ब्रजेश पाठक को शक्तिमान या स्पाइडरमैन मत समझें !

फिल्म नायक के अनिल कपूर और ब्रजेश पाठक के बीच हक़ीकत की चुनौतियां

लखनऊ (नवेद शिकोह)। उत्तर प्रदेश के नए-नवेले डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक इन दिनों आम जनता के नायक बनकर उभर रहे हैं। फिल्म नायक के फिल्मी चरित्र (अनिल कपूर) की तरह वो अस्पतालों में औचक निरीक्षण कर वास्तविक फिल्मों (वीडियो) में नजर आ रहे हैं। उनके जज्बे, कोशिशों और कर्तव्य बोध को सैल्यूट और शुभकामनाएं, किंतु हर फिल्म या हर वीडियो के पीछे कड़वे सच की हक़ीक़त की चुनौतियों का मुकाबला डिप्टी सीएम/ स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक के लिए आसान नहीं है।

इस बात को समझाने के लिए दिलो-दिमाग में बैठी बिना कैमरे वाली फिल्म का फ्लेश बैक प्ले करना पड़ेगा-

बात सात साल पुरानी है। लखनऊ के केजीएमयू के इमरजेंसी वार्ड में स्टेचरों पर गंभीर पेशेंट की कतारें लगीं थी, कुछ ज़मीन पर तड़प रहे थे, कोई मर चुका था और कोई आखिरी सांसें ले रहा था। किसी की इलाज की आस में आंखें पथरा गईं थीं। सब एक दूसरे से लगभग सटे-सटे थे। मेरे मरीज़ के बगल में किसी मरीज़ ने ट्राली स्ट्रेचर से खून की उल्टी की और मेरा सफ़ेद पेंट लाल हो गया। रूह फना कर देने वाले ऐसे मंज़रों के बीच मेरी निगाहें डाक्टर को ढूंढ रहीं थीं। इस बीच कर्राहते वार्ड में डाक्टरों का झुंड आते देख मैं उनकी तरफ लपका। मैंने अपना परिचय दिया- सर मैं पत्रकार नवेद शिकोह। और फिर नर्म लहजे से आग्रह किया, मेरे मरीज़ के लिए स्वास्थ्य मंत्री जी ने सीएमएस शंखवार साहब को फोन किया है। फलां नाम के पेशेंट को बेड दिलवाने के लिए शायद आपको बताया गया हो !

मेरे ये शब्द डाक्टरों को गाली जैसे लगे। एक डाक्टर तो इतना क्रोधित हुआ कि लगा जैसे अब वो मुझे धक्कर मार कर बाहर कर देगा। बोला- हर आदमी आ जाता है सोर्स-सिफारिश लेकर। कोई मंत्री की, कोई मुख्यमंत्री की, कोई प्रधानमंत्री की धौंस दिखाता हूं। क्या घर से बेड ले आऊं! एक अनार है और सौ बीमार।

मुझे डाक्टर का ये गुस्सा स्मिसबिहेव या बदतमीजी नहीं बल्कि स्वाभाविक लगा। ये जायज़ ह्यूमन नेचर लगा। मरीजों की कतारें, तीमारदारों की भीड़ का दबाव और हर रोज हर दिन कम संसाधनों में जिन्दगियां बचाने की चुनौती के बीच धरती के भगवान, भगवान की कल्पना को चरितार्थ करें, ये असंभव है।

यूपी की आबादी के लेहाज़ से डाक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ, बेड, स्ट्रेचर, आक्सीजन, वेंटीलेटर.. की जितनी जरूरत है उसके तिहाई संसाधन भी यहां नहीं है। वजह ये है कि चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य का जितना बजट चाहिए है उसका तिहाई बजट भी यूपी के मेडिकल सिस्टम को कभी भी मयस्सर नहीं हुआ। आर्थिक तंगी के बीच जरुरत के हिसाब से मेडिकल बजट दिया जाना बेहद कठिन है। और आज तो देश-प्रदेश तमाम फाइनेंशियल क्राइसिस से गुज़र रहा है। आर्थिक तंगी के ऐसे दौर में ज़रुरी से जरूरी मद का बजट भी दो गुना से ज्यादा करना मुश्किल है।

ऐसे में जरुरत के लिहाज से बेहद कम संसाधनों में सबका बेहतर इलाज हो पाना आसान नहीं है। बात सिर्फ कर्मचारियों, डाक्टरों और मेडिकल अधिकारियों की लापरवाही की ही नहीं है सरकारी अस्पतालों में जितने संसाधन हैं उससे कहीं ज्यादा मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। आम जनता अब स्वास्थ मंत्री तक अपनी समस्या बता सकती हैं, स्वास्थ्य मंत्री अस्पतालों में औचक निरीक्षण कर असलियत और कड़वी हकीकत देख सकते हैं। ये सब देख कर प्रदेश की जनता अपने नेता और डिप्टी सीएम/स्वास्थ्य मंत्री को नायक मान सकती है लेकिन ब्रजेश पाठक काल्पनिक स्पाइडर मैन या शक्तिमान नहीं बन सकते। जब बेड भरे हुए होंगे तो आम जनता को बेड कैसे दिलवाएंगे, वेंटीलेटर खाली नहीं होगा तो एक से छीनकर दूसरे मरीज़ को वेंटीलेटर नहीं लगाया जा सकता। स्टेचर और व्हील चेयर, एम्बुलेंस की मरम्मत के लिए बजट ही नहीं होगा तो कोई अधिकारी अपने पैसे से तो उसे बनवाएगा नहीं। बहुत सारी चीज़ें जाने बिना आम जनता अपने नये नवेले डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के जोश जज्बे, सादगी और अपनेपन को देखकर उनसे अति अपेक्षाएं करने लगी होगी। और खुदा नाखास्ता ये उम्मीदें पूरी नहीं हुईं तो लोकप्रियता का ये वैभव जितनी तेजी से ऊपर पंहुचा है उतनी ही तेजी से नीचे आ सकता है।

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और बड़ी आबादी वाले सूबे में हर दौर में स्वास्थ व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं रही है। इसकी वजह सिर्फ नौकरशाह, चिकित्सक या पैरामेडिकल स्टाफ का गैर जिम्मादाराना और भ्रष्ट सिस्टम ही नहीं है। बजट और संसाधन कम होना मेडिकल सिस्टम की खामियों की मुख्य वजह है।

स्वास्थ मंत्री के औचक निरीक्षण चंद लापरवाह नौकरशाहों, डाकटरों, मेडिकल अधिकारियों और कर्ममचारियों को मुश्तैदी से काम करने पर मजबूर ज़रुर करेगी। भ्रष्ट सिस्टम की बर्फ भी जरूर पिघलेगी। आम मरीजों को कुछ लाभ मिलेगा। लेकिन नब्बे प्रतिशत मेडिकल सिस्टम की बदहाली की वजह बजट और संसाधन कम होना है। ये कमी दूर हो गई तो फिल्म नायक का सत्ता सुधार तो कुछ भी नहीं रामराज की कल्पना साकार हो सकती है।

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