ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध की काट खोजने यूरोप पहुंचा भारतीय दल

ईरान को लेकर अमेरिकी की बढ़ती सख्ती देख भारत भी अपनी भावी रणनीति को लेकर सतर्क हो गया है। ईरान के साथ अपने कारोबारी रिश्तों को देखते भारत अभी से ऐसे विकल्प की तलाश में जुट गया है जिससे अमेरिकी प्रतिबंधों को निष्प्रभावी किया जा सके। इस संबंध में पिछले हफ्ते भारत का उच्चस्तरीय दल यूरोपीय देशों की यात्रा पर गया था ताकि अमेरिकी प्रतिबंधों के बढ़ने के बाद एक साझा नीति तैयार की जा सके।ईरान को लेकर अमेरिकी की बढ़ती सख्ती देख भारत भी अपनी भावी रणनीति को लेकर सतर्क हो गया है। ईरान के साथ अपने कारोबारी रिश्तों को देखते भारत अभी से ऐसे विकल्प की तलाश में जुट गया है जिससे अमेरिकी प्रतिबंधों को निष्प्रभावी किया जा सके। इस संबंध में पिछले हफ्ते भारत का उच्चस्तरीय दल यूरोपीय देशों की यात्रा पर गया था ताकि अमेरिकी प्रतिबंधों के बढ़ने के बाद एक साझा नीति तैयार की जा सके।  इस दल में विदेश मंत्रालय, पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय के उच्चाधिकारी शामिल थे। भारत खास तौर पर ईरान से आयात होने वाले कच्चे तेल के लिए भुगतान का कोई सुरक्षित रास्ता अख्तियार करना चाहता है ताकि वहां से होने वाले तेल आयात पर कोई खास असर नहीं पड़े।  विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पिछले हफ्ते दावा किया था, 'भारत किसी देश पर किसी दूसरे देश की तरफ से लगाए गए प्रतिबंधों को नहीं मानता है। हां, अगर संयुक्त राष्ट्र की तरफ से प्रतिबंध लगाया जाता है तो बात दूसरी है।' इसका साफ मतलब है कि भारत ईरान पर अभी अमेरिकी प्रतिबंधों को नहीं मानेगा लेकिन अगर आगे चलकर अमेरिका दूसरे देशों को मना कर संयुक्त राष्ट्र के जरिये ईरान पर प्रतिबंध प्रभावी करता है तो भारत के लिए दिक्कत हो सकती है।  यूरोपीय देशों के दौरे पर गए भारतीय दल ने इसी संभावना की काट खोजने की कोशिश की। भारत यह परखने की कोशिश कर रहा है कि प्रतिबंधों के बढ़ने की हालात में यूरोपीय बैंकिंग व्यवस्था के जरिये किस तरह से ईरान को उसके क्रूड के बदले भुगतान किया जा सकता है।  अभी भी भारत ईरान से जो तेल खरीदता है, उसके एक हिस्से का भुगतान जर्मनी के बैंकों के जरिये किया जाता है। अभी तक यूरोप के अधिकांश देश ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों को लेकर काफी असहज हैं और इसका खुला विरोध कर रहे हैं।  विदेश मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि ईरान पर प्रतिबंध को लेकर हम अमेरिका को भी समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर उसकी तरफ से कड़ाई की गई तो यह उसके हितों के ही खिलाफ है। मसलन, भारत चाबहार के रास्ते अफगानिस्तान में शांति कायम करने की जो कोशिश कर रहा है, वह अमेरिका के हितों के मुताबिक है लेकिन प्रतिबंध की वजह से अगर चाबहार पोर्ट का काम प्रभावित होता है तो इसका उल्टा असर हो सकता है।  नवंबर, 2017 भारत व अमेरिका के विदेश मंत्रियों की बैठक में भी यह मुद्दा उठा था तब अमेरिका ने भारतीय तर्क को स्वीकार किया था। लेकिन अब अमेरिका का रुख बदला हुआ नजर आ रहा है। सनद रहे कि भारत ने चालू वित्त वर्ष के दौरान ईरान से बड़े पैमाने पर कच्चा तेल खरीदने की तैयारी की थी। अमेरिका नहीं चाहता है कि भारत ईरान से तेल खरीदे।

इस दल में विदेश मंत्रालय, पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय के उच्चाधिकारी शामिल थे। भारत खास तौर पर ईरान से आयात होने वाले कच्चे तेल के लिए भुगतान का कोई सुरक्षित रास्ता अख्तियार करना चाहता है ताकि वहां से होने वाले तेल आयात पर कोई खास असर नहीं पड़े।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पिछले हफ्ते दावा किया था, ‘भारत किसी देश पर किसी दूसरे देश की तरफ से लगाए गए प्रतिबंधों को नहीं मानता है। हां, अगर संयुक्त राष्ट्र की तरफ से प्रतिबंध लगाया जाता है तो बात दूसरी है।’ इसका साफ मतलब है कि भारत ईरान पर अभी अमेरिकी प्रतिबंधों को नहीं मानेगा लेकिन अगर आगे चलकर अमेरिका दूसरे देशों को मना कर संयुक्त राष्ट्र के जरिये ईरान पर प्रतिबंध प्रभावी करता है तो भारत के लिए दिक्कत हो सकती है।

यूरोपीय देशों के दौरे पर गए भारतीय दल ने इसी संभावना की काट खोजने की कोशिश की। भारत यह परखने की कोशिश कर रहा है कि प्रतिबंधों के बढ़ने की हालात में यूरोपीय बैंकिंग व्यवस्था के जरिये किस तरह से ईरान को उसके क्रूड के बदले भुगतान किया जा सकता है।

अभी भी भारत ईरान से जो तेल खरीदता है, उसके एक हिस्से का भुगतान जर्मनी के बैंकों के जरिये किया जाता है। अभी तक यूरोप के अधिकांश देश ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों को लेकर काफी असहज हैं और इसका खुला विरोध कर रहे हैं।

विदेश मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि ईरान पर प्रतिबंध को लेकर हम अमेरिका को भी समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर उसकी तरफ से कड़ाई की गई तो यह उसके हितों के ही खिलाफ है। मसलन, भारत चाबहार के रास्ते अफगानिस्तान में शांति कायम करने की जो कोशिश कर रहा है, वह अमेरिका के हितों के मुताबिक है लेकिन प्रतिबंध की वजह से अगर चाबहार पोर्ट का काम प्रभावित होता है तो इसका उल्टा असर हो सकता है।

नवंबर, 2017 भारत व अमेरिका के विदेश मंत्रियों की बैठक में भी यह मुद्दा उठा था तब अमेरिका ने भारतीय तर्क को स्वीकार किया था। लेकिन अब अमेरिका का रुख बदला हुआ नजर आ रहा है। सनद रहे कि भारत ने चालू वित्त वर्ष के दौरान ईरान से बड़े पैमाने पर कच्चा तेल खरीदने की तैयारी की थी। अमेरिका नहीं चाहता है कि भारत ईरान से तेल खरीदे।

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