11 बजे शामिल हो सकते हैं। उन्हें 2014 में भाजपा को प्रचंड बहुमत से जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। इसके बाद उन्होंने बिहार के महागठबंधन को और फिर पंजाब में कांग्रेस को सत्ता हासिल करने में मदद की थी। उन्हें भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां अहम पद देना चाहती थी लेकिन इसके इतर उन्होंने अपनी जन्मभूमि बिहार को चुना। वह बिहार को बेहतर बनाने के लिए क्षेत्रीय पार्टी का हिस्सा बनने वाले हैं।
कौन है प्रशांत किशोर

साल 1977 में प्रशांत किशोर का जन्म बिहार के सासाराम में हुआ था। उनकी मां उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की हैं वहीं पिता बिहार सरकार में डॉक्टर हैं। उनकी पत्नी का नाम जाह्नवी दास है। जो असम के गुवाहाटी की एक डॉक्टर हैं। किशोर और जाह्नवी का एक बेटा है। राजनीतिक करियर की बात करें तो 2014 में मोदी सरकार को सत्ता में लाने की वजह से वह चर्चा में आए थे। उन्हें एक बेहतरीन चुनावी रणनीतिकार के तौर पर जाना जाता है। हमेशा से वह पर्दे के पीछे रहकर अपनी चुनावी रणनीति को अंजाम देते आए हैं। इसी वजह से उन्हें सबसे ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है।

साल 2014 में किशोर ने सिटिजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (कैग) की स्थापना की थी। जिसे भारत की पहली राजनीतिक एक्शन कमिटी माना जाता है। यह एक एनजीओ है जिसमें आईआईटी और आईआईएम में पढ़ने वाले युवा प्रोफेशनल्स शामिल थे। किशोर को मोदी की उन्नत मार्केटिंग और विज्ञापन अभियान जैसे कि चाय पे चर्चा, 3डी रैली, रन फॉर यूनिटी, मंथन का श्रेय दिया जाता है। वह इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आई-पैक) नाम का संगठन चलाते हैं। यह लीडरशिप, सियासी रणनीति, मैसेज कैंपेन और भाषणों की ब्रांडिंग करता है।

2014 में भाजपा का साथ छोड़ने के बाद प्रशांत किशोर ने 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार- लालू यादव के महागठबंधन का साथ थामा था। इसके बाद 2017 में वह वाईएसआर कांग्रेस से जुड़ गए। पार्टी के प्रमुख जगन मोहन रेड्डी ने किशोर की मुलाकात पार्टी के बड़े नेताओं से करवाई थी। हालांकि बिहार में जिस रणनीति ने काम किया था वह आंध्र प्रदेश में कामयाबी हासिल नहीं कर पाई। उन्होंने उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर काम किया था लेकिन यहां भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा।

कुछ दिनों पहले ही किशोर की संस्था आईपैक का लोकसभा चुनाव को लेकर एक सर्वे सामने आया था। इस सर्वे के अनुसार 48 प्रतिशत लोगों ने पीएम मोदी को अपना नेता माना था। वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी 11 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे। इन आंकड़ों ने भाजपा को कांग्रेस पर हमला करने का एक मौका दे दिया था। यह सर्वे किशोर से जुड़ी सिटीजंस फॉर एकाउंटेबल गवर्नेंस की ओर से 2013 में कराए गए सर्वेक्षण के समान था। जिसमें मोदी को देश का सबसे पसंदीदा नेता बताया गया था।

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