हिंदू पक्ष की दलील- पूरी जमीन पर रामलला का हक, मुस्लिम पक्ष का दावा- जमीन मस्जिद की है

अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक साबित करने के लिए 40 दिन चली लंबी सुनवाई में हिंदू और मुस्लिम पक्ष ने अपनी लंबी चौड़ी दलीलें रखीं। बहस देवता की परिभाषा से लेकर विवादित संपत्ति के नष्ट हो जाने पर मालिकाना हक के दावे के मायनों तक पहुंची।

हिंदू पक्ष की दलीलें

लगातार 40 दिन चली सुनवाई पर एक निगाह डालें तो हिंदू पक्ष की ओर से भगवान श्रीराम विराजमान ने पूरी जमीन को जन्मभूमि घोषित कर मालिकाना हक दिये जाने की मांग की है। उनकी ओर से जन्मस्थान को भी एक अलग पक्षकार बनाया गया है और मुकदमें में दावा दिया गया है कि जन्मस्थान स्वयं देवता है और उसे न्यायिक व्यक्ति माना जाएगा। हालांकि कानून मे हिंदू देवता (मूर्ति) को न्यायिक व्यक्ति माना जाता है और उसे वही सारे अधिकार प्राप्त होते हैं जो किसी जीवित व्यक्ति को होते हैं।

मुख्य बहस जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति मानने के मुद्दे पर थी

इस मुकदमें में मुख्य बहस जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति मानने के मुद्दे पर थी। जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति मानने के संबंध में हिंदू पक्ष की ओर से पुष्कर, कैलाश और संगम आदि का हवाला भी दिया गया। उनका कहना था कि देवता पर प्रतिकूल कब्जे और मुकदमा दाखिल करने की समयसीमा का नियम नहीं लागू होता और न ही देवता का बंटवारा हो सकता है। ऐसे मे जन्म भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का हाईकोर्ट का आदेश सही नहीं है।

भगवान राम का जन्म केंद्रीय गुंबद की जगहर हुआ था

हिंदू पक्ष ने अपनी दलीलों में यह भी साबित करने की कोशिश की कि भगवान राम का जन्म ठीक उसी स्थान पर हुआ था जो विविादित ढांचे में केंद्रीय गुंबद की जगह है और जहां इस समय भगवान रामलला विराजमान हैं। इस सिलसिले मे हिंदू पक्ष की ओर से स्कंद पुराण, वाल्मीकि रामायण व विदेशी यात्रियों के वृतांत का हवाला दिया गया।

मुस्लिम कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं, जन्मस्थान नहीं बदला जा सकता

हिंदू पक्ष की ओर से यह भी दलील थी कि अयोध्या में बहुत सी मस्जिद हैं मुस्लिम कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं, लेकिन जन्मस्थान नहीं बदला जा सकता हिन्दुओं की वहां आस्था है।

हिंदू पक्ष ने एएसआइ रिपोर्ट पर काफी जोर दिया

हिंदू पक्ष ने एएसआइ की रिपोर्ट पर काफी जोर दिया जिसमे विवादित ढांचे के नीचे उत्तर कालीन मंदिर जैसी विशाल संरचना होने की बात कही गई है। यह भी कहा कि विवादित ढांचे मे कलश, कमल और देवी देवताओं की मूर्तियां थी जिससे साबित होता है कि वहां पहले मंदिर था जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई और मंदिर सामग्री मस्जिद बनाने मे प्रयोग की गयी। यह भी कहा कि ये सारी चीजें मस्जिद में नहीं होती हैं।

निर्मोही अखाड़ा ने पूरी जमीन पर कब्जा मांगा

पूजा का अधिकार मांग रहे गोपाल सिंह विशारद के उत्तराधिकारी की ओर से कहा गया कि जब हाईकोर्ट ने यह मान लिया है कि वह स्थान राम जन्मभूमि है और हिन्दुओं की वहां आस्था है तो ऐसे में उन्हें वहां पूजा करने से कैसे रोका जा सकता है। हाइकोर्ट ने विशारद का मुकदमा खारिज कर दिया था। निर्मोही अखाड़ा ने स्वयं को रामलला का सेवादार बताते हुए पूरी जमीन पर कब्जा और प्रबंधन का अधिकार मांगा। अखाड़ा का कहना है कि वह प्राचीन काल से वहां भगवान रामलला की पूजा अर्चना करता चला आ रहा है और 1885 से उसके वहां होने और राम चबूतरे पर पूजा करने की बात सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी मानी है।

मुस्लिम पक्ष की दलीलें

दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष की ओर से सुन्नी वक्फ बोर्ड व अन्य सात पक्षकारों ने हिंदू पक्ष की दलीलों का जोरदार विरोध किया। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि स्थान देवता नहीं माना जा सकता और न ही उसे न्यायिक व्याक्ति का दर्जा दिया जा सकता है। उनकी ओर से आरोप लगाया गया कि हिंदू पक्ष ने ऐसा कानूनी की निगाह मे बाकी पक्षों के अधिकार समाप्त करने के लिए जानबूझकर किया है।

हिंदू पक्ष राम के जन्म का ठीक स्थान साबित करने में नाकाम रहा

मुस्लिम पक्ष ने यह भी कहा कि हिंदू पक्ष भगवान राम के जन्म का ठीक स्थान साबित करने में नाकाम रहा है। ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे साबित हो कि भगवान राम का जन्म केन्द्रीय गुंबद के नीचे हुआ था।

बाबर ने 1528 में मस्जिद का निर्माण कराया था तबसे ही मुसलमान नमाज पढ़ते रहे

मुस्लिम पक्ष ने कहा कि बाबर ने 1528 में मस्जिद का निर्माण कराया था और मुसलमान तब से वहां लगातार नमाज पढ़ते रहे हैं इसलिए उस जमीन पर उनका मालिकाना हक है। बाबर शासक था और शासक होने के कारण जमीन का मालिक था ऐसे में पांच सौ साल बाद अदालत बाबर के काम को नहीं जांच परख सकती।

मस्जिद वक्फ संपत्ति थी

मुस्लिम पक्ष का कहना है कि मस्जिद वक्फ संपत्ति थी जिसे मुसलमान लंबे समय से प्रयोग करते रहे हैं। मुस्लिम पक्ष ने विभिन्न गैजेटियरों और आदेशों का आदि का हवाला देते हुए कहा कि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भी उसे मस्जिद माना था।

6 दिसंबर 1992 को ढांचा ढहाया जाना गलत था

मुस्लिम पक्ष ने कहा कि 6 दिसंबर 1992 को ढांचा ढहाया जाना गलत था और उनकी मांग है कि वहां 5 दिसंबर 1992 की स्थिति बहाल की जाए और दोबारा इमारत निर्माण कराया जाए।

सुप्रीम कोर्ट के सवाल

-देवता क्या है।

-क्या स्थान न्यायिक व्यक्ति हो सकता है।

-क्या मस्जिद में फूल पत्ती, जानवरों और अन्य मूर्तियां हो सकती हैं।

-जिस संपत्ति पर दावा किया गया हो अगर वही नष्ट हो जाए तो उस पर मालिकाना हक के दावे का क्या होगा।

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