यूपी समेत 13 राज्यों के किसानों ने जाना जिरेनियम की खेती से आमदनी बढ़ाने का तरीका

लखनऊ : केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीएसआईआर-सीमैप) लखनऊ में मंगलवार को आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण औषधीय एवं सगंध फसलों के उत्पादन एवं प्रसंस्करण पर तीन दिवसीय कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन  सीमैप के निदेशक डॉ. अब्दुल समद ने किया। प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रमुख डॉ. आलोक कृष्णा ने बताया कि जिरेनियम की मांग प्रतिवर्ष 120-130 टन है और भारत में उत्पादन सिर्फ 1-2 टन होता है। मांग को देखते हुये जिरेनियम की खेती उत्तर भारत में की जा सकती है। उन्होंने बताया कि औषधीय एवं सगंध पौधों की व्यवसायिक एवं जैविक खेती से तीन गुनी आय की जा सकती है। उन्होंने कृषि वानिकी तथा वर्मीकोंपोस्टिंग द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने पर जोर दिया।

डॉ. आलोक कालरा ने एरोमा के राष्ट्रीय स्वरूप के बारे में बताया। इस अवसर पर डॉ. सौदान सिंह ने जिरेनियम और मिंट की खेती उत्तर भारत में व्यावसायिक स्तर पर करने की सलाह दी और उनकी प्रौद्योगिकी के बारे में बताया। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की अग्रणी पौध शोध प्रयोगशाला सीमैप में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में 13 राज्यों से आए 100 किसान एवं उद्घमियों ने भाग लिया। जिसमें मुख्यतः उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हिमांचल प्रदेश, राजस्थान एवं तेलंगाना इत्यादि राज्यो से प्रतिभागियों ने विशेष व्याख्यान माला में भाग लिया और उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के 150 जिरेनियम की खेती कर रहे किसानों ने भी भाग लिया।

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