विधानमंडलों को लोकमत को नीति में बदलने की दिशा में निभानी होगी सक्रिय भूमिका: ओम बिरला

कोहिमा : लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि लोकतंत्र की सशक्तता तभी संभव है जब संसद और विधानसभाओं में गरिमा, अनुशासन और संवाद की संस्कृति कायम रहे। योजनाबद्ध अव्यवस्था और नारेबाजी जैसी प्रवृत्तियां लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करती हैं और जनता को सार्थक विमर्श से वंचित करती हैं। बिरला नागालैंड विधानसभा में आयोजित कॉमनवेल्थ संसदीय संघ (सीपीए) के 22वें वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।

 

इस अवसर पर नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो, राज्यसभा उपसभापति हरिवंश, नागालैंड विधानसभा अध्यक्ष शारिंगैन लोंगकुमेर तथा राज्य के संसदीय कार्य मंत्री के जी केन्ये सहित उत्तर पूर्व के आठ राज्यों के विधानसभाओं के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष उपस्थित थे।

 

बिरला ने जनप्रतिनिधियों से अपील की कि वे लोकमत को नीति में परिवर्तित करने की दिशा में सक्रिय और रचनात्मक भूमिका निभाएं, क्योंकि यही लोकतंत्र का वास्तविक दायित्व है। ओम बिरला ने कहा कि विधानमंडलों की जिम्मेदारी केवल कानून बनाना नहीं है, बल्कि जनता की आकांक्षाओं और चिंताओं को नीतियों में रूपांतरित करना उनका मूल कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि जब लोकमत नीति का आधार बनता है तब सतत और समावेशी विकास संभव होता है। उन्होंने उत्तर पूर्व में हो रहे डिजिटल परिवर्तन की सराहना करते हुए कहा कि नागालैंड विधानसभा का पूर्णतः पेपरलेस होना पारदर्शी और आधुनिक शासन की दिशा में एक आदर्श उदाहरण है। साथ ही उन्होंने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों का प्रयोग जिम्मेदारीपूर्वक और नैतिकता के साथ होना चाहिए ताकि यह लोकतंत्र की मजबूती का माध्यम बने। केंद्र और राज्यों के संबंधों पर उन्होंने कहा कि रचनात्मक संवाद और सहयोग से ही सुशासन और जनकल्याणकारी नीतियां संभव हैं। उत्तर पूर्व के सर्वांगीण विकास के लिए ऐसी रणनीति जरूरी है जिसमें जलवायु अनुकूलता, हरित अवसंरचना और जनसहभागिता को प्रमुखता दी जाए।

 

ओम बिरला ने कहा कि उत्तर पूर्व की समृद्ध संस्कृति, परंपराएं और प्राकृतिक सौंदर्य भारत की अनमोल धरोहर हैं। स्थानीय उत्पादों, हस्तशिल्प और परंपरागत उद्योगों को प्रोत्साहित कर आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार किया जा सक

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