उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मुसीबत बनी बर्फ की सफेद चादर, झेलनी पड़ रही ये दिक्कतें

इन दिनों कोरोना के साथ सर्दी का मौसम भी चरम पर है। पहाड़ों पर चमकीली चादर नजर आने लगी है। यही वो वक्त है, जब पहाड़ का सौंदर्य निखरकर सामने आता है। जिसे करीब से निहारने को पर्यटक वर्षभर बेताब रहते हैं। पर्यटकों की लगातार बढ़ती आमद और क्रिसमस और नए वर्ष के लिए होटलों में हुई बुकिंग भी यही बता रही है, लेकिन इस तस्वीर का दूसरा पहलू भी है।

बर्फ की जो चमकीली चादर पर्यटकों को रोमांचित करती है, वह पहाड़ के लिए पीड़ा भी है। यह पीड़ा है बंद रास्तों की और पानी की। अलग राज्य बनने के 20 वर्ष बाद भी पहाड़ के सैकड़ों गांव पानी की लाइन से महरूम हैं। कहीं तो पानी के लिए रोजाना कई किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। हिमपात होने पर यह सफर और मुश्किल हो जाता है। अब सरकार के जल जीवन मिशन से जरूर कुछ उम्मीद जगी है।

जालसाजों से बचाओ सरकार 

यह दौर तकनीक का है। बेशक, विकास के लिए इसका अधिक से अधिक इस्तेमाल बेहद जरूरी है। …तो जरूरी यह भी है कि इसके इस्तेमाल को सुरक्षित बनाया जाए। चंद दिन पहले की ही बात है। प्रदेश के एक आला अधिकारी के सुपुत्र भी साइबर ठगों के लपेटे में आ गए। लाइसेंस बनवाने के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था। लाइसेंस तो बना नहीं। एक हजार से ज्यादा की चपत लग गई, सो अलग। फौरी जांच में जो सामने आया, वो हैरान करने वाला था। परिवहन विभाग की फर्जी वेबसाइट भी चल रही थी। यह आला अधिकारी के बेटे की बात थी तो जगजाहिर हो गई। वरना जाने कितने लोग इस वेबसाइट के शिकार हुए होंगे। खैर, यह तो तब सामने आएगा, जब जांच पूरी होगी, लेकिन अभी जरूरी है ऐसी घटनाओं को होने से रोकने के लिए एक तंत्र के विकास की। कहा भी गया है, उपचार से बचाव बेहतर।

संवाद ही सही रणनीति

केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का आंदोलन शुरू भले ही पंजाब और हरियाणा से हुआ हो, लेकिन इस आंदोलन की गूंज उत्तराखंड में भी बढ़ती जा रही है। यह दीगर बात है कि आंदोलन में किसान का सिर्फ नाम इस्तेमाल हो रहा है। असल में विपक्ष अन्नदाता की आड़ में सत्ता तक पहुंचने के समीकरण हल करने की जुगत भिड़ा रहा है। सत्ताधारी दल भाजपा भी यह बात बखूबी समझती है। तभी तो पार्टी ने इससे निपटने के लिए एक भारी भरकम दल मैदान में उतार दिया है। यह दल प्रदेश में जगह-जगह प्रेस वार्ता कर कृषि कानूनों के संबंध में फैलाई जा रही भ्रांतियों को दूर कर इसके उद्देश्य स्पष्ट करेगा। यह जरूरी भी है। ऐसे संवेदनशील मसलों का हल संवाद से ही संभव है। खैर, राज्य सरकार ने इसकी शुरुआत कर दी है। उम्मीद है जल्द ही इसके सकारात्मक परिणाम भी नजर आएंगे।

सरकार की स्वस्थ पहल

तराई (रुद्रपुर) की महिलाओं के हाथों से तैयार रजाइयों की पहुंच अब अंतरराष्ट्रीय बाजार तक होगी। इसके लिए अमेजन और मेगा स्टोर से अनुबंध किया गया है। सरकार की यह पहल बेशक सराहनीय है। रुद्रपुर में शासन से रजाई ग्रोथ सेंटर खोलने की मंजूरी भी मिल चुकी है। इस सेंटर में 600 महिलाओं को रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया है। इस सेंटर के निर्माण के लिए जमीन चिह्नित होने के साथ बजट भी जारी हो गया है। उम्मीद है, जल्द ही यह ग्रोथ सेंटर धरातल पर होगा। अहम बात यह है कि ये मुहिम यहीं पर रुकनी नहीं चाहिए। प्रदेश के हर जिले में वहां के विशेष उत्पाद को प्रोत्साहित करने के लिए इसी तरह के ग्रोथ सेंटर बनाए जाने चाहिए। हुनर को बाजार मिलेगा तो प्रदेश को भी अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहचान मिलेगी। कोरोनाकाल में बेरोजगार हुए हाथों को फिर से रोजगार युक्त करने का हल भी निकलेगा।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com