भारत में चक्रवाती बारिश और बाढ़ का प्रकोप : हर साल बढ़ती घटनायें

-प्रो. भरत राज सिंह

लखनऊ : भारत तीन तरफ से तटीय और चौथी तरफ हिमालय की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। 128 बिलियन की कुल आबादी के मुकाबले लगभग 560 मिलियन भारतीय आबादी 43.7% तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में रहती है और 171 मिलियन (14.2%) आबादी भारत के तटीय क्षेत्र और तटीय जिलों में रहती है। जो सामान्यतः निचली सतह और घनी आबादी वाले क्षेत्र होते हैं, जिनपर बाढ़ का विनाशकारी प्रभाव पड सकता हैं। इस वर्ष भारतवर्ष के तटीय क्षेत्र में बाढ़ और हिमालय क्षेत्रों में भूस्खलन के कई गुना प्रभाव से सामना कर रहे हैं।

पिछले 5 वर्षों में पठारी क्षेत्र में तूफान व हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन

आज भारतवर्ष में बड़े चक्रवाती तूफानों और तेज हवाओ से उसके तटीय क्षेत्रो में भारी बारिश हो रही है तथा उसका दबाव पठारी क्षेत्रो में होने से मध्य प्रदेश, उत्तर-प्रदेश व विहार आदि तक जल-प्रलय के रूप मे बदल गया है । प्रत्येक साल इसकी आवृत्ति व विनाशकारी प्रभाव बढ़ रहा है कुछ घटनाओ का उल्लेख निम्नवत है:

1.0 केदारनाथ आपदा (16-17 जून, 2013)
उत्तराखंड राज्य मे केदारनाथ घाटी व उसके अन्य हिस्सो मे दिनांक 16-17 जून 2013 को अभूतपूर्व भूस्खलन व विनाशकारी बाढ़ आई थी। केदारनाथ मंदिर के पास 16 जून को, लगभग 7:30 बजे, भूस्खलन और तेज बारिश की तवाही का सामना करना पडा। प्रो. भरत राज सिंह एकमात्र ऐसे वैज्ञानिक थे, जिन्होंने घोषणा की थी कि उक्त घटना किसी बादल फटने की नहीं है, बल्कि हिमालय की ऊँचाई पर ग्लोबल वार्मिंग के कारण घने ग्लेशियर की चादरों में दरार आने के कारण ऐसा हुआ था जिससे भारी ग्लेशियर की चादरें पहली बारिश के दौरान अलग होकर नीचे चली गईं और विनाशकारी भूस्खलन व बाढ का कहर बन गईं। इस तरह के भूस्खलन और मिट्टी के खिसने की आवृत्ति हिमालय क्षेत्र में अधिक तीव्रता के साथ भविष्य में बढ़ेगी और हिमालय का सम्पूर्ण क्षेत्र जन-जीवन के लिये घातक बना रहेगा।

2.0 ओडिशा में चक्रवाती फीलिन तूफान (12 अक्टूबर 2013)
12 अक्टूबर 2013 को ओडिशा के तट पर आए भयंकर चक्रवाती तूफान “फीलिन” ने अपने साथ बहुत तेज़ गति की हवाएँ और भारी वर्षा ला दी जिससे राज्य के तटीय जिलों में विशेष रूप से घरों, खड़ी फसलों, बिजली और संचार व्यवस्था को व्यापक क्षति हुई।। चक्रवात फीलिन के घटना के बाद, राज्य सरकार को विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक से सहयोग लेकर विशेषरूप से प्रभावित जिलों को छति से उबरने के लिए पुनर्स्थापित और पुनर्निर्माण कार्यों को तीब्रता प्रारम्भ करने की आवश्यकता पडी। इसपर तूफान के कारण हुए नुकसान की मूल्यांकन और प्रभावी सुधार के लिए कार्रवाई का विवरण का एक व्यापक पुनर्निर्माण व पुनस्थापना का खाका तूफान के कारण हुए नुकसान की मूल्यांकन रिपोर्ट और प्रभावी सुधार के लिए कार्रवाई का विवरण तैयार किया गया। यही नही भविष्य मे भी ऐसे प्रभावित क्षेत्रों हेतु पुनर्निर्माण और पुनर्प्राप्ति की आवश्यकता को दृष्टगत रखते हेतु “क्षति की सीमा व निरंतरता” हेतु एक विस्तृत विश्लेषण की रणनीति भी तैयार की गई।

3.0 आंध्र प्रदेश में चक्रवाती तूफान हुदहुद (12 अक्टूबर 2014)
11 अक्टूबर को, हुदहुद ने तीव्र गति से आगे बढा और अपने केंद्र विंदु पर आंख गडाया । इसके बाद के सम्यांतर में, तूफान न्यूनतम तीव्रता के साथ 950 mbar (Hg में 28.05) और 185 किमी / घंटा (115 मील प्रति घंटे) की औसत हवा की गति की तीव्रता को बनाए रखते हुए, तीन मिनट मे इसने 12 अक्टूबर को दोपहर के समय विशाखापत्तनम, आंध्र प्रदेश में 17.7 ° N 83.3 ° E के पास लैंडफॉल बनाया। विशाखापत्तनम में साइक्लोन वार्निंग सेंटर के हाई विंड स्पीड रिकॉर्डर (HWSR) इंस्ट्रूमेंट द्वारा अधिकतम हवा का झोंका 260 किमी/ घंटा (160 मील प्रति घंटे) का रिकॉर्ड किया गया था। शहर में तैनात डॉपलर मौसम रडार द्वारा तूफान की केंद्र विंदु 66 किमी (41 मील) व्यास का मापा गया था। हवाओं की ताकत ने दूरसंचार लाइनों को उखाडकर उसे बाधित कर दिया और रडार को भी क्षतिग्रस्त कर दिया, जिससे आगे की आकडो के एकत्रित करने की प्रक्रिया हो गई । आंध्र प्रदेश के तटीय जिलों में व्यापक क्षति पैदा करते हुए, हुदहुद धीरे-धीरे कमजोर हो गया क्योंकि यह जमीन पर उत्तर की ओर घुमावदार चक्कर काट रहा था। तूफान ने अपनी धीमी गति को आगे बढाता हुआ, 14 अक्टूबर को पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक अच्छी तरह से निम्न दबाव क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया । अधिकांश बंगाल की खाडी वाले तूफानों के विपरीत जो भूमि पर जल्दी से फैलकर समाप्त हो जाते हैं, हुदहुद एकमात्र उच्च कटिबंधीय तूफान रहा है, जिसका अवशेष उत्तर में हिमालय तक पहुंच गया।

4.0 गुजरात में चक्रवाती तूफान नीलोफर (31 अक्टूबर 2014)
अरब सागर में तीसरा सबसे शक्तिशाली चक्रवात, अक्टूबर 2014 के अंत में, 205 किमी/ घंटा (125 मील प्रति घंटे) से 215 किमी/ घंटा (130 मील प्रति घंटे) के बीच अनुमानित अधिकतम हवाओं तक पहुंच गया। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने इसका नाम निलोफर रखा; नाम पानी लिली को सम्बोधित करता है और इसे पाकिस्तान द्वारा सुझाया गया था। उत्तर पश्चिमी ओमान में तूफान के पश्चिमी झटकों के कारण चार लोगों की मौत हो गई थी। निलोफर की उत्पत्ति भारत और अरब प्रायद्वीप के बीच कम दबाव वाले क्षेत्र से हुई थी। यह 25 अक्टूबर 2014 को एक कम तीव्रता में पैदा हुआ और अनुकूल परिस्थितियों के कारण उत्तर की ओर चला गया। 26 अक्टूबर 2014 को कुछ परिस्थितियोंवश त्वरित रूप से व्यवस्थित होकर एक चक्रवाती तेज तूफान में परिवर्तित हो गया। नीलोफर ने 28 अक्टूबर को अपनी चरम तीव्रता को प्राप्त करते हुए, एक अच्छी तरह से अपना प्रभाव केंद्र आंख और दायरा विकसित किया। उस समय, निलोफर को पश्चिमी भारत में भूस्खलन होने की उम्मीद थी, जिससे लोगो को सुरक्षित स्थान पर पहुचाने और आवश्यक तैयारियों प्रारम्भ की गई। परंतु तूफान की उच्च तीव्रता को कम दवाव ने तेजी से कमजोर कर दिया, और नीलोफर को 31 अक्टूबर 2014 को भारत के गुजरात राज्य से कम दबाव वाले क्षेत्र में समाप्त कर दिया गया।

5.0 गंभीर चक्रवाती तूफान चपला (28 अक्टूबर, 2015)
यह उत्तर हिंद महासागर का चक्रवाती मौसम का तीसरा नामित तूफान, 28 अक्टूबर 2015 को पश्चिमी भारत के दूर-दराज से विकसित हुआ। पानी के तापमान में रिकॉर्ड गर्मी से चक्रवाती प्रणाली से उत्पन्न होने के कारण इसे भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने चपला नाम दिया। 30 अक्टूबर 2015 तक, तूफान ने संवहन के प्रक्रिया के माध्यम से एक अच्छी तरह से अपना क्षेत्र और केंद्र विंदु विकसित कर लिया । उस दिन, आईएमडी के अनुसार तीन मिनट तक में 215 किमी/ घंटा (130 मील प्रति घंटे) की निरंतर हवाओं का अनुमान लगाया और जेटीडब्ल्यूसी ने 240 किमी/ घंटा (150 मील प्रति घंटे) की एक मिनट तक की हवाओं का अनुमान लगाया था; जिससे 2007 में मात्र गोनू साइक्लोन अरब सागर में अधिक तीव्रता का पाया गया था।

उच्च तीव्रता के बाद, चपला ने 1 नवंबर 2007 को सोकोट्रा के यमनी द्वीप को पार किया। तेजी गर्म हवाओ और आगे कम दवाव की हवा के झोंके ने चक्रवात को कमजोर कर दिया, हालांकि इसने 2 नवंबर को अदन की खाड़ी में प्रवेश करने पर अपनी तीव्रता को अधिक बनाए रखा, फिर भी यह पानी के अंदर का सबसे मजबूत चक्रवात जाना गया। उत्तरी सोमालिया को पार करने के बाद, चपला और कमजोर हो गई और पश्चिम व उत्तर-पश्चिम की ओर मुड़ गई। 3 नवंबर 2007 की शुरुआत में, तूफान का मुकाम, यमन के पास एक बहुत ही भयंकर चक्रवाती तूफान के रूप में होकर भूस्खलन तथा देश पर प्रभाव डालने वाला सबसे मजबूत तूफान का रिकॉर्ड पर बना दिया और अगले दिन यह तूफान थम गया।

6.0 ओडिशा में चक्रवात टिटली, (11 अक्टूबर, 2018)
चक्रवात टिटली ने आंध्र प्रदेश में कम से कम आठ लोगों को मार डाला और 11 अक्टूबर, 2018 की सुबह भूस्खलन होने के बाद ओडिशा में तबाही का निशान छोड़ दिया। टिटली ने 130-140 किमी प्रति घंटे की रफ्तार वाली हवा के साथ एक बहुत ही भयंकर चक्रवाती तूफान के रूप में लैंडफॉल बनाया। दक्षिणी ओडिशा और उत्तरी आंध्र प्रदेश के तट को पार करने के तुरंत बाद, टिटली 90-100 किमी प्रति घंटे की हवा की गति के साथ यह भयंकर चक्रवाती तूफान कमजोर पड गया। दिन के दौरान, टिटली तूफान की तीव्रता कमजोर होती रही और भारत मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की थी कि यह टिटली तूफान रात तक बिल्कुल कम प्रभावी हो जाएगा। इसके बावजूद, ओडिशा के कुछ हिस्सों के लिए एक रेड अलर्ट अर्थात उच्चतम श्रेणी की बारिश की चेतावनी बनी हुई थी। आईएमडी ने ओडिशा मं भारी से भारी बारिश की भविष्यवाणी की थी और राज्य में बाढ़ का खतरा बरकरार रहा। यद्यपि ओडिशा में व्यापक क्षति हुई थी, राज्य ने साइक्लोन टिटली के कारण बिना किसी जीवन के नुकसान से ‘शून्य हताहत’ का लक्ष्य हासिल किया। ओडिशा के कुल आठ जिले- गंजाम, गजपति, खुर्दा, पुरी, जगतसिंहपुर, केंद्रपाड़ा, भद्रक और बालासोर- चक्रवात टिटली से प्रभावित थे।

7.0 फेथई धूल तूफान से केरल में बाढ़ (19 दिसंबर, 2018)
चक्रवात फेथाई ने आंध्र प्रदेश में हजारों लोगों को धूल व भूस्खलन से विस्थापित करने के लिए बाध्य किया। यह तूफान, बिनासकारी गाजा चक्रवात जो पड़ोसी तमिलनाडु, केरल और पांडूचेरी में तबाही मचाने के ठीक एक महीने बाद आया था। उस चक्रवात की वजह से हवा की गति 120 किमी प्रति घंटा हो गई, जिसने कम से कम 45 लोगों के जीवन का समाप्त किया और घरों, फसलों और बुनियादी ढांचे को भी व्यापक नुकसान पहुंचाया।

8.0 ओडिशा में चक्रवाती तूफान फोनी (03 मई 2019)
पूर्वी भारत के तटीय शहर पुरी के पास एक विशाल उष्णकटिबंधीय चक्रवात ने 03 मई 2019, शुक्रवार को भीषण तवाही कर गया, जिससे लाखों लोगों का घर प्रभावित हुआ। यह माना जाता है कि तूफान, जिसे साइक्लोन जिसे “फ़ोनी” कहा गया, ने 115 मील प्रति घंटे (एक-श्रेणी के 3 तूफान के बराबर) से अधिक हवाओं के साथ तट पर स्ट्राइक किया। यह 20 वर्षों में भारत को तवाही पहुचाने वाला सबसे तगडा तूफान था। ओडिशा में पुरी के करीब चक्रवात फनी ने अधिकतम हवा की गति 180-190 किमी/घंटा (कैट-3 समतुल्य) के साथ जमीनी सतहों पर टकराया और भविष्यवाणी के अनुसार उत्तर-उत्तरपूर्व की ओर बढ़ता हुआ, पश्चिम बंगाल और फिर बांग्लादेश की ओर कमजोर पड गया लेकिन इसकी एक खतरनाक स्थिति बनी थी कि यह बांग्लादेश की ओर से भारत के पूर्वी तट तक जायेगा, जिससे 2.1 मिलियन लोगों को वहाँ से विस्थापित/ निकाला गया था क्योकि यह बाढ़ और संभावित रूप से घातक तवाही का रूप ले सकता था। कुल मिलाकर, संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि तूफान के मार्ग में 28 मिलियन लोग खतरे में हैं।

9.0 गुजरात में चक्रवाती तूफान वायु (12 जून, 2019)
उष्णकटिबंधीय चक्रवात वायु से छह मिलियन लोग प्रभावित होने की सम्भावना थी, जो उत्तर-पश्चिम भारत की ओर 12 जून, 2019, को बढ़ रहा था और गुरुवार सुबह से गुजरात के समुद्र तट पर टकराने की सम्भावना थी। 12 जून, 2019, बुधवार को भारत के गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि लगभग 300,000 लोगों को 700 आश्रय घरों से निकाला जाना तय है। अधिकारियों ने कहा कि क्षेत्र में स्कूल और कॉलेज शुक्रवार तक बंद किये गये हैं। 170 किमी प्रति घंटे (100 मील प्रति घंटे) की हवा के साथ, उष्णकटिबंधीय चक्रवात वायु दशकों वाद उत्तर पश्चिमी भारत पर हमला करने वाला सबसे विनाशकारी चक्रवात बन सकता है। यह भारत के उत्तरपूर्वी तट में शक्तिशाली ट्रॉपिकल साइक्लोन फैनी के एक महीने बाद आया था।

वायु चक्रवात 12 जून, 2019, बुधवार को मुंबई के पश्चिम में लगभग 300 किलोमीटर (185 मील) की दूरी तय की, जो उत्तर में गुजरात तट की ओर बढ़ रही था । पूर्वानुमान में तूफान को पश्चिम की ओर मुड़ने की सम्भावना की गयी थी, जो तूफान के केंद्र को अगले 48 घंटों में, सिर्फ अपतटीय क्षेत्रो मे गुजरात के सौराष्ट्र प्रायद्वीप और कच्छ जिले के समानांतर चलना था। लेकिन भले ही तूफान आधिकारिक रूप से, जमीन क्षेत्र पर टकराने की सम्भावना न बनाता हो, उसके चक्रवाती केंद्र अथवा तूफान की गति बढ़ रही थी जिससे कम से कम आधा तूफान भूमि पर होने से तटीय क्षेत्र मे सीधे बारिश, हवा और तूफान का वेग बना रहा । भारत ने 39-राष्ट्रीय आपदा राहत बल टीमों को वहाँ तैनात किया था। प्रत्येक टीम मे लगभग 45 लोगों थे, जो निकासी, खोज, बचाव और राहत कार्यों के लिये स्थानीय अधिकारियों की मदद से कार्य पर तत्पर रहे । सेना के पास भी स्टैंडबाइ 34 टीमें थी।

10.0 भारत में 2019 के दौरान भीषण वर्षा और भूस्खलन
भारत में मानसून का बेसब्री से इंतजार किया जाता है, जहां कृषि रोजगार बारिश पर निर्भर है और जिसका जीडीपी में महत्वपूर्ण अनुपात होता है । इस साल की मानसून में गिरावट ने कई राज्यों में रही परंतु वहाँ पर तूफानी वारिश ने कहर बरपाया। जुलाई-अगस्त 2019 में, भारी बारिश के कारण उत्तरी राज्यों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर हरियाणा में भूस्खलन से मुसीबत आ गई और अन्य क्षेत्रो में जैसे: तटीय कर्नाटक, केरल; महाराष्ट्र में पुणे और मुंबई; गुजरात में बड़ौदा, अहमदाबाद, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल के उत्तर पूर्व और पश्चिम भाग में तूफानी बाढ़ आ गई।

05 अगस्त 2019 तक आई आपदा
अरब सागर से तेज हवाओं का प्रवाह कोंकण क्षेत्र को प्रभावी रहा । तटीय महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में 100 मिमी की कुल वर्षा सामान्यरूप में हुई तथा 150 मिमी तक भारी वर्षा स्थानीय रूप से हुई जिससे जन-जीवन अस्त-ब्यस्त रहा। बंगाल की खाड़ी के दक्षिणी क्षेत्र से आने वाली तेज़ हवाएं पूर्वोत्तर भारत को तर-वितर किया। जहां क्षेत्रीय वर्षा का विभाजन तीव्रता के आधार पर होता है:
1) गरज के साथ बारिश और बहुत भारी वर्षा होना: तटीय महाराष्ट्र, गोवा और तटीय कर्नाटक।
2) भारी और आंधीवाली बारिश: गुजरात, पूर्वी राजस्थान, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, केरल, और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह।
3) काफी व्यापक और गरज के साथ वर्षा: हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, बिहार, झारखंड, ओडिशा, आंतरिक महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंतरिक कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश।
4) बिखरी हुई और गरज के साथ बारिश: जम्मू और कश्मीर और पश्चिम राजस्थान और
5) पृथक वर्षा और आंधी: तमिलनाडु, पश्चिम राजस्थान के एक हिस्से में अधिकतम तापमान 40° C या इससे अधिक होने की संभावना रहती है।

06 अगस्त 2019 और इससे आगे की आपदा
गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के एक हिस्से में 07 अगस्त 2019, बुधवार सुबह तक 50 मिलीमीटर बारिश हुई, जो पश्चिमी और उत्तरी हवाओं के चलने के कारण रही। तीव्र और लंबे समय तक बारिश अचानक बाढ़ का कारण बन गई। बंगाल की उत्तरी खाड़ी के ऊपर एक चक्रवाती सर्कुलेशन धीरे-धीरे पश्चिम की ओर बढा, जिससे मानसून हवा के कम दबाव का क्षेत्र बनने से स्थानीय भारी बारिश और गरज के साथ बारिश अधिकायत हुई। 08 अगस्त 2019, गुरुवार को: पूर्वी भारत, मध्य भारत और उत्तरी मैदान पर सर्कुलेशन बना रहा और उत्तरी मैदान के ऊपरी स्तर पर पश्चिमी विक्षोभ से एक सर्ज और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ऊपर एक चक्रवाती परिचलन के कारण- मुख्य रूप से उत्तरी मैदानी क्षेत्र में गरज के साथ बारिश हुई। सप्ताहांत तक इसकी तीव्रता में बढ़ने की उम्मीद बनी रही। मध्य अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में किसी न किसी तरह की समुद्री तुफान का प्रभाव बना रहा। 40-50 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली तेज हवाओं से, कोंकण क्षेत्र, ओडिशा और आंध्र प्रदेश के तटीय स्थानो और सप्ताहाँत तथा अगले सप्ताह में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भी वर्षा होने की उम्मीद बनी रही ।

उपरोक्त अध्ययन से, हमने पाया कि पहाड़ी क्षेत्र में अत्यधिक तबाही, धूल भरी आंधी, चक्रवाती तूफान और भूस्खलन वर्ष 2014 के बाद से सन्युक्त राज्य अमेरिका से शुरू हुआ और अब दुनिया भर में इसकी आवृत्ति (फ्रिक्वेंसी) कई गुना बढ़ गई है। सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्र अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन, भारत, चीन, जापान, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्युजीलैंड आदि हैं, जहाँ पर लोगों के हताहत होने का खतरा, बुनियादी ढांचे को नुकसान: घरों, पुलों व पावर स्टेशन को बहा ले जाने की स्थिति हर साल अधिक हो रही हैं। यह केवल मानव निर्मित ग्लोबल-वार्मिंग की समस्या के कारण है, जिसने पारिस्थितिक प्रणाली को पूरी तरह से अप्रभावी बना दिया है। विकसित और विकासशील देशों की जीडीपी आपदा प्रबंधन नियंत्रण के भारी खर्च के कारण कम हो रही है। हमें पर्यावरणीय क्षति को नियंत्रित करने के लिए अधिकाधिक पेड़ लगाकर हरियाली के क्षेत्रफल को 60 फीसदी लाना होगा, जिससे प्रकृति में हुये विघटन को वापस लाया जा सके।

हमें शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जल-संचयन हेतु जलाशयों को पुनर्स्थापित कर धरती को रिचार्ज करना होगा और अक्षय ऊर्जा को भी यथासंभव अधिकाधिक उपयोग करना होगा। ध्रुवीय (उत्तरी/ दक्षिणी तट) से बर्फ पिघलने के कारण समुद्री सतह में बढोत्तरी होने से, पृथ्वी के घूमने की गति और कोण में परिवर्तन होना सम्भव है। वह एक काला दिवस हो सकता है- जब इस खूबसूरत पृथ्वी ग्रह पर- सम्पूर्ण जीव-जंतु व प्राणी अपने अंत के भयानक परिणामों का सामना करने हेतु बाध्य होगे, बशर्ते हम अभी से सचेत हो जाये, जिससे स्थिति हमारे नियंत्रण से बाहर न हो जाएं। अब ग्लोबल वार्मिंग के इस दुष्परिणाम से हो रहे, जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद के लिए बहुत तेजी से कार्य करने का समय आ चुका है। अतः आइये आने वाली पीढी के लिये पृथ्वी के सन्साधनों के दोहन को रोके व हरियाली को बढाकर ‘पृथ्वी और जीवन’ को बचाने का प्रयास करे।

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