यूपी में रीढ़विहीन कांग्रेस की मजबूरी है गठवन्धन

मनोज श्रीवास्तव : लखनऊ , लोकसभा 2019 का चुनाव लड़ने को वार्मअप हो रही कांग्रेस बिगुल बजने से पहले ही यूपी में बिखर गयी है। प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर और मूल कांग्रेसियों में आज तक तार-तम्य बन ही नहीं पा रहा है।आधा दर्जन गिने -चुने लोगों के बीच घिरे रहने वाले राजबब्बर मूल कांग्रेसियों तक पहुंच ही नहीं पाए।प्रदेश कांग्रेस के फ्रंटल संगठनों की हालत भी लुंज-पुंज हो चुकी है।आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली प्रदेश महिला कांग्रेस का पद अरसे से खाली पड़ा है। युवक कांग्रेस के नेताओं के पास राहुल-सोनिया के अलावा कुछ चुनिंदा नेताओं की अगुआई के अलावा कोई विशेष काम नहीं रह गया है।प्रदेश मीडिया विभाग में पदाधिकारी मनोनीत होने के पहले साक्षात्कार की इतनी खिल्ली उड़ गई कि आज तक उस पार्टी उससे उबर नहीं पाई है।मीडिया कक्ष में पट्टी लिख कर चस्पा किया गया “कृपया अनावश्यक न बैठें”। सेवा दल प्रतीकात्मक इकाई बन कर हांफ रही है। जानकर बताते हैं संगठन की कमजोरी के कारण ही राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाया था। सूत्रों की मानें तो राजनैतिक प्रबंधक प्रशांत किशोर ने भी रीढ़हीन हो चुकी कांग्रेस को यूपी में खड़ा करने से मना कर दिया था।अब लोकसभा 2019 में राहुल 10 सीट के समझौते के साथ सपा-बसपा से गठवन्धन करने को राजी है। यूपी कांग्रेस की दुर्गति का बचा-खुचा कसर प्रदेश प्रभारी गुलामनवी आजाद पूरा कर दिए हैं। गुलामनवी आजाद की मुस्लिम परस्ती का एजेंडा भी प्रादेशिक नेताओं की नाराजगी का कारण बना हुआ है। इस संदर्भ में कांग्रेस मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार धीरज त्रिपाठी बताते हैं कि ग़ांधी परिवार की कमियों के कारण ही कांग्रेस कोमा में पहुँच गयी है। इस लिए जब तक गांधी परिवार से ही कोई योग्य नेतृत्व नहीं निकलेगा तब तक कांग्रेस का खड़ा होना बहुत बड़ी चुनौती है। यही कारण है कि बार-बार कार्यकर्ताओं की मांग के बाद भी सोनिया गांधी प्रियंका को आगे नहीं आने दे रही हैं।

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