सावधान रहें, कुछ समय बाद कमजोर पड़ने लगती है एंटीबॉडी

शोधकर्ताओं का दावा है कि कोरोना संक्रमण के खिलाफ शरीर में विकसित एंटीबॉडी कुछ समय बाद कमजोर पड़ने लगती है। इस प्रकार व्यक्ति के दोबारा संक्रमित होने की आशंका भी बनी रहती है। ऐसे में जरूरी है कि कोरोना वायरस से सुरक्षा के लिए जारी गाइडलाइन का अनुपालन तत्परता से करते रहें, भले ही आपके शरीर में कभी एंटीबॉडी पाई गई हो।

3.65 लाख लोगों पर अध्ययन : लंदन स्थित इंपीरियल कॉलेज के शोधकर्ताओं ने ब्रिटेन के 3.65 लाख लोगों पर अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि कोविड-19 को मात देने वाली एंटीबॉडी कुछ महीने बाद कमजोर पड़ने लगती है। अध्ययन में शामिल वायरोलॉजिस्ट प्रो. वेंडी बार्कलेय कहते हैं कि ठंड के दिनों में मौसमी वायरस पांव पसारता है। इससे सर्दी-खांसी जैसी बीमारियां होती हैं। यह वायरस छह महीने या साल भर बाद दोबारा संक्रमित कर सकता है। कोरोना वायरस की प्रवृत्ति भी कुछ ऐसी ही लगती है।

कोई गारंटी नहीं : कॉलेज की इस परियोजना के निदेशक पॉल इलियट कहते हैं कि एक समय बाद उन लोगों की संख्या घटती गई, जिनमें जांच के दौरान एंटीबॉडी पाई गई थी। उन्होंने कहा, ‘शरीर में एंटीबॉडी पाए जाने का मतलब यह नहीं है कि आपको कोरोना संक्रमण नहीं हो सकता। जब तक कि यह स्पष्ट नहीं होता कि आपके शरीर में उपलब्ध एंटीबॉडी का स्तर क्या है और वह कितने दिनों तक प्रभावी रहेगी, आपको सतर्क रहना होगा। मास्क पहनने के साथ शारीरिक दूरी के नियम का भी पालन करना होगा।’

बुजुर्गो को खतरा ज्यादा : एंटीबॉडी पाए जाने के बावजूद युवाओं के मुकाबले बुजुर्गो को कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। खासकर 75 वर्ष से ज्यादा उम्र वाले उन लोगों को जो कोरोना संक्रमण को लेकर संदिग्ध होते हैं।

64 फीसद तक हुई कमजोर : अध्ययन में पता चला कि जो कोरोना संक्रमित नहीं थे, उनकी एंटीबॉडी 64 फीसद तक कमजोर हुई। इसके विपरीत जो कोरोना संक्रमित पाए गए थे, उनकी एंटीबॉडी में 22.3 फीसद तक गिरावट दर्ज की गई।

होती क्या है : एंटीबॉडी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का अहम हिस्सा है जो कोशिकाओं में वायरस के प्रवेश को रोकती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों में जांच के दौरान एंटीबॉडी पाई गई थी, जून व सितंबर के दौरान उनमें 26 फीसद तक की गिरावट आई।

 

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