अति उत्साह में आकर भाजपा कहीं 2004 के चुनावों के दौरान वाली गलती ना कर दे!

अतिउत्साही भाजपा को यह विस्मृत नहीं होना चाहिए कि साल 2004 में भी उसके पास नरेन्द्र मोदी व अमित शाह की तरह अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी जैसे करिश्माई नेतृत्व की छत्रछाया थी। उस लोकसभा चुनावों में भारत उदय का आकर्षक नारा दिया गया था।

एक कहानी है, देवराज इन्द्र के गजराज अक्सर गन्ने खाने के लिए पृथ्वीलोक पर एक खेत में आते थे। उस खेत का मालिक बहुत परेशान था, क्योंकि फसल का नुकसान तो होता परन्तु उसे चोर के कहीं पदचिन्ह नहीं मिलते। एक रात गुस्साया किसान चोर को पकड़ने के लिए खेत में छिप कर बैठ गया, जब गजराज धरती पर उतरे तो किसान ने उस एरावत की पूंछ पकड़ ली। गजराज घबरा गए और जान बचाने के लिए तुरन्त इन्द्रलोक की ओर उड़ लिए और उसके साथ-साथ किसान भी पूंछ पकड़े उड़ चला। गजराज को चिन्ता हो गई कि जीवित व्यक्ति स्वर्गलोक पहुंचा तो सारी मर्यादा भंग हो जाएगी, तो उसने अपनी पूंछ मुक्त करवाने के लिए खूब मेहनत की। गजरात उड़ते-उड़ते कभी उल्टा-पुल्टा हुए तो कभी शरीर को झटकाया, लेकिन ज्यों-ज्यों झटके लगे किसान की पकड़ त्यों-त्यों मजबूत होती जाए। अब गजराज ने युक्ति से काम लिया और रणनीति बदली। उसने किसान से बातचीत करनी शुरू कर दी। एरावत ने पूछ लिया कि तुम इतने मीठे गन्ने उगाते कैसे हो? अपनी बड़ाई सुन फूल कर कुप्पा हुए किसान ने सारी तकनीक बता दी। बातचीत करते-करते दोनों में मित्रता हो गई। मौका देख कर एरावत ने कहा, आज तक जितने गन्ने मैंने तुम्हारे खेत के खाए हैं चलो मैं महाराज इन्द्रदेव से बोल कर उतना सोना तुम्हें पुरस्कार में दिलवा देता हूं। सोने का नाम सुनते ही किसान इतना खुश हुआ कि ताली बजाने लगा, उसने जैसे ही ताली बजाने के लिए हाथ खोले तो धड़ाम से धरती पर आ गिरा और गजराज महोदय स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गए। जो किसान हाथी के साथ संघर्ष के समय विकट परिस्थितियों में भी उसकी पूंछ पकड़े रहा वह अनुकूल परिस्थिति होते ही धड़ाम से धरती पर आ गिरा। प्रतिकूल परिस्थितियों के खतरे तो सर्वज्ञात हैं परन्तु कहानी बताती है कि अनुकूल हालात भी खतरे से खाली नहीं होते, प्रतिकूल हालातों में इंसान संघर्ष करता है परन्तु महौल बदलेत ही अक्सर असावधान हो जाता है और यहीं चूक कर जाता है।

देश में लोकसभा चुनावों का शंखनाद हो चुका है। आज परिस्थितियां सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पक्ष में बताई जा रही हैं। वर्तमान में द्रुत गति से हो रहा विकास, कुलांचे भरती अर्थव्यवस्था, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को लक्ष्य बना अग्रसर हो रहा भारत व विदेशी कूटनीतिक मोर्चों पर देश को मिलती सफलता या बात करें सांस्कृतिक उत्थान और साम्प्रदायिक सौहार्द की, तो थोड़ी बहुत नुक्ताचीनी के बाद कमोबेश हर विरोधी भी मान रहा है कि वर्तमान सरकार का कार्यकाल अच्छा रहा है। इन परिस्थितियों से ही तो उत्साहित हो कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अबकी बार चार सौ पार का उत्साही नारा दिया है, सत्ताधारियों की दृष्टि से हर कहीं बम-बम है, बस यहीं से शुरू हो सकता है अनुकूल परिस्थिति के खतरे पैदा होने का क्रम। अतिउत्साही भाजपा को यह विस्मृत नहीं होना चाहिए कि साल 2004 में भी उसके पास नरेन्द्र मोदी व अमित शाह की तरह अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी जैसे करिश्माई नेतृत्व की छत्रछाया थी। उस लोकसभा चुनावों में भारत उदय का आकर्षक नारा दिया गया था, अर्थव्यवस्था व विकास तब भी मृगझुण्डों के साथ चुंगियां भरने की स्पर्धा कर रहे थे परन्तु पार्टी की दृष्टि से परिणाम निराशाजनक रहे। छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्षा सोनिया गान्धी ने राजग को ऐसी पटकनी दी कि अगले दस साल तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार सत्ता में रही।

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