Workshop : बच्चों के बीच रखें तीन साल का अंतर, मां-बच्चे की सेहत होगी बेहतर

  • तीन साल से कम अंतर वाली 62 फीसद महिलाएं एनीमिया की शिकार
  • असुरक्षित गर्भपात, मातृ मृत्यु और बीमारी की बढ़ जाती है संभावना
  • दो साल से कम अंतर वाले 10 फीसदी बच्चे नहीं मना पाते पहला जन्मदिन

लखनऊ : मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए यह बहुत ही जरूरी है कि दो बच्चों के जन्म में कम से कम तीन साल का अंतर रखा जाये। ऐसा न करने से जहां महिलाएं उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था में पहुँच जाती हैं वहीं बच्चों के भी कुपोषित होने की पूरी संभावना रहती है। बच्चों के जन्म में तीन साल से कम अंतर रखने वाली करीब 62 फीसद महिलाएं एनीमिया की गिरफ्त में आ जाती हैं। इसी तरह दो साल से कम अंतराल पर जन्मे बच्चों में शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) 91 प्रति हजार जीवित जन्म है, जो कि समग्र आईएमआर 64 प्रति हजार जीवित जन्म से कहीं अधिक है। यह बात निदेशक- परिवार कल्याण डॉ॰ बद्री विशाल ने गुरुवार को यहाँ एक स्थानीय होटल में सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफॉर) के सहयोग से युवा दम्पतियों में बच्चों के बीच अंतर और गर्भधारण में देरी के महत्व की अवधरणा को मजबूत करने के लिए आयोजित मीडिया कार्यशाला के दौरान कही।

​इस अवसर पर संयुक्त निदेशक- परिवार कल्याण डॉ॰ वीरेंद्र सिंह ने कहा- उत्तर प्रदेश की कुल किशोर जनसंख्या करीब 4.89 करोड़ है। एनएफएचएस-4 (2015-16) के आंकड़े बताते हैं कि सर्वेक्षण के दौरान करीब 3.8 फीसद किशोरियाँ 15 से 19 साल की उम्र में गर्भवती हो चुकी थीं या माँ बन चुकी थीं। इस वर्ग की किशोरियों को असुरक्षित गर्भपात और किशोरावस्था में गर्भ धारण को टालने के लिए अंतराल विधियों के बारे में जागरूक करना और उपलब्धता सुनिश्चित कराने पर पूरा ज़ोर दिया जा रहा है। यह वह अवस्था होती है जब किशोरियों को उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था का सामना करना पड़ता है, जो कि मातृ एवं शिशु मृत्यु का प्रमुख कारण भी बनता है। इसलिए सही मायने में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर पर काबू पाने के लिए पहले इस वर्ग तक परिवार नियोजन के मौजूद विकल्पों को पहुंचाना बहुत जरूरी है। अस्थायी गर्भनिरोधक की आवश्यकता को पूरा करने से लड़कियों के स्कूल छोड़ने, महिलाओं के कार्यस्थल छोड़ने जैसी समस्याओं पर काबू पाया जा सकेगा। इससे जहां वित्तीय लाभ होगा वहीं जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। इसके साथ ही अपनी इच्छा से गर्भधारण का अवसर मिलने से यह युवा महिलाएं समाज में अपने लिए समान दर्जा हासिल करने में भी सक्षम हो सकेंगी।

वरिष्ठ परिवार नियोजन विशेषज्ञ, सिफ़्सा डा. अरुणा नारायण ने कहा- परिवार के साथ-साथ सभी विभागों की जिम्मेदारी बनती है कि महिला अपनी देखभाल करने को लेकर जागरूक हो ताकि वह स्वयं के लिए निर्णय ले सके। इसके लिए मीडिया एक सशक्त माध्यम है जो समुदाय को जागरूक कर सकती है। उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, परिवार नियोजन की महाप्रबंधक, डॉ॰ अल्पना ने परिवार नियोजन के साधनों के बारे में विस्तार से बताते हुये कहा- परिवार नियोजन के लिए मौजूद आधुनिक साधनों में ज़्यादातर लोगों को अस्थाई साधन पसंद आ रहे हैं। इन अस्थाई साधनों में इंट्रायूट्राइन कोंट्रासेप्टिव डिवाइस (आईयूसीडी), पोस्टपार्टम इंट्रायूट्राइन कोंट्रासेप्टिव डिवाइस (पीपीआईयूसीडी), अंतरा, कंडोम, कोंट्रासेप्टिव पिल्स (ओसीपी) और छाया आते हैं। अंतरा से संबंधित किसी भी तरह की जानकारी के लिए टोल फ्री नंबर 18001033044 पर संपर्क कर सकते हैं।

इस अवसर पर किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय की प्रोफेसर और सेंटर ऑफ एक्सिलेन्स की समन्वयक डॉ॰ सुजाता देव ने बताया कि किशोर/किशोरियों को स्वयं जागरूक होना जरूरी है कि उनके शरीर में क्या परिवर्तन हो रहे हैं, उनके लिए क्या आवश्यक है और क्या नहीं। तभी वह सही निर्णय ले पाएंगे क्योंकि यही किशोर/किशोरियों आगे चलकर दंपत्ति बनते हैं। विवाह से पहले लड़का हो या लड़की उन्हें विवाह पूर्व परामर्श दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें परिवार नियोजन के साधनों के साथ अनचाहा गर्भ या अनियोजित गर्भावस्था के बारे में भी जानकारी मिल पाये। साथ ही परिवार नियोजन के मौजूदा साधनों को जन-जन तक पहुंचाने और जागरूकता पर ज़ोर देने की बात कही। कार्यशाला में उत्तर प्रदेश तकनीकि सहायक इकाई (यूपीटीएसयू), ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटीज़ (जीएचएस), ममता हेल्थ इंस्टीट्यूट ऑफ मदर एंड चाइल्ड, पोपुलेशन सर्विस इंटेरनेशनल (पीएसआई) व पोपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) व पाथ के प्रतिनिधियों ने भी प्रतिभाग किया।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com