जानें- क्‍या है ओआईसी, जिसमें कश्‍मीर के मुद्दे पर पाकिस्‍तान पड़ा अलग-थलग

पाकिस्‍तान का कश्‍मीर के मुद्दे पर पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ना कोई पहली बार नहीं हुआ है। लेकिन इस बार खास ये हुआ है कि इस्‍लामिक देशों के संगठन ओआईसी ने भी इस मुद्दे पर उसे अकेला छोड़ दिया है। बहुत कोशिश करने के बाद भी ओआईसी जैसे मंच पर कश्‍मीर के मुद्दे पर बहस न होने के फैसले से इमरान खान बुरी तरह से बौखला गए हैं। आपको बता दें कि यह 57 इस्‍लामिक देशों का संगठन है। संयुक्‍त राष्‍ट्र के बाद इसी संगठन में सबसे अधिक देश सदस्‍य हैं। इस संगठन की तरफ से आया कोई भी बयान पूरी दुनिया के लिए खासा अहमियत रखता है।

संगठन पर एक नजर 

इस्‍लामिक सहयोग संगठन के सदस्‍य देशों की जनसंख्‍या की यदि बात करें तो 2018 के मुताबिक यह करीब 190 करोड़ है। इस्‍लामिक सहयोग संगठन के सदस्‍य देशों की जीडीपी की यदि बात की जाए तो यह करीब 27,949 अरब डॉलर की है। इसमें कतर और संयुक्‍त अरब अमिरात संगठन के सबसे अमीर देशों के तौर पर शामिल हैं। ये संगठन 43 लाख से अधिक लोगों नौकरी देता है।

दिलचस्‍प है इस संगठन के बनने की कहानी  

इस संगठन के बनने की कहानी अपने आप में बेहद दिलचस्‍प है। 21 अगस्‍त 1969 को येरुशल की 800 वर्ष पुरानी अल-अक्‍स मस्जिद भीषण आग की चपेट में आने के बाद तबाह हो गई थी। उस वक्‍त येरुशलम के मुफ्ती अमीन-अल-हुसैनी ने इसका आरोप इजरायल पर डाला था। उन्‍होंने सभी मुस्लिम देशों से एक सम्‍मेलन में शामिल होने की अपील की। यह सम्‍मेलन इजरायल और अल-अक्‍स मस्जिद के पुनर्जिवित करने के मकसद से बुलाया गया था। 25 सितंबर 1969 को हुए इस सम्‍मेलन में 24 मुस्लिम देशों ने भाग लिया था। यह सम्‍मेलन मोरक्‍को के रबात शहर में आयोजित किया गया था।

नाम में किया गया बदलाव 

इस सम्‍मेलन में सभी मुस्लिम देशों के बीच सहयोग बढ़ाने को लेकर एक प्रस्‍ताव पास किया गया। इसमें आर्थिक, विज्ञान, सांस्‍कृति और धार्मिक समेत सभी क्षेत्रों में सहयोग की बात की गई थी। इस सम्‍मेलन के छह माह बाद 1970 में मुस्लिम देशों के विदेश मंत्रियों की सऊदी अरब में बैठक आयोजित की गई जिसको ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्‍लामिक कॉफ्रेंस का नाम दिया गया था। 1972 में इसके नाम में बदलाव कर इसको ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्‍लामिक कॉपरेशन किया गया।

मकसद- शांति और सहयोग बढ़ाना 

1969-1972 का समय इस संगठन के गठन के लिए बेहद खास रहा। इसके गठन के पीछे मकसद था इस्‍लामिक देशों के हितों को वर्यीयता देना और आपसी सहयोग बढ़ाना था। इसके अलावा इस संगठन का मकसद पूरी दुनिया के अन्‍य देशों के साथ मिलकर विश्‍व में शांति और सहयोग बढ़ाना भी था। ओआईसी एक ऐसा संगठन है जिसका संयुक्‍त राष्‍ट्र और यूरोपीय संघ में एक स्‍थायी प्रतिनिधिमंडल और राजदूत भी है। इसकी आधिकारिक भाषा अरबी, इंग्लिश और फ्रेंच है।

पाकिस्‍तान ने निजी हितों के चलते संगठन में डाली फूट 

ओआईसी जिस मकसद से शुरू हुआ था उसको बीते कुछ वर्षों में पाकिस्‍तान की वजह से पटरी से उतरता भी देखा गया है। पाकिस्‍तान लगातार इस संगठन में अपने वर्चस्‍व को बढ़ाने और अपने निजी हितों के लिए संगठन के दूसरे सदस्‍यों को भड़काने का काम करता रहा है। पाकिस्‍तान की लगभग सभी हुकूमतों ने ऐसा किया है, लेकिन वर्तमान में इमरान खान सरकार में इसकी काफी कोशिश की गई है। बात चाहे भारत में लागू हुए नागरिकता संशोधन कानून की हो या फिर कश्‍मीर में किए गए बदलावों की, पाकिस्‍तान की कोशिश रही है कि इस संगठन के माध्‍यम से इन मुद्दों को धार दी जाए। हालांकि इसमें उसको अब तक कामयाबी नहीं मिल सकी है।

मलेशिया का नया दांव 

पाकिस्‍तान और इस संगठन को लेकर एक खास बात ये भी है कि भले ही पाकिस्‍तान की निजी हितों के मुद्दे पर यहां नहीं चल सकी, लेकिन वह इसमें फूट डालने की नीति में कहीं न कहीं सफल होता जरूर दिखाई दिया है। ऐसा कहने की वजह मलेशिया द्वारा बीते वर्ष दिसंबर में किया गया हुआ मुस्लिम देशों का सम्‍मेलन है। आगे बढ़ने से पहले आपको ये बता दें कि मलेशिया और तुर्की उन देशों में शामिल हैं, जिन्‍होंने कश्‍मीर मुद्दे पर पाकिस्‍तान का साथ दिया है। मलेशिया ने इस सम्‍मेलन का आयोजन ओआईसी से अलग एक संगठन बनाने की कवायद के तहत किया था। मलेशिया के पीएम का कहना है कि ओआईसी अपने मकसद से भटक गया है और अब ये औचित्‍यहीन हो चुका है। इस सम्‍मेलन में सऊदी अरब के दबाव के चलते पाकिस्‍तान शामिल नहीं हुआ था। लेकिन कुछ देश जरूर इसमें शामिल हुए थे। यह सम्‍‍‍मेलन ओआईसी में फूट को दर्शाने के लिए काफी है।

संगठन का प्रतीक चिन्‍ह

इस संगठन के प्रतीक चिन्‍ह को बनाते समय इस बात का ध्‍यान रखा गया कि इसमें संगठन का मकसद और विजन दोनों ही प्रतिबिंबित हों। इसके अलावा इस्‍लाम को दर्शाने के लिए काबा भी दर्शाया गया है। 5 अगस्‍त 1990 को 45 सदस्‍य देशों के साथ ओआईसी ने मानवाधिकार पर आए कायरो प्रस्‍ताव को स्‍वीकार किया और सभी सदस्‍य देशों को इसके अनुसार चलने की अपील की। इसमें शरिया कानून को प्राथमिकता दी गई थी। 2008 में संगठन ने अपने चार्टर मे कुछ बदलाव किया था।

जब बदला नाम और लोगो 

28 जून 2011 को इस संगठन का 38वां विदेश मंत्रियों का सम्‍मेलन कजाखिस्‍तान के शहर अस्‍ताना में आयोजित किया गया था। वहां पर इसके नाम में बदलाव कर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्‍लामिक कांफ्रेंस किया गया था। साथ ही इसके लोगो या चिन्‍ह में भी बदलाव किया गया था। रूस और थाइलैंड इस संगठन के ऑब्‍जर्वर की हैसियत से इसमें शामिल होते रहे हैं।

जब सुषमा हुई थी इसके सम्‍मेलन में शामिल 

माार्च 2019 में तत्‍कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज भी इस संगठन के उदघाटन सत्र का हिस्‍सा बनीं थीं। उन्‍होंने संगठन के सदस्‍यों को संबोधित भी किया था। यह पहला मौका था जब भारत के किसी मंत्री को इस संगठन में शामिल होने का न्‍यौता दिया गया था। ओआईसी के इस फैसले का पाकिस्‍तान ने विरोध किया था और इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया था।

बौखलाए इमरान 

पाकिस्‍तान और इस संगठन की बात करें तो आपको बता दें कि सऊदी अरब के दबाव में इस मंच से कश्‍मीर का मसला न उठाने का फैसला इमरान खान को इस कदर नागवार गुजरा है कि वह ये कहने से भी नहीं चूके कि इस संगठन की कोई एक आवाज नहीं है। पाकिस्‍तान के अखबार द डॉन के मुताबिक बौखलाए इमरान ने मलेशिया की यात्रा पर ये भी कहा कि आखिर कब तक कश्‍मीर के मसले पर संगठन खामोश रहेगा।

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