रशियन मेरिनो से सुधरेगी उत्तराखंड में भेड़ों की नस्ल, पशुपलकों की बढ़ेगी आय

उत्तराखंड में तीन दशक पुरानी मेरिनो भेड़ की नस्ल सुधारने के लिए उत्तराखंड भेड़ एवं ऊन विकास बोर्ड (यूएसडब्ल्यूडीबी) ने कवायद तेज कर दी है। विभाग ने भेड़ों की नस्ल सुधारने के लिए ऑस्ट्रेलिया से 240 रशियन मेरिनो भेड़ मंगवाई है। भेड़ की इस नस्ल से जहां भेड़ पालकों की आमदनी में वृद्धि होगी, वहीं उन्नत किस्म की ऊन भी मिलने लगेगी।

उत्तराखंड के कई पर्वतीय जिलों में भेड़ पालन अच्छे स्तर पर हो रहा है। वर्तमान में यहां करीब 3.67 लाख भेड़ पाली जा रही हैं। अभी मेरिनो व रेंबुले नस्ल की भेड़ ही पालकों के पास हैं। इस नस्ल को वर्ष 1991-92 में विदेश से लाकर यहां विकसित किया गया था। लंबा समय होने के कारण अब इस नस्ल में इनब्रीडिंग की समस्या आने लगी है।

इससे इन भेड़ों से उत्पादित ऊन की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है। इसी समस्या को दूर करने के लिए उत्तराखंड भेड़ एवं ऊन विकास बोर्ड ने भेड़ों की नस्ल सुधार के लिए योजना बनाई थी। इसके तहत इस माह के आखिर तक ऑस्ट्रेलिया से 240 रशियन मेरिनो भेड़ यहां पहुंच जाएंगी। इनमें 200 भेड़ व 40 मेढ़ शामिल हैं।

प्रोजेक्ट के अनुसार इन भेड़ों को शुरुआत में प्रजनन परिक्षेत्र कोपड़धार (टिहरी) में रखा जाएगा। यहां से दो चरण की नस्ल तैयार होने के बाद तीसरे चरण की नस्ल को भेड़ पालकों में बांटा जाएगा। नई नस्ल की इन भेड़ों के विकास के बाद उत्तराखंड में भेड़ों से उत्पादित ऊन की गुणवत्ता में वृद्धि होने के साथ भेड़ पालकों की आमदनी भी बढ़ेगी।

परियोजना निदेशक भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान डॉ. राजेंद्र कुमार वर्मा ने बताया कि एक निश्चित अवधि के बाद किसी भी तरह के जीवों में मिसब्रीडिंग की समस्या आ जाती है। इसके लिए इस तरह क्रॉस ब्रीडिंग के जरिये नस्ल सुधार के प्रयास किए जाते हैं। बताया कि संपूर्ण अध्ययन और अनुसंधान के बाद ही नई नस्ल की भेड़ों को मंगाया गया है।

20 माइक्रोन से पलती होगी ऊन 

यूएसडब्ल्यूडीबी की ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला के अनुसंधान अधिकारी सुरेश चंद्र वाजपेयी बताते हैं कि उत्तराखंड में अभी पाली जा रही मेरिनो भेड़ की ऊन 26 से 30 माइक्रोन की है। यानी इस ऊन से स्वेटर, कंबल, कॉरपेट आदि वस्तुएं ही बनाई जा सकती हैं।

इस ऊन का मूल्य भी पालकों को 60 रुपये प्रति किलो ही मिल पाता है। वहीं, यहां लाई जा रही नई नस्ल की भेड़ से 20 माइक्रोन से पतली और अधिक लंबाई की ऊन प्राप्त की जाती है। इससे कपड़े भी तैयार किए जा सकते हैं। इसका मूल्य भी पालकों को सौ रुपये प्रति किलो से अधिक मिलता है। मौजूदा भेड़ से जहां वर्ष में दो से ढाई किलो ऊन प्राप्त होती है, वहीं नई नस्ल की भेड़ से प्रति वर्ष तीन से चार किलो ऊन प्राप्त की जा सकती है।

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