बिहार चुनाव में चकनाचूर हुआ महागठबंधन का सपना

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राजनीतिक विशलेषकों के सारे अनुमान उलट कर दिये हैं। शाम सात बजे तक के रूझान में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) 202 से ज्यादा सीटों पर निर्णायक बढ़त बनाए हुए है, जबकि महागठबंधन मात्र 35 सीटों पर सिमटता दिख रहा है।

 

बिहार विधानसभा के इस चुनाव में जनता ने स्पष्ट संदेश दिया है कि स्थिरता के लिए नीतीश कुमार और नेतृत्व के लिए नरेन्द्र मोदी हैं। दूसरी ओर, विपक्षी महागठबंधन की लुटिया डूबती दिख रही है। नयी नवेली प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी कोई असर नहीं छोड़ पाई, जिसने सबसे ज्यादा सभी को चौंकाया है। ऐसे में अहम सवाल यह है कि महागठबंधन इतने बड़े अंतर से क्यों पिछड़ा?

 

सिलसिलेवार बात की जाए, तो सबसे पहले सीटों के बंटवारे के दौरान ही महागठबंधन के घटक दलों के बीच अंदरूनी अविश्वास दिखा। सीट शेयरिंग के मतभेद, देर से घोषणा और एकजुट कैंपेन की कमी ने जमीनी स्तर पर महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया। चुनावी पोस्टर से लेकर जनसभाओं तक, तीनों दलों में तालमेल न दिखना वोट बिखराव और करारी शिकस्त की बड़ी वजह बना। वहीं राजद ने 144 सीटों में से 52 पर यादव उम्मीदवार उतारकर जातीय समीकरण को अत्यधिक तवज्जो दी। इससे गैर-यादव ओबीसी, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और सवर्ण समुदाय महागठबंधन से दूर हुए। बीजेपी ने इसे यादव राज कहा और शहरी तथा मध्यम वर्ग में इसका असर दिखा।

 

महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के चेहरे राजद के तेजस्वी यादव ने सरकारी नौकरी, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा जैसे बड़े वादे तो किए, लेकिन वे इनके लिए धन जुटाने का मॉडल या कोई ठोस समय-सीमा नहीं बता सके। करोड़ों नौकरियां और तेजस्वी प्रण जैसे नारों ने शुरुआत में उत्साह जरूर पैदा किया, लेकिन ब्लूप्रिंट न आने से विश्वसनीयता कमजोर हुई। दूसरी ओर राजग ने इन वादों को अवास्तविक बताकर माहौल बनाया और इसमें सफल भी रहे।

 

महागठबंधन का मुस्लिम बहुल सीटों पर फोकस और कई बयानों ने विपक्ष को संवेदनशील नैरेटिव थमाया। भाजपा ने जंगलराज, कानून-व्यवस्था और मुस्लिम तुष्टिकरण को आक्रामक रूप से उठाया। कई स्थानों पर यादव वोट भी खिसक गए। राजद उम्मीदवारों के उग्र कट्टा बयान ने नुकसान पहुंचाया, जिससे पुरानी छवि फिर उभर आई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के स्टार प्रचारकों ने जंगलराज के मुद्दे का जोर-शोर से उठाया। इस मुद्दे ने सबसे ज्यादा महिलाओं और युवाओं को प्रभावित किया। बदलाव का प्रतीक माने जाने वाले युवाओं ने जंगलराज की कहानियां और किस्से सुनकर महागठबंधन से दूरी बना ली।

 

2020 के चुनाव में लालू यादव की पार्टी राजद को 75 सीटों पर जीत मिली थी। सीटों की तालिका में वह पहले नंबर पर थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 19 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। राजनीतिक विशलेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्र के अनुसार, बिहार चुनाव 2025 में महागठबंधन की रणनीति विफल रही, जिससे गठबंधन कमजोर हो गया। पारिवारिक कलह और रणनीतिक गलतियों ने महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया। रणनीति के स्तर पर महागठबंधन की कमजोर योजना और कार्यान्वयन के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। गठबंधन के भीतर समन्वय की कमी भी एक बड़ी समस्या थी। महागठबंधन के घटक दलों के बीच आपसी मतभेद और बिखराव ने चुनावी प्रदर्शन को नकारात्मक रूप से प्रभा

वित किया।

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