धन के बारे में ऐसी बातें सोचते थे चाणक्य

हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि सैकड़ों साल से लोग धन के पीछे भागते आ रहे हैं, लेकिन आजकल भौतिकता के साधन बढ़ने से धन के लिए लोगों के मन में लालच कुछ ज्यादा ही हो गया है. ऐसे में धन पीछे भागना सिर्फ लालच या वास्तविक जरूरत है इस बात को लेकर लोगों मत अलग हो सकता है. कहते हैं चाणक्य ने धन के बारे में जो कुछ कहा है वह भी जानने योग्य है क्योंकि उसे जानने के बाद मन में धन की लालसा खत्म हो जाती है. इसी के साथ आचार्य कौटिल्य की चाणक्य नीति नामक किताब में दो वाक्यों (श्लोकों में) में धन के बारे में काफी कुछ कहा गया है जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं. इससे यह पता चलेगा कि धन को लेकर आचार्य चाणक्य के मन में क्या था. आइए जानते हैं.

1- त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं दाराश्च भृत्याश्च सुहृज्जनाश्च.
तं चार्थवन्तं पुनराश्रयन्ते अर्थो हि लोके पुरुषस्य बन्धु:..

अर्थात- मित्र, स्त्री, सेवक, बन्धु-बान्धव- ये सब धनहीन व्यक्ति का त्याग कर देते हैं. लेकिन वो ही व्यक्ति यदि पुनः धन संपन्न हो जाए, तो सभी लोग उसी का आश्रय लेने लगते हैं. मतलब इस संसार में धन ही व्यक्ति का बंधु है.

2- अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दश वर्षाणि तिष्ठति.
प्राप्ते चैकादशे वर्षे समूलं तद् विनश्यति..

अर्थात- अनीति, अन्याय और गलत रास्ते से कमाया गया धन 10 वर्ष तक ठहरता है. 11वां वर्ष शुरू होते ही ब्याज और मूल सहित पुनः नष्ट हो जाता है. इसलिए धन कमाइए लेकिन समुचित रास्तों से कमाएं तो बेहतर होगा.

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com