भैरव के बिना अधूरी है मां दुर्गा की पूजा, जानिए पूरी कथा

नवरात्र में अष्टमी अथवा नवमी के दिन कंजक उपासना की जाती है। इस दिन नौ कन्याओं के पूजन के साथ काल भैरव के बाल स्वरूप की भी आराधना होती है। ऐसी मान्यताओं हैं कि काल भैरव के बगैर मां दुर्गा की पूजा तथा नौ दिनों का उपवास सब अधूरा है। इसलिए नवरात्रि में जो लोग खास सिद्धियों के लिए मां दुर्गा की आराधना करते हैं, उनके लिए भगवान भैरव की वंदना करना भी जरुरी है। और यही वजह है कि मां दुर्गा के स्वरूपों के जितने भी मंदिर हैं, उसके आस-पास काल भैरव का मंदिर अवश्य होता है। मां के दर्शन के पश्चात् लोग बाबा भैरव के दर्शन को भी जाते हैं तथा उनसे अपनी बाधाएं दूर करने की कामना करते हैं।

वही गृहस्थ लोग बाबा भैरव की आराधना नहीं करते हैं तथा ना ही इन्हें घर में स्थापित करते हैं। इन्हें तंत्र का भगवान माना जाता है। हालांकि बटुक भैरव अथवा बाल भैरव की पूजा गृहस्थ लोग कर सकते हैं। 6-7 वर्ष के बाल को बाल भैरव के रूप में पूजा जा सकता है, जबकि बटुक भैरव 15-16 वर्ष के किशोर के तौर में पूजे जाते हैं।

ऐसे हुआ था भैरव का जन्म?
हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, एक बार ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश के मध्य अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ था। जिसे सुलझाने के लिए तीनों लोकों को देव ऋषि मुनि के समीप पहुंचे। ऋषि मुनि विचार-विमर्श कर बताया कि भगवान शिव ही सबसे श्रेष्ठ हैं। वही यह बात सुनकर ब्रह्मा जी खफा हो गए तथा उन्होंने भगवान शिव के सम्मान को ठेस पहुंचाना आरम्भ कर दिया। ये देखकर शिवजी रोष में आ गए। भोलेनाथ का ऐसा स्वरूप देखकर सभी देवी-देवता डर गए। कहा जाता है कि शिव के इसी रोष से ही काल भैरव का जन्म हुआ था। भैरव का स्वरूप भयानक अवश्य है, किन्तु सच्चे मन से जो भी इनकी आराधना करता है उसकी सुरक्षा का भार खुद उठाते हैं।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com