गोवा में राजनीतिक गणित: मनोहर परिकर की गैरमौजूदगी में क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है

भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता अक्सर यह कहते हैं कि संगठन नेता बनाता है। यह सच है, लेकिन कभी-कभी नेता संगठन के लिए इतना आवश्यक बन जाता है कि उसकी अनुपस्थिति पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर देती है। ऐसा ही कुछ इस वक्त गोवा में भी हो रहा है।

गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर परिकर काफी समय से बीमार चल रहे हैं। उनके बार-बार अस्पताल में भर्ती होने से गोवा में राजनीतिक उठापटक तेज हो गई है। इसी के तहत कांग्रेस के नेता सोमवार को राज्यपाल मृदुला सिन्हा से मिलने राजभवन भी पहुंचे। कांग्रेस वहां सरकार बनाने का अब कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती।


राज्यपाल के नहीं मिलने पर नेता दावे की चिट्ठी छोड़कर लौट आए। वहीं भाजपा ने कहा कि सहयोगी दल उसके साथ हैं। लिहाजा, सरकार को कोई खतरा नहीं है। परिकर (68) का पेंक्रियाज (अग्नाशय) की समस्या के चलते दिल्ली के एम्स में इलाज चल रहा है।

परिकर ने न केवल भाजपा को विकास और जीत दिलाई बल्कि उन्हीं के कारण पार्टी 2017 में बहुमत के बिना भी सरकार बनाने में कामयाब रही। ये परेशानी शुरू हुई थी कुछ महीनों पहले, जब परिकर बीमारी के चलते मुंबई के अस्पताल में भर्ती हुए थे। इसके बाद वह इलाज के लिए अमेरिका चले गए। वह जब भारत लौटे तब भी पार्टियों के नेता जानते थे कि उन्हें स्वास्थ्य होने में समय लगेगा।

इससे पहले जब परिकर दिल्ली आए थे तो अटकलें शुरू हो गई थीं कि परिकर ने स्वयं राज्य में वैकल्पिक व्यवस्था की मांग की। अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि वह पद छोड़ना चाहते हैं या फिर किसी और को जिम्मेदारी सौंपना चाहते हैं। अब कांग्रेस बीते साल की तरह धीमे पड़ने की बजाय आक्रामक होना चाहती है। वह गोवा में सरकार बनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है।

कांग्रेस इस ओर दो रास्ते तलाश रही है। पहला कि यह साबित कर दे कि सरकार कोई काम नहीं कर रही है और दूसरा, उसके सहयोगी दलों को अपनी ओर लाना। इससे पहले कांग्रेस कर्नाटक चुनाव के समय भी यह दांव खेल चुकी है और उसमें सफल भी रही। पार्टी ने छोटे सहयोगी दल के नेता को मुख्यमंत्री बना दिया।

भाजपा के लिए परिकर का खराब स्वास्थ्य नाकामियाबी बन रहा है। अगर सरकार गिर गई तो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही पार्टी एक राज्य खो देगी। लेकिन भाजपा के नेता पांच कारणों से किसी भी तरह के बदलाव के लिए मना कर रहे हैं। पहला, सरकार बहुमत के साथ ही रहेगी।

दूसरा, सहयोगी दलों का साथ अभी भी पार्टी के पास है। तीसरा, कोई संवैधानिक संकट खड़ा नहीं हो रहा है जिसके चलते मुख्यमंत्री को बदला जाए। चौथा, कांग्रेस ज्यादा ही आगे जाने का सोच रही है, जबकि अंकगणित में कोई बदलाव नहीं हुआ है। पांचवां, फैसला राज्यपाल करेंगी, ऐसी कोई संभावना नहीं है कि वह भाजपा के खिलाफ में फैसला दें।

परिकर का स्वास्थ्य अभी ठीक नहीं है, जिसके चलते गोवा में राजनीतिक उठापटक तेज हो गई है। अभी तक कुछ नहीं कहा जा सकता कि सरकार ऐसे ही चलती रहेगी, जबकि उसके नेता काफी समय से अस्वस्थ्य हैं। या फिर राष्ट्रपति शासन के बाद जल्दी चुनाव होंगे। 

वहीं गोवा फारवार्ड पार्टी (जीएफपी) के तीन विधायकों और तीन निर्दलीय विधायकों ने इस तटीय राज्य में अपनी सरकार के स्थायित्व की कोशिश में जुटी भाजपा के प्रति अपना समर्थन प्रकट किया। जीएफपी के प्रमुख विजय सरदेसाई और पार्टी के दो अन्य विधायक तथा तीन निर्दलीय विधायक रविवार को जब भाजपा के केंद्रीय पर्यवेक्षकों से मिलने पहुंचे तब उन्होंने अपनी एकजुटता प्रदर्शित की।

राज्य के कृषि मंत्री सरदेसाई गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के विश्वासपात्र समझे जाते हैं।  दिन में इससे पहले सरदेसाई ने कहा था कि जीएफपी पर्रिकर के साथ हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम किसी से बात नहीं कर रहे हैं और न कि कोई हमसे बात कर रहा है।’

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