जानिए कार्तिक पूर्णिमा पर क्यों किया जाता है गंगा स्नान

कार्तिक मास की अमावस्या की जितनी अहमियत मनाई गई है उतनी ही अहमियत कार्तिक मास की पूर्णिमा की मानी जाती है। इस बार कार्तिक मास की पूर्णिमा 30 नवंबर 2020 को पड़ रही है। इस दिन दान तथा गंगा स्नान करने का खास अहम माना गया है। हर साल में 12 पूर्णिमा आती हैं किन्तु जब अधिक मास अथवा मलमास आता है तो इनकी संख्या 13 हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, इस दिन जब चंद्रमा आकाश में उदित होता है उस वक़्त चंद्रमा की 6 कृतिकाओं की उपासना करने से शिवजी प्रसन्न होते है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से पूरे साल का स्नान करने का फल प्राप्त होता है।

गंगा स्नान से प्राप्त होता है पूरे साल का फल:
कार्तिक पूर्णिमा व्यक्तियों को देवों की उस दिवाली में सम्मिलित होने का मौका देती है, जिसके प्रकाश से प्राणी के अंदर छिपी तामसिक वृतियों का नाश होता है। इस महीने की त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा को पुराणों ने अति पुष्करिणी कहा है। स्कंद पुराण के मुताबिक, जो व्यक्ति कार्तिक मास में रोजाना स्नान करता है, वह अगर सिर्फ इन तीन तिथियों में सूर्योदय से पूर्व स्नान करे तो भी पूर्ण फल का भागी हो जाता है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा, त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने की काफी अहमियत बताई गई है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे साल गंगा स्नान करने का फल प्राप्त होता है। इस दिन गंगा समेत पवित्र नदियों तथा तीर्थों में स्नान करने से खास पुण्य की प्राप्ति होती है, पापों का खात्मा होता है।

इसी दिन हुआ था त्रिपुरासुर का अंत:
इससे जुड़ी एक कथा है कि त्रिपुरासुर नाम के दैत्य के आतंक से तीनों लोक खौफ में थे। त्रिपुरासुर ने स्वर्ग लोक पर भी अपना अधिकार जमा लिया था। त्रिपुरासुर ने प्रयाग में बहुत दिनों तक तप किया था। उसके तप से तीनों लोक जलने लगे। तब ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिए, त्रिपुरासुर ने उनसे वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव, जंतु, पक्षी, निशाचर न मार पाएं। इसी वरदान से त्रिपुरासुर अमर हो गया तथा देवताओं पर अत्याचार करने लगा। सभी देवताओं ने मिलकर ब्रह्मा जी से इस दैत्य को खत्म करने का उपाय पूछा। ब्रह्मा जी ने देवताओं को त्रिपुरासुर के वध का मार्ग बताया। देवता प्रभु शंकर के पास पहुंचे तथा उनसे त्रिपुरासुर को मारने के लिए वंदना की। तब महादेव ने त्रिपुरासुर के वध का फैसला लिया। महादेव ने तीनों लोकों में दैत्य को ढूंढ़ा। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में त्रिपुरासुर का अंत किया। उसी दिन देवताओं ने शिवलोक मतलब काशी में आकर दिवाली मनाई।

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