कांग्रेस कर्नाटक में बीजेपी को रोकने के लिए अपने से आधी सीट पाने वाली जेडीएस को समर्थन देने और इसके नेता कुमारस्वामी को सीएम बनाने को तैयार हो गई है. हालांकि, यह निर्णय आसान नहीं था, इसके लिए दो महिलाओं की भूमिका काफी अहम रही.
मंगलवार रुझान आने के बाद से ही कांग्रेस के दिग्गजों के यहां चहल-पहल काफी बढ़ गई. डीएनए अखबार के अनुसार, कहानी में नया मोड़ आया सोनिया गांधी के आधिकारिक आवास 10 जनपथ पर हुई एक मीटिंग में. रुझान आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा तत्काल सोनिया गांधी के आवास पहुंचे.
कुमारस्वामी को CM पद ऑफर करने का किसने दिया सुझाव
अखबार ने सूत्रों के हवाले से बताया कि यह सुझाव प्रियंका गांधी का था कि राहुल गांधी जेडीएस नेता कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री पद ऑफर करें. यह प्रस्ताव पेश करना आसान नहीं था, क्योंकि जेडीएस के पास कांग्रेस के मुकाबले आधी सीटें ही हैं. इस मीटिंग में मौजूद नेताओं के मन में इस बात को लेकर उहापोह थी कि राहुल गांधी अगर गठबंधन के लिए फोन करेंगे तो एचडी देवगौड़ा किस तरह का जवाब देंगे.
असल में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने बार-बार जेडीएस के साथ किसी गठजोड़ से इनकार किया था और कई बार अपने भाषणों में उन्होंने जेडीएस को बीजेपी की बी टीम भी बताया था.
सोनिया गांधी ने सबसे पहले गुलाम नबी आजाद से बात की, जिन्होंने देवगौड़ा और कुमारस्वामी को अपने संवाद सूत्र भेजे. गुलाम नबी आजाद की तरफ से सकारात्मक संदेश मिलने के बाद सोनिया गांधी ने खुद देवगौड़ा और कुमारस्वामी से बात की. सोनिया ने यह एहतियात बरता कि राहुल गांधी की बजाय खुद जेडीएस नेताओं से बात की, क्योंकि देवगौड़ा एक वरिष्ठ नेता हैं और शायद राहुल गांधी की बातचीत से वह असर नहीं होता.
कांग्रेस ने पहले यह कहा था कि यदि कर्नाटक में 100 से ज्यादा सीटें आईं तो वह अपने दम पर सरकार बनाएगी और यदि सीटें इससे कम आईं तो दूसरे विकल्पों पर विचार किया जा सकता है. इस तरह सोनिया गांधी के फोन के बाद गेंद देवगौड़ा के पाले में चली गई. इसके बाद बेंगलुरु में, जहां तेजी से घटनाक्रम बदल रहा था, कांग्रेस ने यह घोषणा कर दी कि वह जेडीएस के साथ सरकार बनाने और कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार है.
सोनिया फिर होंगी सक्रिय
कर्नाटक में जेडीएस को मनाने के लिए जिस तरह से सोनिया गांधी ने खुद फोन किया, उससे जानकार यह भी आकलन कर रहे हैं कि आगे सोनिया गांधी को फिर सक्रिय होना पड़ेगा. उसकी वजह यही है कि राहुल गांधी का कद अभी इस तरह का नहीं हो पाया है कि वह विपक्ष के कद्दावर नेताओं से बात कर सकें और विपक्ष के नेता भी उन्हें अभी अपने बराबर मानने को तैयार नहीं हैं. सोनिया शायद अब यह संकेत देने को भी तैयार हैं कि बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस जूनियर पार्टनर बनने को तैयार है.