हल्द्वानी : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज रविवार को अपने ‘मन की बात’ के 122वें संस्करण में उत्तराखंड के अल्मोड़ा के जाखनदेवी के पास गल्ली निवासी जीवन चंद्र जोशी का उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि जीवन चंद्र ने हल्द्वानी में आकर अपनी मेहनत की बदौलत पूरे क्षेत्र का नाम रोशन कर दिया है। देवभूमि उत्तराखंड के जीवन जोशी की ‘बगेट’ कला की प्रधानमंत्री माेदी ने खूब तारीफ की।
प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में बताया कि वर्तमान में हल्द्वानी के कठघरिया निवासी जीवन जोशी चीड़ के पेड़ की छाल पर अपनी रचनात्मकता उकेरते हैं। सारा काम अपने हाथ से करते हैं, उनकी इस कलाकारी को देख हर कोई स्तब्ध हो जाता है। उन्होंने बताया कि जीवन चंद्र जोशी का जन्म अल्मोड़ा में हुआ। दो बरस के होने पर अचानक ही उनके पैर निष्क्रिय हो गए। काफी समय बाद जीवन को पता चला कि उन्हें पोलियो है। वे आज तक शारीरिक रुप से दिव्यांग हैं। लेकिन उनकी कलाकृतियों देखने के बाद हर किसी के मुंह से वाह ही निकलता है।
अपने बचपन को याद करते हुए वे कहते हैं कि मैं तो पूरे बचपन में घिसट-घिसट के ही आगे बढ़ा। पोलियो ने स्कूल की दुनिया नहीं देखने दी। घर में भाई बहन जो लिखते-पढ़ते उसकी नकल करता। वहीं मेरे चचेरे भाई ने मुझे बाहर की दुनिया दिखाई। वह अक्सर अल्मोड़ा आता और घर में अधिकतर आने वाले डोटियाल की पीठ पर मुझे बैठाकर कभी मेला घुमाता, कभी सिनेमा हॉल में पिक्चर दिखाता। बचपन से लिखने-पढ़ने का खूब शौक रहा। ऐसे में उसी डोटियाल की पीठ पर स्कूल जाकर मैंने पांचवीं के बाद प्राइवेट हाई स्कूल भी किया।
जोशी के अनुसार मुझे बचपन में पिता ने क्राफ्ट से जुड़े कई काम सिखाए। वहीं लकड़ी की कलाकृति के प्रति उनका रुझान करीब 30 साल पहले शुरु हुआ। लेकिन गंभीरता से काष्ठ कला के क्षेत्र में वे साल 2015 से सक्रिय हुए और उन्होंने अपनी अनूठी कलाशैली को ‘बगेट कला’ का नाम दिया। चीड़ की छाल को ही कुमांऊँनी में बागेट कहते हैं। जोशी के अनुसार वैसाखी के सहारे थोड़ा चलने लायक होने पर लगा कि कैसे आत्मनिर्भर बन सकूं। इसके बाद मैं पोस्टऑफिस की लघुबचत योजनाओं का एजेंट बन गया।
इसके बाद लकड़ी की कारीगरी का काम उनके अल्मोड़ा के एक मित्र संजय बेरी जो लकड़ी के कारीगर थे, उन्होंने सिखाया। फिर उन्होंने कत्यूरीशैली के मंदिर, वाद्ययंत्र, योगमुद्रा, घड़ी आदि कलाकृतियां बनाईं। सबसे ज्यादा मंदिरों की कलाकृतियां बनाईं हैं। वे कहते हैं कि वे अब भगवानों की मूर्तियां भी बनाना चाहते हैं, जैसे भगवान शिव व भगवान गणेश की। ऐसे में उनकी समस्या यह है कि इसे बनाने में सूक्ष्म औजार लगते हैं। लेकिन आर्थिक स्थिति मजबूत न होने के चलते वे ये औजार खरीदने में सक्ष्म नहीं हैं।
वे पहले बड़ी कलाकृतियां बनाने में रुचि रखते थे, लेकिन अब वे छोटी बनाना चाहते हैं। दरअसल बड़ी कलाकृतियां खरीदने में हर किसी की जेब साथ नहीं देती। जबकि छोटी कलाकृतियां अधिकांशलोग खरीद सकते हैं। ये जल्द भीबन जातीं हैं, यदि उन्हें छोटी कलाकृतियों के लिए औजार मिल जाते हैं तो वे ये शुरु कर सकते हैं।
जोशी इस कला को सिखाने के लिए एक ट्रैनिंग सेंटर खोलना चाहते हैं। जिसका उद्देश्य ये हैं कि ये कला जीवित रहे और लोगों को इससे रोजगार भी मिलता रहे।