जानिए मकर संक्रांति पर : नागा साधु कहां से आते हैं और कहां जाते हैं?

प्रयागराज में मकर संक्रांति के स्‍नान के साथ ही महाकुंभ का आगाज होने जा रहा है. कुंभ में हमेशा नागा अखाड़ों के शाही स्‍नान सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र होते हैं. शिव के भक्‍त इन नागा साधुओं की एक रहस्‍यमय दुनिया है. केवल कुंभ में ही ये दिखते हैं. उसके पहले और बाद में आम आबादी के बीच ये कहीं नहीं दिखते. आम आबादी से दूर ये अपने ‘अखाड़ों’ में रहते हैं. इन रहस्‍यमयी नागा साधुओं पर आइए डालते हैं एक नजर:

नागा साधु
कहा जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि दत्‍तात्रेय ने नागा संप्रदाय की स्‍थापना की. आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए नागा संप्रदाय को संगठित किया. ये भगवान शिव के उपासक होते हैं. नागा साधु जिन जगहों पर रहते हैं, उनको ‘अखाड़ा’ कहा जाता है. ये अखाड़े आध्‍यात्मिक चिंतन और कुश्‍ती के केंद्र होते हैं.

‘अखाड़े’
शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्‍थापना के लिए देश के चार कोनों में चार पीठों का निर्माण किया. उन्‍होंने मठों-मंदिरों की संपत्ति की रक्षा करने के लिए और धर्मावलंबियों को आतताईयों से बचाने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में ‘अखाड़ों’ की शुरुआत की.

naga sadhu
नागा परंपरा में दीक्षित होने की प्रक्रिया बेहद जटिल है. कोई भी अखाड़ा बहुत अच्‍छी तरह जांच-पड़ताल के बाद ही किसी को अपने पंथ में प्रवेश की अनुमति देता है.

दरअसल सामाजिक उथल-पुथल के उस युग में आदिगुरू शंकराचार्य को लगा कि केवल आध्यात्मिक शक्ति से ही धर्म की रक्षा के लिए बाहरी चुनौतियों का मुकाबला नहीं किया जा सकता. इसलिए उन्‍होंने जोर दिया कि युवा साधु व्यायाम करके अपने शरीर को कसरती बनाएं और शस्‍त्र चलाने में भी निपुणता हासिल करें. इसलिए ऐसे मठों का निर्माण हुआ जहां इस तरह के व्यायाम या शस्त्र संचालन का अभ्यास कराया जाता था, ऐसे मठों को ही ‘अखाड़ा’ कहा गया.

देश में आजादी के बाद इन अखाड़ों ने अपने सैन्‍य चरित्र को त्‍याग दिया. इन अखाड़ों के प्रमुख ने जोर दिया कि उनके अनुयायी भारतीय संस्कृति और दर्शन के सनातनी मूल्यों का अध्ययन और अनुपालन करते हुए संयमित जीवन व्यतीत करें. इस समय निरंजनी अखाड़ा, जूनादत्‍त या जूना अखाड़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा समेत 13 प्रमुख अखाड़े हैं.

6 साल में बनते हैं नागा साधु
नागा परंपरा में दीक्षित होने की प्रक्रिया बेहद जटिल है. कोई भी अखाड़ा बहुत अच्‍छी तरह जांच-पड़ताल के बाद ही किसी को अपने पंथ में प्रवेश की अनुमति देता है. इस पूरी प्रक्रिया में छह साल लग जाते हैं. इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते. कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर निर्वस्‍त्र (नग्‍न) रहते हैं.  उससे पहले उसे लंबे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है. अंतिम प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान होती है जिसमें उसका स्वयं का पिंडदान तथा दण्डी संस्कार आदि शामिल होता है.

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com