भारत का नागरिकता संशोधन विधेयक मौलिक लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत : अमेरिका

वाशिंगटन : अमेरिकी कांग्रेस की विदेश मामले की समिति ने भारतीय नागरिकता संशोधन विधेयक के कुछ अंशों पर चिंता जाहिर की है और कहा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता को परखने से मौलिक लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी हो सकती है। समिति ने प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए यह भी कहा कि बहुलवाद अमेरिका और भारत दोनों देशों का मुख्य आधार है और दोनों देशों का साझा मूल्य है, इसलिए धर्म के आधार पर नागरिकता को परखने से मौलिक लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी हो सकती है।

विदित हो कि यह विधेयक सोमवार को गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में पेश किया जिस पर सात घंटे तक बहस चली और अंत में यह 94 के मुकाबले 308 मतों से पारित हो गया। अब इसे उच्च सदन राज्यसभा में पारित कराना होगा। इस विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ्गानिस्तान से उत्पीड़ित होकर 31 दिसम्बर, 2014 तक आए आए हिन्दू, सिख, पारसी, ईसाई, जैन और बौद्ध अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता दी जाएगी। लेकिन मुसलमानों को इस श्रेणी में नहीं रखा गया है, क्योंकि इन देशों में इस्लाम राजधर्म है। इस बीच धर्म पर संघीय पैनल ने अमेरिका से इस विधेयक को लेकर गृह मंत्री अमित शाह पर प्रतिबंध के जरिए दबाव बनाने की मांग की है, क्योंकि इस विधेयक के दायरे में पड़ोसी देशों के मुसलमानों को नहीं रखा गया है।

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