गांठ दर गांठ किसानों के लिए मीठा होता गया गन्ना

  • योगी सरकार के अब तक के कार्यकाल में हुआ रिकॉर्ड भुगतान
  • गन्ने के रकबे,फसल, चीनी एवं एथनॉल के उत्पादन में यूपी नंबर एक
  • कोरोना काल में सभी चीनी मिलों के संचालन का रिकॉर्ड भी यूपी के ही नाम

लखनऊ। सूबे के करीब 65 लाख किसान गन्ने की खेती से जुड़े हैं। किसानों की इतनी बड़ी संख्या के नाते गन्ने से जुड़ा हर मुद्दा प्रदेश की राजनीति में बेहद संवेदनशील रहा है।

योगी सरकार ने अब तक के कार्यकाल में गन्ने का रिकार्ड भुगतान कर न केवल गन्ना किसानों के लिए गन्ने की मिठास बढ़ा दी बल्कि भुगतान के मुद्दे पर विपक्ष की बोलती बंद कर दी। आंकड़े इस बात के सबूत हैं साल 2012-2017 के दौरान गन्ना किसानों को सिर्फ 0.95 लाख करोड़ रुपये का भुगतान हुआ। जबकि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2017-2022 के दौरान 1.51 लाख करोड़ रुपये का भुगतान हो चुका है। अब तक के आंकड़ों को जोड़ लें तो यह भुगतान करीब 1.78 लाख करोड़ रुपये के करीब है। आजादी के बाद से अब तक का रिकॉर्ड है।

बकाये की समस्या खत्म हुई तो गन्ने की जिस खेती से किसान किनारा कर रहे थे वह फिर से उनकी पसंद बन गया। इस बात की तस्दीक भी आंकड़े करते हैं। मसलन 2016 2017 में जो गन्ना उत्पादन 1486.57 लाख मीट्रिक टन था, वह 2020- 2021 में बढ़कर 11059 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया। इसी समयावधि में चीनी उत्पादन 87.73 से बढ़कर 110.59 लाख मीट्रिक टन और गन्ने की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 72.38 से बढ़कर 81.5 मीट्रिक टन हो गई।

यही नहीं मिलों के संचालन की अवधि,एथनॉल और सैनिटाइजर के उत्पादन में भी यूपी देश में नंबर वन है। कोरोना काल में सभी मिलों के संचालन का रिकॉर्ड भी यूपी के ही नाम है।

बसपा और सपा के कार्यकाल में या तो बेशकीमती मिलों को कौड़ियों के भाव बेचा गया या बंद किया गया। योगी सरकार ने अत्याधुनिक और एकीकृत नई मिलें लगवाईं। कई मिलों की क्षमता का विस्तार करवाया। बची मिलों का भी आधुनिकीकरण कर क्षमता विस्तार की योजना  है। 2007 से 2012 तक के अपने कार्यकाल में बसपा ने 19 मिलों को बंद किया और 21 को बेच दीं। मौके पर उपलब्ध बेशकीमती जमीनों के लिहाज से इनको कौड़ियों के भाव बेचा गया। इनकी सीबीआई जांच चल रही है। इसी तरह सपा ने 2012 से 2017 तक के अपने कार्यकाल  के दौरान 10 मिलों में ताला लगवाया। योगी सरकार के कार्यकाल में पिपराइच, मुंडेरवा और रमाला में अत्याधुनिक नई मिलें लगीं। कई मिलों का क्षमता विस्तार हुआ। वर्षों से बंद बुलंदशहर की वेव, चंदौसी की वीनस,सहारनपुर की दया शुगर मिल को चालू कराया गया। पर्ची एक बड़ी समस्या थी। इस पर गन्ना माफिया का कब्जा था। इसको तकनीक और गन्ना उत्पादक किसानों की खतौनी से जोड़कर माफिया के तीन लाख सट्टे खत्म कर उनकी कमर तोड़ दी गई। अब किसानों के पास सीधे उनके एसएमएस पर पर्ची जाती है।

 मुख्यमंत्री का साफ निर्देश है कि जब तक खेत में गन्ना है तब तक मिलें चलनी चाहिए। एक सत्र में तो मुजफ्फरनगर की मंसूरपुर चीनी मिल 23 जून तक चली थी।

वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान जब देश की आधी से अधिक मिलें बंद हो गई थीं तब कोरोना प्रोटोकाल का अनुपालन करते हुए प्रदेश की सभी 119 मिलों को चलाया गया। यही नहीं इन मिलों ने कोरोना के जंग में सबसे प्रभावशाली हथियारों में से एक सैनिटाइजर का रिकॉर्ड उत्पादन किया। प्रदेश की जरूरतों के बाद इनकी आपूर्ति 20 अन्य राज्यों और विदेशों में भी की गई।

एथनॉल बनाने में भी मिलें रिकॉर्ड बना रहीं हैं।  मौजूदा समय में 55 मिलें हेवी मोलेसिस से एथनॉल बना रही हैं। गन्ने के रस से सीधे एथनॉल बनाने वाली पिपराइच उत्तर भारत की पहली मिल होगी। फिलहाल एथनॉल के उत्पादन में भी यूपी देश में नंबर वन है।

खांडसारी इकाइयों को लगाने की प्रक्रिया को आसान कर योगी सरकार ने किसानों को बाजार का एक नया विकल्प देने के साथ स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी मुहैया कराए हैं।  पहले किसी मिल से 15 किमी (एयर डिस्टेंस) की दूरी पर खांडसारी की इकाई लग सकती थी। योगी सरकार ने इस दूरी को आधा कर दिया। गन्ने के प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के मकसद से मुजफ्फरनगर और लखनऊ में गुड़ महोत्सव का भी आयोजन कराया गया। इस सबके बिना पर कह सकते हैं कि योगी सरकार के कार्यकाल में गांठ दर गांठ किसानों के लिए गन्ना मीठा होता गया ।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com