हत्यारों का पत्रकार का वेश धरना पत्रकारों के लिए खतरे की घंटी बनेगा

रत्नाकर सिंह : प्रयागराज मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए गए अतीक और अशरफ जैसे दुर्दांत आतंकवादी माफिया सरगना को जिस प्रकार भारी पुलिस भीड़ और पत्रकारों की भीड़ के बीच गोलियों से भून दिया गया, यह पत्रकारों के लिए एक बहुत ही संकट के समय की शुरुआत मानी जा सकती है। क्योंकि जैसा अभी तक बताया गया है कि यह तीनों हत्यारे फर्जी आईडी लेकर और कैमरा लेकर अतीक और अशरफ का पहले से इंतजार कर रहे थे। वह पत्रकार की वेशभूषा में थे। पत्रकारों के साथ खड़े थे और इसी कारण संभवत पुलिस ने भी उन पर बहुत ज्यादा शक सुबहा नहीं किया। हाला कि सुबह ही अतीक के लड़के असद की सुपुर्द ए खाक के दौरान उसके कब्र तक भी जाने की अनुमति बहुत छानबीन के बाद चुनिंदा लोगों को ही दी गई थी, ऐसे में खतरे की पूर्व आशंका के बावजूद एक बहुत ही संवेदनशील मसले पर पुलिस ने छानबीन नहीं किया और उसके करीब तक पत्रकार की भेष में हत्यारों को अपना मकसद पूरा करने का मौका मिल गया। स्थितियां पत्रकारों के लिए विकट हो रही हैं।

पुलिस अगर क्रॉस फायरिंग करती तो हो सकता था कोई पत्रकार भी चुटहील हो जाता। वैसे भी पत्रकार सदैव माफियाओं के, प्रशासन के, पुलिस के निशाने पर रहते हैं। अगर वह सच लिखते हैं तो ना उनसे माफिया खुश होते हैं ना उनसे प्रशासन खुश होता है। ना सरकार खुश होती है और सुरक्षा के नाम पर उनके पास शून्यता ही रहती है। कहने को तो वह समाज के चतुर्थ स्तंभ कहे जाते हैं, लेकिन यह स्तंभ बिना नीव का है। तभी तक चलता है जब हम पत्रकार सत्ता के गलियारे की चाटुकारिता करते हैं या दलाली करते हैं। ऐसे चंद पत्रकार जरूर चतुर्थ स्तंभ का लाभ पा जाते हैं लेकिन एक आम पत्रकार तो अपनी जान पर खेलकर अपने कार्य को अंजाम देता है। ऐसे में इन तीन हत्यारों द्वारा पत्रकार के छद्मवेश में हत्या करने के बाद से अब अगर पुलिस और प्रशासन एक एक पत्रकार को पूरी छानबीन के बाद ही किसी के करीब तक जाने देगी ,तो उसमें कोई अचंभा नहीं होगा। यह दुखद स्थिति यह है कि बहुत सारे नामचीन संस्थाओं के पत्रकारों के पास भी उनके विभाग का कोई परिचय पत्र नहीं होता है।

चैनलों में भी बस आईडी के नाम पर माइक उनकी पहचान होता है। स्वयंभू पत्रकारों की तो बात ही छोड़ दीजिए। ऐसे में आने वाले दिनों में पुलिस प्रशासन इनकी जांच के लिए कौन से मानक अपनाए गी, यह कुछ भी हो सकता है। लेकिन जो भी कुछ होगा पत्रकारों के लिए बहुत ही दुखदाई होगा, कष्टप्रद भी होगा। ताज्जुब तो इस बात का भी हो रहा है कि इतने पत्रकारों में किसी ने भी यह नहीं देखा कि यह नए पत्रकार चेहरे कौन से हैं? कारण यह है कि यूट्यूब चैनल के लोग भी कैमरा और आईडी लेकर टहलते हैं, जिनका कोई वजूद पत्रकारिता जगत में नहीं है। ऐसे में पत्रकारों को बहुत ही धैर्य और संयम के साथ काम करना होगा। हमेशा अपनी आईडी अपने पास रखनी होगी और हो सके तो उसे गले में लटकाना भी होगा। एक समय है गुजर जाएगा। धैर्य की आवश्यकता है।

(लेखक  गोरखपुर जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष व मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं)

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com