मेरे साथी शीतला सिंह का जाना दुखद

के. विक्रम राव

मेरे साथी शीतला सिंह का जाना दुखद इसलिए ज्यादा रहा क्योंकि वे सैकड़ा लगाने से चूक गये। यूं कीर्तिमान रचना सदा उनका सहज कार्य रहा। इक्यानवे (6 अगस्त 1932) पर ही प्रस्थान कर गए। मैं अन्त्येष्टि पर भी न जा पाया। उन्होंने देहदान कर दिया था। मतलब जीवन के बाद भी उनकी मानव सेवा का सिलसिला चालू रहा। कई विकलांगों का हित होगा। शीतला सिंह हमारे श्रमजीवी पत्रकार आंदोलन के मांझी थे। खिवैय्या। अगस्त 1980 में उनसे मेरा सबका हुआ था। आजीवन रहा। हमारे इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) का प्रतिनिधि अधिवेशन कोचीन (केरल) में होना था। राष्ट्रीय प्रधान सचिव के नाते मेरी कोशिश थी कि यूपी से सवा सौ प्रतिनिधि चलें। भारत में सबसे विशालाय इकाई भी यूपी की ही रही। तभी सत्ता में लौटी इंदिरा गांधी के रेल मंत्री पं. कमलापति त्रिपाठी थे जो पत्रकार रह चुके थे। वे स्वयं IFWJ सदस्य भी रहे थे। उन्होंने रेल के दो कोच दिलवा दिये। इसमें एक समूचा सिर्फ फैजाबाद के साथियों के लिए रखा। शीतला सिंह की सेना के लिए। उसमे निर्मल खत्री थे। बीपी सिंह देव और चंद्रकिशोर मिश्र मिलाकर। नई नवेली पत्रकार मंजू शुक्ला भी थीं। उसके बाद लगातार हर सम्मेलन में शीतलाजी आते रहे, मेरे आग्रह पर। उन्होंने IFWJ का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनना स्वीकारा। मुझे उनकी विशेष मदद मिली जब यूपी के पत्रकारों के शीर्ष ट्रेड यूनियन (UPWJU) को पुनर्जीवित करना था। एकता फिर कायम करने हेतु वे प्रदेश प्रदेश अध्यक्ष बने। झांसी में उपाध्यक्ष स्व. कैलाशचंद्र जैन (संपादक : दैनिक विश्व परिवार) ने आयोजित किया था। प्रदेश के मीडिया-कर्मियों में जान आ गई थी। फिर हमें मुड कर देखने की आवश्यकता नहीं पड़ी।

चंद आवश्यक और महत्वपूर्ण मील पत्थरों का उल्लेख हो। दो अवसर आए थे जब सहकारिता पर प्रकाशित इस दैनिक पर शत्रुओं की नजर लगी। शीतला सिंह तब तक मेरे लिए स्वयं तक संस्था बन गए थे। उस दौर में कांग्रेसी श्रीपति मिश्र सुल्तानपुरवाले मुख्यमंत्री थे। उनके सहकारिता मंत्री थे पं. बच्चा पाठक।उन्होंने “जनमोर्चा” पर कहर ढाना शुरू कर दिया। पत्रकार-मित्र विश्वनाथ प्रताप सिंह तब भारत सरकार में मंत्री बन गए थे। उनको मैं ने पूरी गाथा बताई। एक संवाददाता के नाते अपने दैनिक “टाइम्स ऑफ इंडिया” में सरकारी साजिश की मैंने रपट भेजी। चार कालम में छपी। शीर्षक था : “कैसे एक सहकारी दैनिक को इन्दिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी सरकार नष्ट कर रही है।” तब लखनऊ में “टाइम्स आफ इंडिया” नहीं छपता था। उसका दिल्ली संस्करण आता था। मेरी रपट का तत्काल असर पड़ा। मंत्री बच्चा पाठक ने मुलाकात करना चाहा। मामला समझ गए और तुरंत सारी हरकत बंद करवा दी। श्रीपति मिश्र की नहीं चली।

दूसरा हमला “जनमोर्चा” पर हुआ जब भाजपा यूपी और केंद्र में सत्ता पर थी। खेद की बात यह थी कि अन्य दैनिक समाचारपत्रों से इस मामले में सहयोग नहीं मिला। तब झाँसी से कोई अफसर फैजाबाद का डीएम तैनात हुआ था। वही खलनायक था। एक आईडिया तब मुझे कौंधा। लखनऊ के राजभवन में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की प्रेस कॉन्फ्रेंस थी। मैं भी पहुंच गया। हमेशा की भांति आखरी पंक्ति में बैठा था। जब सवाल-जवाब खत्म हो गए तो मैं उठा, हाथ खड़ा किया और मसले को उठाया। अब चार दशकों से परिचित रहे अटलजी तभी उठे ही थे, फिर बैठ गए। मुझे बोलने का इशारा किया। मेरा नपातुला प्रश्न था : “अटल जी आप और हम सब तानाशाही के खिलाफ लड़े थे, जेल गए। आज आपकी यूपी सरकार उसी अन्याय को दोहरा रही है। जनमोर्चा का प्रकरण मैंने बताया। अटलजी ने मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की ओर देखा। कहा भी कि अखबारी आजादी बनाए रखना शासक का पावन कर्तव्य है। भला हो राजनाथ सिंह का तुरंत कार्यवाही हुई। फिलहाल जनमोर्चा को हथियाने की सरकारी हरकत बंद हो गई।

शीतला सिंह जी का मैं निजी रूप से अत्यंत आभारी रहूंगा क्योंकि मुझे IFWJ अध्यक्ष का चुनाव जिताने में उनकी खास किरदारी रही। मुख्य चुनाव अधिकारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट दैनिक“देशाभिमानी” के संपादक कामरेड सीवी पापाचन थे। इक्यानवे प्रतिशत वोट पाकर मैं जीता। अब समस्या थी राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन आयोजन करने की। शीतला सिंह ने फैजाबाद में करने का सुझाव दिया। यह जून 1984 को हुआ। स्वयं शीतला सिंह स्वागत समिति के अध्यक्ष थे। उस भीषण गर्मी के सम्मेलन में संबोधन करने में इंदिरा गांधी काबीना के मंत्रियों की भीड़ लग गई थी। विश्वनाथ प्रताप सिंह, नारायण दत्त तिवारी, वीएन गाडगिल, आरिफ मोहम्मद खान, मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र, उनके मंत्री लोकपति त्रिपाठी इत्यादि। प्रतिनिधि भी यूरोप, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया से पधारे थे।

एक संकट आया था और शीतला सिंह ने सही वक्त सही राय दी। नतीजन हम ने सही फैसला किया। फैजाबाद में यूपी यूनियन का अधिवेशन होना था। उस वक्त कांग्रेस से हटाए गए पं. हेमवती नंदन बहुगुणा को मैं आमंत्रित करना चाहता था। उन्होंने चित्रकूट में (गांधी जयंती, 2 अक्टूबर 1978 को) हमारे पत्रकारों और समाचारपत्र कर्मियों के महासंघ (कान्फेडेरेशन) के आयोजन में बड़ी मदद की थी। अब वे विपक्ष में थे। हम सूरजमुखी परिपाटी को तोड़ना चाहते थे। अतः बागी बहुगुणा को आमंत्रित किया। मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मुझे बताया कि यदि बहुगुणा जी आये तो वे नहीं आ पाएंगे। “मैडम (इंदिरा गांधी) नापसंद करेंगी।” अतः उद्घाटन के बाद दूसरे दिन बहुगुणाजी किया।

शीतला सिंह जी IFWJ की 21-दिनोंवाली विदेश यात्रा में मेरा अधिक सामीप्य हुआ। हम दोनों में इसलिए सामंजस्य बना क्योंकि उनकी तरह मैं भी शराब, तंबाकू और मांसाहार का परहेजी हूं। इससे हित हुआ। उत्तरी कम्युनिष्ट कोरिया में झींगुर की तरकारी परोसी गई थी। मैं तो अज्ञानी था। शीतलाजी ने सचेत कर दिया। वल्लभाचार्य के वंशज मेरा विप्र-धर्म भ्रष्ट होने से बच गया। कोरिया से फिर हमारा 35-सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल सोवियत रूस, नीदरलैंड, फ्रांस, स्विजरलैंड, ब्रिटेन आदि गया। जिनेवा में श्रममंत्री मोहसीन किदवई से भेंट हुई। वे अंतरराष्ट्रीय लेबर संगठन की बैठक में आईं थीं। मुझे बड़ा अच्छा लगा। उस महान और प्रिय संपादक कामरेड शीतला सिंह का। स्वर्ग पहुंचकर भी वे जरूर समाचार संकलन और सम्पादन में जुट गए होंगे। आदत कहां छूटती है ?

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