किताबें नहीं ऐतिहासिक दस्तावेज चोरी हुए हैं महानगर लखनऊ अभिलेखागार से…..

-पवन सिंह

लखनऊ : रामपुर के जौहर विश्वविद्यालय के निर्माण और जमीन में क्या-क्या घोटाला हुआ मैं इस विषय पर कुछ भी नहीं लिखना चाहता लेकिन रामपुर के जौहर विश्वविद्यालय के निर्माण में कैसे लखनऊ के महानगर स्थित अभिलेखागार उसी तरह से लूटा गया जैसे नादिरशाह ने भारत के मंदिरों को लूटा था। मेरी किताबों से गहरी दोस्ती रही है खासकर ऐतिहासिक महत्व की किताबों से… ऐतिहासिक दस्तावेजों से…. मैंने लखनऊ के इतिहास पर शहर-ए-लखनऊ, 1857 की क्रांति, अज़ीज़न… सहित जो तमाम किताबें लिखीं उनमें महानगर अभिलेखागार से बहुत मदद मिली। इस अभिलेखागार में तमाम ऐसे महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं जो तमाम ऐतिहासिक रहस्यों को अपने भीतर समेटे हुए हैं। लेकिन ऐसे तमाम दस्तावेज व किताबें जौहर विश्वविद्यालय को बनाने में “जौहर” हो गये। उत्तर प्रदेश अभिलेखागार से सैकड़ों किताबें गायब होकर कैसे जौहर विश्वविद्यालय तक पहुंच गये यह जांच का विषय है लेकिन इसके पीछे एक महिला है। इस महिला ने इलाहाबाद से क्लर्क का सफर शुरू किया और उसने तेजस ट्रेन की रफ्तार से सीढ़ियां चढ़ीं….।

इस चर्चित महिला का पति इलाहाबाद विकास प्राधिकरण में क्लर्क हुआ करता था। उसका अचानक इंतकाल हो गया। इस महिला को अनुकंपा के आधार पर नियुक्त मिली। बतौर शासनादेश अनुकंपा एक बार होती है लेकिन मोहतरमा की खूबसूरती ऐसी थी कि अनुकंपा बार-बार मिली…. नतीजा यह हुआ कि यह महिला महानगर अभिलेखागार, लखनऊ में बतौर सहायक निदेशक नियुक्त हुई और जब आजम खां साहेब सत्तानशीं हुए और उनकी बतौर कद्दावर मंत्री ताजपोशी हुई तो ये महिला सहायक निदेशक से सीधे उपनिदेशक हो गई…उस पर तुर्रा ये कि खातून-ए-हुस्न को निदेशक का भी कार्यभार दे दिया गया…. इसके बाद अभिलेखागार में शुरू हुई कीमती किताबों व दस्तावेजों की लूट….. चुनांचे यह लूट कोई इज़्ज़त-आबरु या माल की लूट तो थी नहीं लिहाज़ा यह खबर नहीं बनी। किताबों की अब औकात ही क्या रह गई है जो उसके लिए रोया जाता। …. अभिलेखागार लुटता रहा लोग खामोश रहे…. यह महिला बाद में उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी में शीर्ष पद पर जा पहुंची….. किताबों की लूट की जांच लखनऊ अभिलेखागार तक भी आनी चाहिए…. तालीम और किताबें किसी चाहरदीवारी में कैद रहें अच्छा नहीं लगता…. नये गृह सचिव अवनीश अवस्थी साहेब चाहें तो किताबें वापस अभिलेखागार का मुंह देख सकती हैं…. वरना किताबें हैं किताबों का क्या?

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