नारी के बिना सृष्टि की संकल्पना सम्भव नहीं: अनुपमा

महिलाओं का राज्यस्तरीय सम्मेलन ‘नई पहचान’ कार्यक्रम

लखनऊ : नारी के बिना न तो सृष्टि की रचना हो सकती है और न ही सृष्टि आगे गतिमान हो सकती है। नारी माता के रूप में सबसे बड़ी गुरू, पत्नी के रूप में सबसे घनिष्ट मित्र और बहन के रूप में पूजनीय एवं सम्मानीय है। यह विचार प्रदेश की बेसिक शिक्षा तथा बाल विकास एवं पुष्टाहार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अनुपमा जायसवाल ने मंगलवार को यहां गोमती नगर स्थित संगीत नाटक अकादमी के संत गाडगे प्रेक्षागृह में नारी अदालत, घरेलू हिंसा से मुक्त संघर्षशील महिलाओं के राज्यस्तरीय सम्मेलन ‘नई पहचान’ कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए। श्रीमती जायसवाल ने कहा कि समाज में छोटे बच्चों एवं महिलाओं पर हो रहे अत्याचार से उबरने के लिए यह जरूरी है कि महिला अपनी ताकत को पहचाने और समाज को यह संदेश दें कि नारी अबला नहीं अब सबला है।

उन्होंने कहा कि उ.प्र. सरकार के महिला एवं बाल कल्याण विभाग द्वारा संचालित महिला समाख्या की यह विशेषता है कि यह गांव और गरीब के अंतिम छोर तक पहुंचती है, उनकी समस्याओं को सुनती है, समाधान करती है और उनके अंदर संघर्ष की एक नई ताकत देकर सफल बनाने का प्रयास करती हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं से संबंधित मामले चाहे वे घरेलू हिंसा हो या सामाजिक रूप से कहीं किसी महिला के ऊपर अत्याचार की घटना हो इन सभी समस्याओं से महिलाओं एवं बच्चों को शिक्षा देकर छुटकारा पाया जा सकता है। उ.प्र. का बेसिक शिक्षा विभाग तथा महिला एवं बाल कल्याण विभाग मुख्यमंत्री के निर्देशन में लगातार इस दिशा में उल्लेखनीय काम कर रहा है। बेसिक शिक्षा मंत्री ने कहा कि माता, बेटी, पत्नी, बहन और पुत्री हर रूप में मातृशक्ति वंदनीय है। उन्होंने कहा कि महिला समाख्या महिलाओं को बिल्कुल निचले स्तर से उठाकर ऊंचाईयों पर बैठाने का प्रयास कर रही है। इसके सारे प्रयास सराहनीय एवं वंदनीय हैं।

इस कार्यक्रम में उपस्थित महिला समाख्या की राज्य परियोजना निदेशक डॉ. स्मृति सिंह ने कहा कि हमें पितृ सत्तात्मक सोच को बदलना होगा, तभी महिलाओं को पूर्ण सम्मान मिलेगा। उन्होंने बताया कि नारी अदालत, उ.प्र. सरकार के महिला एवं बाल कल्याण विभाग द्वारा संचालित महिला समाख्या कार्यक्रम महिलाओं के साथ हो रहे घरेलू हिंसा, लिंग आधारित भेदभाव, भू्रण हत्या और दहेज उत्पीड़न जैसे आदि मुद्दों पर कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि नारी अदालत एक अनौपचारिक न्यायिक ढांचा है। यहां वंचित समूह की महिलाएं सामाजिक नजरिए से संतुलन बनाते हुए न्यायिक प्रक्रिया चलाती हैं।

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