न चीन लड़ेगा न भारत…!

-पवन सिंह

चीन की सेनाएं और भारतीय फौजें जब आमने-सामने आईं उसी दौरान मैंने एक लेख लिखा था कि यह चौतरफा मुसीबतों में फंसे दो देश के दो नेताओं का चौसर है। इसकी बिसात कुछ यूं बिछेगी न तू जीता न मैं हारा। रही बात मीडिया की तो भारतीय संदर्भों में मीडिया खासकर न्यूज चैनलों को तथाकथित मीडिया स्कूलों से निकले लवंडों की फौज चला रही है। यह फौज अपने हिसाब से नवजनित बछड़े की तरह पूंछ उठाकर कभी इधर कभी उधर दोल्लती मारती रहेगी जिसे बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। “नवजनित बछड़ा चैनलीय मीडिया”… यह वाक्य विन्यास मेरा नहीं है, इसके जनक प्रख्यात साहित्यकार मनोहर श्याम जोशी जी हैं। जब मैं दिल्ली आउटलुक में कार्यरत था, उन दिनों वह एक कालम लिखा करते थे जिसमें चैनलीय मीडिया को वह इसी वाक्य विन्यास से सुशोभित किया करते थे। वैसे आदरणीय मनोहर श्याम जोशी जी के बारे में बताता चलूं कि वह “साप्ताहिक हिंदुस्तान” जैसी मैगजीन के संपादक थे और टीवी धारावाहिकों में “हम लोग” व “बुनियाद” के लेखक भी…।

खैर वापस लौटते हैं चीन और भारत की तनातनी पर…. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुटेपिटे चीन के कम्युनिस्ट खुरपेंची नेता शी जिनपिंग के सामने फिलहाल एक ही रास्ता था/ है कि वह अपनी अंतराष्ट्रीय सीमाओं पर अपने पड़ोसियों के साथ किसी न किसी बहाने से उलझे। चीन के भीतर ही शी जिनपिंग को लेकर जनता में गहरी नाराजगी है। साऊथ चाइना को लेकर अमेरिका व जापान सहित अन्य पडोसी देशों के साथ वह पहले ही उलझा हुआ था, उस पर ताईवान और हांगकांग ने चीनी नेतृत्व के होश फाख्ता कर रखे हैं। पश्चिम के तमाम देश चीन से तेजी से दूरी बना रहे हैं और चीन से तमाम विदेशी कंपनियां अपना कारोबार समेटने के मूड में हैं। चीन को अपनी जनता और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान भटकाने के लिए कोई न कोई आधार चाहिए था और ऐसे में भारत के साथ सीमाओं पर युद्ध जैसा तनाव पैदा करने का कदम उठाया गया। इसके तमाम कारण हैं। जैसे भारत-चीन सीमाओं तक तेजी से भारत द्वारा इन्फ्रास्ट्रैक्चर खड़ा करना, जबकि बकौल चीन, सीमाएं अस्पष्ट हैं।

इधर दूसरी ओर, भारत में नरेंद्र मोदी, जो कि देश के भीतर कोविड से लड़ने के अकुशल प्रबंधन, मजदूरों के पलायन और उनकी दर्दनाक मौतों, औंधे मुंह गिरी अर्थव्यवस्था, आजादी के बाद सबसे भयावह बेरोजगारी की स्थिति पर घिरे हैं और सोशल मीडिया पर एक वर्ग सरकार का मुखर विरोध कर रहा है। आलोचक तेजी से बढ़ रहे हैं। उद्योगों की हालत बहुत बुरी हो चली है। यह भी मजाक उड़ाया जा रहा है कि विदेशों में सरकारों ने राहत पैकेज दिया हमारी सरकार ने ‘राहत लोन’…जिन किसानों को लेकर सरकार बड़े बड़े दावे करती रही उनका सच यह है कि राजस्थान के किसानों ने टमाटर, महाराष्ट्र के किसानों ने प्याज व अन्य किसानों ने सब्जियों को सड़क पर फेंक दिया क्योंकि लागत तक नहीं निकल रही थी। जनवरी के अंतिम सप्ताह में केरल में जब पहला कोविड मरीज मिला तभी विशेषज्ञों ने चेताया था कि देश के हवाई अड्डे बंद कर दिए जाएं लेकिन मार्च के अंतिम सप्ताह तक अंतरराष्ट्रीय उड़ानें जारी रहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी लेकिन “ओवर रिएक्शन” कह कर टाल दिया गया।

लोकसभा में सवाल उठाया गया लेकिन सवाल उठाने का मज़ाक बनाया गया। ट्रंप की रैली करवाई गई। मध्य प्रदेश में सरकार बनवाई गई। 500 मरीजों पर लाक डाउन हुआ, सवा लाख पर लाकडाऊन ओपेन कर दिया गया। मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। भूख और प्यास से व दुर्घटनाओं में 300 से अधिक मजदूर मारे गये। चिकित्सा व्यवस्था ध्वस्त हो गई और उसकी पोल खुल गई।…… ऐसे में चीन-भारत की सीमा पर तनाव दरअसल दोनों ही सरकारों के लिए एक “अवसर” की तरह है। उधर चीन का सरकारी नियंत्रण वाला मीडिया राष्ट्रवाद की उबालें फेंक रहा है और इधर हमारा बिका हुआ चंदवरदाई की भूमिका वाला मीडिया भी लंगोट कस कर चीन पर चढ़ाई किए हुए हैं। तीन-चार चैनल रोज सुबह से शाम तक दो सौ बृह्मोस मिसाइलें- जगुवार, मिराज, तेजस से पेइचिंग पर गिराते हैं और एंकर छज्जे पर चढ़कर चिल्लाती हैं-मिट जाओगे चीन, कट जाओगे चीन, डर गया चीन, मोदी से डरा ड्रैगन….ये भी क्या करें, मदारी डमरू बजा रहा है।

दोनों देशों को पता है कि युद्ध हुआ तो दोनों के दोनों देश तबाह हो जाएंगे। करोड़ों लोग मारे जाएंगे। दोनों की अर्थव्यवस्था रसातल में मिल जाएगी। भारत की सेनाएं भी 1962 वाली नहीं रहीं। जिस देश का अरबों डॉलर का व्यापार भारत से होता हो वह युद्ध की मूर्खता नहीं कर सकता और ऐसे समय जब पश्चिम के देश चीन के साथ अपने व्यापारिक संबंधों की समीक्षा कर रहे हों। चीन एक साथ छह मोर्चों पर नहीं लड़ सकता। चीन भारत जैसा बाजार कतई नहीं खोएगा, यह जेहन में बसा लें। रही बात अमेरिका की तो यह एक ऐसा नटवर लाल देश है जो कभी अपनी धरती पर युद्ध नहीं लड़ता है। अमेरिका को दो देशों के बीच युद्ध कराने में महारथ हासिल है। ईरान और इराक इसके जीवंत उदाहरण हैं। अमेरिका सद्दाम को ईरानी नेता अयातुल्लाह खुमैनी के खिलाफ खड़ा करता है। यही अमेरिका सद्दाम को कुर्दों की नृशंस हत्याओं के लिए नर्व गैस सप्लाई करता है और फिर दो देशों को लड़वा देता है और मतलब निकल जाने के बाद सद्दाम हुसैन को भी खत्म कर देता है।

फिलहाल भारत को अमेरिकी खेल में फ़सने से बचना चाहिए और यह दिमाग से निकाल दीजिए कि भारत व चीन में जंग होगी। यह नूरा कुश्ती है कुछ दिन चलेगी…. न भारत हारेगा न चीन हारेगा… न तुम जीते न हम जीते। फिर जनता क्या है…. जनता एक खिलौना है और मीडिया क्या है?… मीडिया एक झुनझुना है जिसे सरकार अपनी सुविधानुसार बजवाती है। इसलिए नौकरी बचाइए, जो पैसा है उसे हाथ रोककर खर्च करिए, खेती की जमीन है तो आप भाग्यशाली हैं भूखे नहीं मरेंगे…. आंख नाक कान खुले रखिए और मीडिया की “राग तेलाही” से स्वयं को बचाकर रखिए।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com