चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस बार शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में एक खास भूमिका निभाने जा रहे हैं. रॉयटर्स के मुताबिक, वे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का खुद स्वागत करेंगे. यह कदम केवल औपचारिकता नहीं बल्कि एक बड़े राजनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि यह ग्लोबल साउथ की एकजुटता और अमेरिका की बढ़ती टैरिफ पॉलिसी के बीच सामूहिक शक्ति का प्रदर्शन होगा.
कई देशों के नेता होंगे शामिल
इस समिट में न सिर्फ भारत और रूस, बल्कि मध्य एशिया, मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों के नेता भी शामिल होंगे. इससे यह साफ है कि SCO अब केवल क्षेत्रीय संगठन नहीं रहा, बल्कि धीरे-धीरे एक बड़े वैश्विक मंच का रूप ले रहा है.
आखिरी बार कब मिले थे?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह दौरा खास मायने रखता है क्योंकि वे लगभग सात साल बाद चीन जा रहे हैं. 2020 की गलवान घाटी झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं. ऐसे में मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात को काफी अहम माना जा रहा है. दोनों आखिरी बार 2024 में रूस के कजान शहर में हुए BRICS समिट में आमने-सामने आए थे.
रूस ने हाल ही में संकेत दिए हैं कि वह चाहता है कि भारत, चीन और रूस की त्रिपक्षीय वार्ता जल्द शुरू हो. अगर ऐसा होता है तो यह एशिया की राजनीति में नए समीकरणों की ओर इशारा करेगा.
प्रेसिडेंट ट्रंप को असहज कराएगी ये बैठक
चीन-ग्लोबल साउथ प्रोजेक्ट के एडिटर-इन-चीफ एरिक ओलैंडर के मुताबिक, यह समिट महज कूटनीति नहीं बल्कि एक शक्ति प्रदर्शन है. उनके अनुसार, “यह सम्मेलन यह दिखाने का प्रयास है कि अमेरिका, ईरान, रूस और अब भारत को रोकने की कोशिशों में सफल नहीं हो पाया है. BRICS ने जिस तरह डोनाल्ड ट्रंप को असहज किया, ठीक वैसे ही SCO भी वैश्विक राजनीति को झकझोरने की तैयारी कर रहा है.”
चीनी विदेश मंत्रालय ने भी कहा है कि इस साल का SCO समिट 2001 में संगठन की स्थापना के बाद सबसे बड़ा सम्मेलन होगा. मंत्रालय ने इसे “नए तरह के अंतरराष्ट्रीय रिश्तों को गढ़ने वाली अहम ताकत” बताया है.
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