लखनऊ। मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन 5 दिसम्बर मंगलवार को काल भैरव जयंती या कालभैरव अष्टमी मनाई जाएगी। इस दिन शिव के पांचवे रुद्र अवतार माने जाने वाले कालभैरव की पूजा-अर्चना साधक विधि-विधान से करते हैं। अष्टमी तिथि 4 दिसम्बर को रात्रि 9:59 से प्रारम्भ होकर 5 दिसम्बर को रात्रि 12:37 तक रहेगी । काल भैरव भगवान शिव का रौद्र, विकराल एवं प्रचण्ड स्वरूप है। तंत्र साधना के देवता काल भैरव की पूजा रात में की जाती है इसलिए अष्टमी में प्रदोष व्यापनी तिथि का विशेष महत्व होता है। यह दिन तंत्र साधना के लिए उपयुक्त माना गया है। काल भैरव को दंड देने वाला देवता भी कहा जाता है इसलिए उनका हथियार दंड है।
इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने से भी उनकी विशेष कृषा प्राप्त होती है। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति चौकी पर गंगाजल छिड़ककर स्थापित करे। इसके बाद काल भैरव को काले, तिल, उड़द और सरसो का तेल अर्पित करे। भैरव जी का वाहन श्वान (कुत्ता ) है। भैरव के वाहन कुत्ते को पूएं खिलाना चाहिए। भैरव जी को काशी का कोतवाल माना जाता है। भैरव की पूजा से शनि राहु केतु ग्रह भी शान्त हो जाते है बुरे प्रभाव और शत्रुओं से छुटकारा मिल जाता है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं पूजन के लिए सुबह 10.53 से दोपहर 1.29 बजे तक प्रदोष काल और रात 11.44 से 12.37 बजे तक का समय श्रेष्ठ है।