2015 में आया दिल्ली विधानसभा चुनाव का नतीजा अभी भी मुझे सालता है: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह

भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का दिल अभी दिल्ली में, दिल्ली के लिए धड़क रहा है। शाह की सक्रियता के चलते भाजपा के तमाम बड़े नेताओं के लिए दिल्ली अहम हो गई है।
कई केंद्रीय मंत्रियों ने अपना कार्यक्रम रद्द करके खुद को दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार पर केंद्रित कर लिया है। हो भी क्यों न, जब शाह राष्ट्रपति भवन में रिसेप्शन और बीटिंग रिट्रीट जैसे समारोह से गैर-हाजिर रहकर खुद दिल्ली चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं।
फोन पर उपलब्ध होने वाले नेताओं के पास भी समय कम है। सबका ध्यान बस दिल्ली में सत्ता बदलने पर टिका है। भाजपा नेता तरुण चुघ, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा और खुद गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली के चुनाव की तस्वीर बदलने के लिए पूरा जोर लगा दिया है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह भी दिल्ली विधानसभा चुनाव का अपडेट ले रहे और उनकी टीम लगातार चुनाव प्रचार की योजना में व्यस्त है। दिल्ली के प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर की भारी भरकम टीम के सदस्य सोशल मीडिया से लेकर हर डेवलपमेंट को लेकर व्यस्त हैं।
अमित शाह ने खुद दिल्ली विधानसभा प्रचार का रोडमैप तैयार किया। सूत्र बताते हैं कि दिल्ली को ध्यान में रखकर ही वह बिहार में काफी पहले नीतीश कुमार के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर आए।
शाह की इस रणनीति ने जहां नीतीश कुमार को भाजपा के साथ तालमेल मजबूत करने के लिए विवश कर दिया, वहीं जद (यू) के कई नेताओं की छटपटाहट बढ़ गई।

बताते हैं पवन वर्मा और प्रशांत किशोर की जद (यू) से विदाई का कारण भी शाह की रणनीति है। शाह ने लोजपा प्रमुख राम विलास पासवान से बात की और जद (यू) को दिल्ली में दो, लोजपा को एक सीट दी।

अकाली दल को भी मनाया। सहयोगियों के साथ चुनाव प्रचार की रणनीति बनाई। कुल मिलाकर जातिगत, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और सांप्रदायिक समीकरण पर केंद्रित होकर भाजपा ने विधानसभा चुनाव फतेह का खाका तैयार किया है।
शाह के मैदान में उतरने का साफ असर दिखाई दे रहा है। भाजपा का मुख्य चुनावी मुद्दा अब शाहीन बाग में चल रहा महिलाओं का प्रदर्शन बन गया है। अपनी हर स्पीच में वह इसे राष्ट्रवाद से जोड़ रहे हैं। पहले दिल्ली में लोकप्रिय, आक्रामक और सधा चुनाव प्रचार कर रही आम आदमी पार्टी को अचानक रणनीति बदलनी पड़ी है।
आप अब रक्षात्मक, शाह के हमले की जवाबी रणनीति को लेकर आगे बढ़ रही है। वहीं कांग्रेस पार्टी का चुनाव प्रचार अभियान बुरी तरह से लड़खड़ा गया है। चुनाव प्रचार के लिए केवल सात दिन बचे हैं और कांग्रेस के नेता अभियान को धार देने की तरकीब खोज रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी और शाह को दिल्ली की अहमियत का अंदाजा है। 2015 में आया दिल्ली विधानसभा चुनाव का नतीजा भी सालता है। पार्टी के एक पूर्व महासचिव का कहना है कि दिल्ली भले केंद्र शासित राज्य हो, लेकिन यहा दूसरे दल की सरकार चेहरे पर दाग की तरह है।
दूसरे 2018 मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भाजपा ने बहुमत खोया। सरकार बनाने से रह गयी। महाराष्ट्र में सरकार बनाने से चूक गई। हरियाणा में जजपा  के साथ गठबंधन करना पड़ा। झारखंड में भी पार्टी को सरकार बनाने लायक जनसमर्थन नहीं मिला। जबकि इन सभी राज्यों में भाजपा की सरकार थी। लिहाजा अमित शाह दिल्ली जीतकर देश के भाजपा कार्यकर्ताओं, नेताओं, मतदाताओं को सकरात्मक संदेश देना चाहते हैं।

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