जो दोनों करकमलों में अक्षमाला और कमण्डलू धारण करती हैं,वे सर्वश्रेष्ठा ब्रह्मचारिणी दुर्गादेवी मुझ पर प्रसन्न हों.
आदिशक्ति सीताजी…

रामतापनीयोपनिषद् में सीताजी को उद्भव,पालन और संहारकारिणी कहा गया है-
श्रीरामसांनध्यिवशाज्जगदानन्ददायिनी । उत्पत्तस्थितिसंहारकारिणी सर्वदेहिनाम् ।।
उद्भव,स्थिति और संहार त्रिदेव के कर्म हैं. सीताजी में त्रिदेवों के कर्मों का एकत्र संकलन है,अतः सीताजी मूल प्रकृति होकर भी वे क्लेशहारिणी और सर्वश्रेयस्करी हैं.मूलप्रकृति के सहयोग के बिना पुरूष (परमात्मा) सृष्टि की रचना नहीं कर सकता.
श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड में सीताजी का उद्भवकारिणी रूप देखा जा सकता है.बालकाण्ड की प्रमुख घटनाओं के केन्द्र में सीताजी ही हैं.बालकाण्ड की क्रियाओं की सृष्टि सीताजी के परिपार्श्व में होती है.
फुलवारी से लेकर विवाह मण्डप तक का सारा आकर्षण सीता जी में समावष्टि है.यदि बालकाण्ड के घटनाक्रम से सीता जी को निकाल दिया जाय तो तो सारी क्रियाओं की सृष्टि अवरूद्ध हो जायगी.बालकाण्ड की सीता जी समग्र ऐश्वर्यशालिनी के साथ-साथ अद्वितीय सौन्दर्यशालिनी भी हैं.
ऐश्वर्य के साथ-साथ सौन्दर्य का अदभुत संयोग सीता जी के चरत्रि में औदात्य की सृष्टि करता है.उनके लोकोत्तर सौन्दर्य का चत्रिण गोस्वामी जी ने अत्यन्त मर्यादा के साथ प्रस्तुत किया है.सीता जी का सौन्दर्य अनुपमेय है.संसार में ऐसी कोई भी स्त्री नहीं है,जिसके साथ सीताजी के सौन्दर्य की उपमा दी जा सके-
सुंदरता कहुँ सुंदर करई ।
छविगृहँ दीपसिखा जनु बरई ।।
सब उपमा कवि रहे जुठारी ।
केहिं पटतरौं विदेहकुमारी ।।
Shaurya Times | शौर्य टाइम्स Latest Hindi News Portal