वाहनों की गति सीमा को 100 किलोमीटर प्रति घंटा तय कर चुका है उनमें 80 किलोमीटर पर भी चालान किए जा रहे

लगता है दून पुलिस सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के नियमों से खुद को ऊपर समझने लगी है। यही कारण है कि पुलिस मोटर यान अधिनियम के प्रावधानों को भी धता बताते हुए मनमर्जी से वाहनों का चालान कर रही है। यह मनमर्जी पर्यटकों और आम नागरिकों का उत्पीड़न  का सबब भी बन गई है।

स्थिति यह गहै कि जिन फोर लेन सड़कों पर मंत्रालय वाहनों की गति सीमा को 100 किलोमीटर प्रति घंटा तय कर चुका है, उनमें 80 किलोमीटर पर भी चालान किए जा रहे हैं। गंभीर यह भी कि शहर के जिन भीतरी इलाकों में ओवरस्पीड के कारण सर्वाधिक दुर्घटनाएं हो रही हैं, उस तरफ ध्यान देने की जगह पुलिस व सिटी पैट्रोल यूनिट (सीपीयू) शहर के बाहरी इलाकों पर अधिक मुस्तैद दिख रही हैं।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने छह अप्रैल 2018 को वाहनों की अधिकतम गति के नए मानक तय कर दिए थे। यह मानक एक्सप्रेस-वे, फोर लेन, शहर की सड़कों व अन्य तरह की सड़कों को लेकर अलग-अलग तय किए गए। यहां तक कि अधिकतम सीमा के बाद भी पांच फीसद की अतिरिक्त छूट दी गई।

अब जरा नजर डालते हैं, दून की उन सड़कों पर। जहां दून पुलिस स्पीड मापने वाले इंटरसेप्टर वाहन, रडार गन को लेकर अधिकतर समय मुस्तैद रहती है। इनमें प्रमुख रूप से प्रेमनगर से आगे पांवटा साहिब रोड, आइएसबीटी से आगे सहारनपुर रोड व मोहकमपुर से आगे की हरिद्वार रोड है। यह सभी सड़कें न सिर्फ चौड़ाई के लिहाज से फोर लेन हैं, बल्कि इसके विभिन्न मानकों को भी पूरा करती हैं। 

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के गतिमसीमा के नए मानकों को देखें तो यहां 100 किलोमीटर प्रतिघंटा की दर से वाहन चलाने पर भी पुलिस चालान नहीं कर सकती। इसके आसपास तक वाहनों की रफ्तार पहुंचना तो दूर पुलिस 80 किलोमीटर पर भी चालान कर दे रही है।

पर्यटन प्रदेश में पर्यटकों को ही अधिक परेशानी

एक तरफ प्रदेश सरकार पर्यटकों की आमद बढ़ाने के लिए तरह-तरह के जतन कर रही है और दूसरी तरफ पुलिस उनका स्वागत चालान की पर्ची थमाकर कर रही है। ऐसे में पुलिस की यह कार्रवाई पर्यटकों को अनावश्यक परेशान करने से अधिक कुछ भी नहीं। सबसे अधिक परेशानी बाहर से आने वाले पर्यटकों को तब होती है, जब उनके डीएल या आरसी को पुलिस जब्त कर लेती है।

लग्जरी वाहनों पर एक्सीलेटर दबाते ही 80-90 की स्पीड

जिन सड़कों पर पुलिस अधिकतर वाहनों का चालान कर रही है, वह घनी आबादी से दूर के इलाके हैं और यहां सड़कें भी अधिक खुली हैं। ऐसे मार्गों पर वाहन चालक आमतौर पर कुछ समय के लिए 80-90 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड पर भी वाहन चला देते हैं। क्योंकि लग्जरी वाहन कुछ सेकेंड में ही इतनी स्पीड पकड़ लेते हैं। 

इसका यह भी मतलब नहीं कि पूरे समय वाहन चालक अधिक स्पीड पर ही चल रहे हैं, मगर एक बार स्पीड पकड़ लेने पर भी यदि वह रडार गन के दायरे में आ रहे हैं तो पुलिस उनका चालान करने में कोई कसर भी नहीं छोड़ रही।

शहर में ओवरस्पीड और सिटी बसों की मनमानी पर ध्यान नहीं

शहर के बाहर की जो सड़कें फोर लेन हैं और कम यातायात वाली हैं, वहां तो पुलिस मानक से भी आगे बढ़कर वाहन चालकों का चालान कर रही है। मगर, शहर के भीतर जहां वाहनों की रेलम-पेल मची रहती है, वहां ध्यान नहीं दिया जाता। सिटी बसों की रेस शहर में तांडव मचाने की स्थिति में नजर आती है और इनकी चपेट में आकर कई लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं। 

इसके साथ ही इन बसों से हर समय दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है। इसके अलावा तमाम कार चालक या दुपहिया वाहन भी ओवरस्पीड में दिखते हैं। मजाल है कि पुलिस इन पर अंकुश लगा पाए, जबकि यहां रफ्तार की अधिकतम सीमा अलग-अलग वाहनों के हिसाब से 60 व 70 किलोमीटर प्रति घंटा ही है।

सर्वाधिक चालान में दूसरे स्थान पर ओवरस्पीड

पुलिस की कार्रवाई पर नजर डालें तो यातायात नियमों पर जितने चालान किए गए हैं, उनमें ओवरस्पीड के चालान दूसरे नंबर पर हैं। इनमें भी अधिकतर चालान शहर के बाहर की फोर-लेन सड़कों पर नियमों से आगे बढ़कर किए गए हैं। यह स्थिति बताती है कि खाली पड़ी सड़कों पर व्यहारिकता पर ध्यान देने से अधिक पुलिस सिर्फ चालान करने में दिलचस्पी दिखाती है। पुलिस के डर से वाहन चालक चुपचाप रहकर उत्पीडऩ का शिकार होते रहते हैं। हालांकि, इससे सिर्फ लोगों के मन में पुलिस के प्रति नकारात्मक छवि ही पैदा हो रही है। 

दुर्घटना पर तक डाला जाता है पर्दा

प्रेमनगर क्षेत्र में आइएमए के पास आठ अप्रैल की रात एक तेज रफ्तार ऑडी कार ने एक बाइक सवार को अपनी चपेट में ले लिया था। इस हादसे में युवक की मौत हो गई थी। शहर के भीतर हुआ यह हादसा बताता है कि पुलिस की मुस्तैदी यहां नहीं रहती। खैर, असल खेल इसके बाद शुरू हुआ और दोषी को सजा देने की जगह पुलिस ने मामले को निपटाने में अधिक दिलचस्पी दिखाई। नतीजा यह हुआ कि दुर्घटना के आरोपित ऑडी चालक को सजा दिलाने की जगह पूरा दोष सड़क पर चल रहे एक जानवर पर डाल दी गई।

फुटकर सवारी-ओवरलोडिंग में 37 विक्रमों के किए चालान

संभागीय परिवहन प्राधिकरण की ओर से विक्रमों की फुटकर सवारी पर रोक के बावजूद शहर में विक्रम चालक बेधड़क कहीं भी सवारी को बैठा या उतार रहे हैं। परिवहन विभाग इनके खिलाफ चेकिंग अभियान चलाकर कार्रवाई कर रहा, लेकिन चेकिंग खत्म होते ही इनमें फिर ओवरलोडिंग हो रही। चेकिंग के तहत बुधवार को चार विक्रम सीज किए गए और 37 विक्रमों का चालान किया गया। इसके साथ ही हाइवे पर चलने पर 21 ई-रिक्शा व ऑटो के चालान किए गए। 

संभागीय परिवहन प्राधिकरण के हालिया आदेश के बाद विक्रमों के फुटकर सवारियां बैठाने पर रोक लग गई है। इसके साथ ही इनमें मानक के अनुसार केवल छह सवारी बैठ सकती हैं। इसके बावजूद शहर में पूरा दिन विक्रमों में दस-दस सवारी बैठी नजर आती हैं। झुंड बनाकर चलने वाले विक्रम को चालक कहीं भी रोक देते हैं और वहीं सवारी चढ़ाते-उतारते हैं, जबकि परमिट की शर्तों के अनुसार केवल एक स्थान से दूसरे तक तय सवारी लेकर ही ये चल सकते हैं। 

प्राधिकरण ने ऐसे विक्रमों पर कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं। इसके अलावा सिटी बस महासंघ भी फुटकर सवारी पर विक्रमों पर कार्रवाई की मांग लेकर मुखर है। आरटीओ दिनेश चंद्र पठोई के आदेश पर विभाग की चार टीमें सोमवार से अभियान चलाकर इन पर कार्रवाई कर रहीं। एआरटीओ प्रशासन अरविंद पांडे ने बताया कि बुधवार को कुल 58 चालान किए गए, इनमें 37 विक्रम भी हैं। 

विक्रमों के चालान फुटकर सवारी बैठाने व ओवरलोडिंग पर किए गए। विक्रम में नौ से दस सवारी बैठी मिलीं। चेकिंग होने पर बड़ी संख्या में विक्रम सड़कों से गायब हो गए व चेकिंग खत्म होते ही फिर सड़कों पर उतर आए। वहीं, तीन दिन में विभाग ने 203 वाहनों के चालान किए और 17 सीज किए। चालान में 107 विक्रम शामिल हैं। 

राजनीतिक संरक्षण हावी

विक्रमों के बेखौफ नियम तोड़कर शहर में चलने की असल वजह राजनीतिक संरक्षण है। सूत्रों की मानें तो बड़े राजनीतिक दलों के नेताओं के विक्रम भी शहर में दौड़ रहे हैं। यही वजह है कि विक्रमों पर कभी भी व्यापक पैमाने पर कार्रवाई नहीं हो सकी।

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