पीएम मोदी की हत्या की साजिश और यलगार परिषद से जुड़ाव को लेकर देश भर के कथित नक्सल समर्थकों के घरों व कार्यालयों पर छापे मारे जाने और कई कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेने से दलित नेता नाराज हैं. दलित नेता इसे राजनीतिक साजिश और सनातन संस्था के दबाव में उठाया गया कदम बता रहे हैं.
दलित नेताओं का कहना है कि यलगार परिषद का माओवादियों से कोई नाता नहीं है. भरीप बहुजन महासंघ के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार से बातचीत में कहा, ’31 दिसंबर, 2017 को यलगार परिषद का आयोजन पुणे में हुआ था. इसका उद्देश्य मराठों और पिछड़ों तथा मराठों और एससी/एसटी के बीच बढ़ती खाई को दूर करना था. आज इस संगठन का कोई अस्तित्व नहीं दिख रहा है. इसलिए यलगार परिषद की गतिविधियों को माओवादियों या भीमा कोरेगांव हिंसा से कैसे जोड़ा जा सकता है?’
उन्होंने संकेत दिया कि कोर्ट में सभी केस पर चुनौती दी जाएगी. दलित लेखक अर्जुन दांगले ने कहा, भीमा कोरेगांव को माओवादीहिंसा से जोड़ना खतरनाक है, इससे दलित समुदाय में गुस्सा और बढ़ सकता है.’
दलित नेताओें का यह भी कहना है कि कार्रवाई तो सनातन संस्था पर होनी चाहिए थी, लेकिन कार्रवाई दलितों के खिलाफ की जा रही है. उनका कहना है कि कोर्ट के आदेश और कर्नाटक से मिले सुराग की वजह से सनातन संस्था के खिलाफ कार्रवाई अपरिहार्य है.
दूसरी तरफ, दलित इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (डिक्की) के अध्यक्ष मिलिंद काम्बले ने कहा, ‘कानून को अपना काम करने दीजिए, यदि किसी ने गलत नहीं किया है तो उसे डरने की जरूरत नहीं है.
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