कर्नाटक चुनाव: जानें इन 8 हाई-प्रोफाइल विधानसभा सीटों का हाल

तीन महीनों तक चले तूफानी चुनाव प्रचार के बाद कर्नाटक में शनिवार का दिन अहम है. राज्य के कुल 224 सीटों में से 222 सीटों पर आज मतदान हो रहे हैं. वहीं, आर आर नगर के एक अपार्टमेंट में हजारों वोटर आईडी कार्ड मिलने और जयानगर सीट पर बीजेपी उम्मीदवार व निवर्तमान विधायक बी एन विजयकुमार के निधन के कारण चुनाव नहीं हो रहे हैं. इन दोनों सीटों पर 28 मई को वोट डाले जाएंगे. कर्नाटक चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है, लेकिन जेडीएस को ‘किंगमेकर’ माना जा रहा है. ज्यादातर प्री-पोल और ओपिनियन पोल सर्वे में खंडित जनादेश की बात सामने आ रही है. 15 मई को नतीजे का ऐलान होगा.

कर्नाटक में ऐसी 8 हाईप्रोफाइल सीटें हैं, जिनपर हाई-वोल्टेज मुकाबला देखा जा रहा है. आइए नज़र डालते हैं इन 8 सीटों पर…

1. चामुंडेश्वरी:-

यहां मुकाबला मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और जेडीएस के विधायक जीटी देवगौड़ा के बीच है. इस विधानसभा सीट का इतिहास भी दिलचस्प है. बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने 2004 में इस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था और उसे 9,700 वोट मिले थे. सिद्धारमैया के लिए खुशकिस्मती की बात यह रही कि दो साल बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में पार्टी ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया.

इसी वजह से सिद्धारमैया को राजनीति में फिर से जीवनदान मिलने में बीएसपी की भी भूमिका मानी जाती है. अगर सिद्धारमैया 257 वोट के अंतर से जीत हासिल नहीं करते, तो शायद वह राजनीतिक निर्वासन में चले जाते. अब चूंकि बीएसपी और जेडी(एस) का चुनावी गठबंधन है, लिहाजा दलित वोट इस बार विधानसभा चुनाव में निर्णायक पहलू साबित हो सकता है.दूसरी ओर, अगर बात करें जेडीएस के जीटी देवगौड़ा की, तो उन्होंने चामुंडेश्वरी सीट से अब तक एक भी चुनाव नहीं हारा है. वह इस सीट से दो जिला पंचायत, एक एपीएमसी, एक विधानसभा और कई को-ऑपरेटिव सोसाइटी के इलेक्शन लड़ चुके हैं. 2013 में उनका जीत मार्जिन 7,103 वोट था.

2. वरुणा:-

राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जहां अपनी दो बार की जीती हुई वरुणा सीट अपने बेटे को सौंपकर दूसरे निर्वाचन क्षेत्र से लड़ने का फैसला किया है, वहीं बीजेपी इसे परिवारवाद बताकर सरकार पर निशाना साध रही है. कर्नाटक विधानसभा क्षेत्र संख्या-219 वरुणा विधानसभा क्षेत्र मैसूर जिले के अंतर्गत आता है. वरुणा सीट पर पहला विधानसभा चुनाव 2008 में हुआ था. इसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बाजी मारी थी. दरअसल, मार्च 2007 में जस्टिस कुलदीप सिंह की अध्यक्षता वाले भारतीय परिसीमन आयोग (डीसीआई) ने बन्नूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र को खत्म कर वरुणा विधानसभा क्षेत्र के गठन को मंजूरी दी थी, जिसका कई राजनीतिक दलों ने विरोध किया था.वरुणा विधानसभा क्षेत्र पर एक तरफ जहां मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बेटे यतींद्र के सामने अपने पिता की सीट को बचाने का दबाव होगा, तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के सीएम कैंडिडेट येदियुरप्पा के बेटे को टिकट नहीं मिलने के कारण प्रत्याशी के रूप में उभरे थोटाडप्पा बस्वाराजू पर खुद को साबित करने का भार भी है.

3. शिमोगा:-

कर्नाटक विधानसभा सीट संख्या-113 शिमोगा निर्वाचन क्षेत्र एक ग्रामीण तालुका है और शिमोगा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है. यह निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति समुदाय के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है. कर्नाटक सरकार ने इस निर्वाचन क्षेत्र का नाम शिवमोगा से बदल कर शिमोगा रख दिया था. शिवमोगा का अर्थ ‘शिव का चेहरा’ है. शिमोगा राज्य में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक है और इसे कर्नाटक का ‘चावल का कटोरा’ भी कहा जाता है. शिमोगा निर्वाचन क्षेत्र में पुरुष मतादाताओं की संख्या 1,03,626 और महिला मतदाताओं की संख्या 1,03,409 है.शिमोगा में बीजेपी और कांग्रेस के कद्दावर नेता के बीच जंग है. शिमोगा निर्वाचन क्षेत्र से बीजेपी से के.एस. ईश्वरप्पा और कांग्रेस से के.बी. प्रसन्ना कुमार मैदान में हैं. वहीं, जनता दल-सेक्युलर ने एच.एन. निरंजन, ऑल इंडिया महिला इंपॉवरमेंट पार्टी ने मोहम्मद युसूफ खान, रिपब्लिकन सेना ने एम. रमेश, जन समानार्य पार्टी ने रमेश गौड़ा, नम्मा कांग्रेस ने एम. समीउल्ला, प्रोटिस्ट ब्लॉक इंडिया ने सुरेखा पी.वी. को दिग्गजों के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा है. इसके अलावा 12 निर्दलीय चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

4. बादामी:-

चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के ऐन वक्त पर सिद्धारमैया ने चामुंडेश्वरी के साथ-साथ बादामी सीट से चुनाव लड़ने का फैसला लिया. इसके लिए उन्होंने दलित नेताओं, ओबीसी वर्ग के प्रतिनिधियों और लिंगायत नेताओं से कई दौर की मीटिंग की. कर्नाटक विधानसभा सीट संख्या-23 बादामी विधानसभा क्षेत्र बागलकोट लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है. बादामी बागलकोट जिले का एक शहर और एक तालुका मुख्यालय है. 2011 की जनगणना के अनुसार, विधानसभा क्षेत्र की कुल आबादी 2,78,344 थी, जिसमें 69.8 फीसदी ग्रामीण हैं और 30.2 फीसदी शहरी आबादी है.बात करें क्षेत्रीय राजनीति की, तो यहां वर्तमान में कांग्रेस के विधायक और दिग्गज नेता चिम्मानकट्टी बलप्पा भीमप्पा काबिज हैं. 2013 कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भीमप्पा ने जनता दल (सेक्युलर) के उम्मीदवार महांतेश गुरुपडप्पा ममदपुर को 15,113 मतों से हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया था.

5. बंटवाल:-

दक्षिण कर्नाटक के एक सबसे बड़े अहम सीटों में से एक बंटवाल पर कांग्रेस का दांव लगा है. यहां से कांग्रेस के बी रामानाथन राय 7वीं बार चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी भी हिंदु कार्यकर्ताओं के मर्डर को यहां भुनाने की कोशिश में लगी हुई है. बीजेपी ने यहां से राजेश नायक को उम्मीदवार बनाया है.

6. चन्नपत्ना

रामानगर और चन्नपत्ना से चुनाव लड़ रहे एचडी कुमारस्वामी की जीत आसान मानी जा रही है. ये दोनों सीटें बेंगलुरु से सटे और नव निर्मित जिले रामानगर के तहत आती हैं. कुमारस्वामी ने 2004 से तीन बार रामानगर से जीता है, लेकिन इस बार वो चन्नपत्ना से भी चुनाव लड़ रहे हैं. चन्नपत्ना सीट को ‘सीटी ऑफ टॉयज’ भी कहा जाता है. इस सीट पर कुमारस्वामी का मुकाबला कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गए सीपी योगेश्वर से है. दोनों नेता चुनाव रण की शुरुआत से ही एक-दूसरे पर जुबानी हमले कर रहे हैं.

7. चिकमंगलुरु:-

60 के दशक से लेकर 90 के दशक तक चिकमगलूर कांग्रेस का गढ़ रहा. 1978 में आपातकाल के बाद जब चुनाव हुए तो कांग्रेस पूरे देश में हारी यहां तक कि रायबरेली में भी वह अपनी कुर्सी नहीं बचा पाई. ऐसे मुश्किल दौर में भी कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उपचुनाव में जीत मिली थी. इंदिरा गांधी के बाद कांग्रेस के टिकट पर कई लोगों ने चुनाव लड़ा और चिकमंगलूर कांग्रेस का अभेद्य किला बन गया.

इस बार चुनाव में इस सीट से पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता बीएल शंकर मैदान में हैं. उनका मुकाबला बीजेपी के सीटी रवि से है, जो 2004 से तीन बार विधायक रह चुके हैं. शंकर को उम्मीद है कि उनके पिछले रिकॉर्ड के मुताबिक इस बार भी जीत मिलेगी. बीएल शंकर के विधायक रहने के दौरान ही यहां यागची रिसर्ववियर शुरू हुआ था.

8. बेल्लारी:-

खनन माफियाओ को लेकर प्रसिद्ध इस सीट पर बीजेपी का प्रभुत्व रहा है. 2013 में खनन माफिया जीएस रेड्डी बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़े थे और जीत गए थे. इसके बाद भ्रष्टाचार के मामले की वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा था. इस बार उनके भाई एस रेड्डी बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं. उनके सामने हैं कांग्रेस के अनिल एच लैड.

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