दक्षिण की अयोध्या कहे जाने वाले भद्राचलम के श्री सीताराम स्‍वामी मंदिर में.

गोदावरी के तट पर है मंदिर 

आंध्रप्रदेश में खम्मण जिले का शहर है भद्राचलम जहां श्री राम का प्रसिद्ध श्री सीताराम स्‍वामी मंदिर गोदावरी के तट पर बना है। कहते हैं कि ये मंदिर उसी स्‍थान पर निर्मित है जहां दक्षिण में माता सीता आैर लक्ष्मण के साथ श्री राम आए थे। भद्राचलम का ये श्रीराम मंदिर हिन्दुओं की आस्था से गहरा जु़ड़ा एक प्रमुख धार्मिक स्थान है। भक्त इस स्थान को दक्षिण की अयोध्या के नाम से भी बुलाते हैं। पौराणिक कथाआें के अनुसार इस स्थान पर पर्णकुटी बनाकर भगवान राम वनवास की काफी लंबी अवधि तक रहे थे। पर्णशाला नाम की अब भी यहां मौजूद है जिसे राम जी की कुटी बना कर रहे थे। यहां मौजूद कुछ शिलाखंडों के बारे में किंवदंती है कि सीताजी ने वनवास के दौरान यहां अपने वस्त्र सुखाए थे। कुछ मान्यताआें के अनुसार रावण ने सीताजी का अपहरण यहीं से किया था।

मंदिर निर्माण की अनोखी कथा 

इस स्थान के वनवासियों की एक जनश्रुति के अनुसार यहां पर राम मंदिर बनने के पीछे की कहानी बेहद अनोखी है। कहते हैं कि दम्मक्का नाम की राम जी की एक भक्त वनवासी महिला भद्रिरेड्डीपालेम ग्राम में रहती थी। उसका राम नाम नाम का एक गोद लिया हुआ पुत्र भी था। एक दिन वो पुत्र वन में खो गया आैर उसे खोजते हुए दम्मक्का जंगल में पहुंची। जब वो पुत्र का नाम राम कह कर आवाज लगा रही थी  तभी उसे एक गुफा में से आवाज आर्इ कि माता मैं यहां हूं।  वहां पहुंचने पर दम्मक्का को सीता, राम और लक्ष्मण की प्रतिमायें मिलीं। भक्ति से विभोर दम्मक्का को अपना पुत्र भी उसी स्थान पर मिल गया। तब उसने संकल्प किया कि वो इसी स्थान पर श्री राम का मंदिर बनायेगी। इसके पश्चात उसने बांस की छत बनाकर एक अस्थाई मंदिर निर्मित  कर दिया। समय के साथ वो स्थान वनवासी समुदाय में भद्रगिरि या भद्राचलम नाम से प्रचलित हो गया आैर वे उसी पहाड़ी गुफा में राम जी का पूजन करने लगे। यही मंदिर आंध्रप्रदेश के खम्मण जिले के भद्राचलम स्थित राम मंदिर के रूप में प्रसिद्घ हुआ। यही कारण है कि भद्राचलम वनवासी बहुल क्षेत्र है और राम वनवासियों के पूज्य हैं। 

यही है पंचवटी 

यहां के लोगों की मान्यता के अनुसार यही स्थान रामायण में वर्णित पंचवटी है। बाद में मध्यकाल में रामभक्त कंचली गोपन्ना नाम के एक तहसीलदार ने बांस से बने प्राचीन मंदिर का जीर्णो उद्घार करवा कर उसी स्थान पर पत्थरों का भव्य मंदिर बनवाया। मंदिर बनवाने के कारण सब उनको रामदास कहने लगे। कहते हैं कि यही रामदास, संत कबीर के आध्यात्मिक गुरु थे। रामदास से ही रामानंदी संप्रदाय की दीक्षा प्रारंभ हुर्इ थी। 

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