लाइफस्टाइल – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Fri, 14 Nov 2025 04:27:07 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 सर्दी के मौसम में बना रहे हैं अचार तो न करें ये गलतियां http://www.shauryatimes.com/news/214199 Fri, 14 Nov 2025 04:27:07 +0000 https://www.shauryatimes.com/?p=214199

सर्दी के मौसम में लोगों को अचार खाना बहुत पसंद होता है फिर चाहे वो गाजर का हो या फिर गोभी का अचार. यह अचार आपको हर भारतीय घर में मिला जाएगा. इसे परांठे, दाल चावल और सब्जियों के साथ खाया जाता है. इसे बनाने के लिए कई अलग-अलग तरहों से मसालों का उपयोग किया जाता है. जो इसे स्वादिष्ट के साथ ही हेल्दी बनाने का भी काम करते हैं. हर घर में सर्दियों के मौसम में अचार बनाना एक सामान्य बात है. लेकिन एक मसाले का इस्तेमाल करने के बाद भी हर घर में अचार का स्वाद अलग होता है. सर्दी के मौसम में मेहनत से बनाया गया अचार कई बार कुछ ही दिनों में खराब होने लगता है या फिर उसका स्वाद नहीं आता है इसके पीछे अचार बनाने समय की गई कुछ गलतियां हो सकती हैं. आइए जानते हैं इस सर्दियों में अचार बनाते समय कौन सी गलतियों को करने से बचना चाहिए.

अचार बनाते समय न करें ये गलतियां

नमी के कारण 

अगर आप अचार बना रहे तो ध्यान रखें कि अचार डालने से पहले सब्जी को पूरी तरह से सुखा लें. क्योंकि जब सब्जियां पूरी तरह से नहीं सुखती हैं तो उनमें मौजूद पानी अचार में फफूंदी लगने के कारण बनता है. इसके अलावा गीले या नमी वाले चम्मचम का इस्तेमाल न करें, अचार के बर्तन को ठीक से बंद करें और तेल की कमी के कारण भी आचार में नमी आ सकती है.

मसालों को कच्चा डालना 

अचार खराब होने का सबसे बड़ा कारण है कच्चे मसाले. कच्चे मसाले अचार में डालने से उनमें नमी और कच्चापन रहता है जिसकी वजह से अचार खराब हो जाता है. अचार के मसाले जैसे की मेथी, राई, सौंफ, हल्दी, लाल मिर्च, अजवाइन आदि को पहले हल्का सा भून लें ताकि उनमें से नमी खत्म हो जाए. इसके बाद दरदरा पीस लें. ध्यान रहे कि भूनते समय मसाले जलने नहीं चाहिए. 

धूप में रखें 

इसके अलावा अगर आप अचार बना रहे हैं तो इसे धूप में रख दें जिससे यह सही तरह से बनाया जाए. इससे मसालों का स्वाद अच्छे से समा जाता है और फफूंदी लगने की संभावना भी कम होती है. शुरुआत में अचार को 4 से 5 दिनों तक रोजाना 3 से 4 घंटे धूप में रखें. फिर जार को हल्का-सा हिलाते रहें ताकि मसाले और तेल सही से मिक्स हो जाएं.

बर्तन की साफ-सफाई 

अचार को सही बनाए रखने के लिए बर्तन साफ और सूखा होना बेहद जरूरी है. अक्सर लोग थोड़ी सी नमी वाले बर्तन में अचार डाल देते हैं लेकिन इसके कारण उसमें फफूंदी लग जाता है. कांच या सिरेमिक के जार यानी की बरणी अचार को स्टोर करने और बनाने के लिए अच्छा ऑप्शन माना जाता है. प्लास्टिक के डिब्बों में अचार डालने से बचें क्योंकि उनमें स्मेल आने या बैक्टीरिया जल्दी पनपने की संभाव रहती है.

तेल को सही से गर्म न करना 

अगर अचार बनाते समय तेल को ठीक से गर्म न किया जाए तो अचार में बैक्टीरिया और फफूंदी पनपने की संभावना बढ़ जाती है. सरसों का तेल का धुआं छोड़ने तक गर्म करें. फिर उसे पूरी तरह ठंडा होने के बाद अचार में डालें. अगर अचार पूरी तरह तेल में ढका रहेगा तो सालों तक खराब नहीं होगा. 

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1 या 2 नवंबर कब है देवउठनी एकादशी? http://www.shauryatimes.com/news/212347 Thu, 30 Oct 2025 05:59:02 +0000 https://www.shauryatimes.com/?p=212347

 हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी सबसे महत्वपूर्ण तिथि है जिसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागते हैं और पूरी दुनिया का कार्यभार संभालते हैं. इसके अलावा एक बार फिर घरों में भी शुभ-मांगलिक कार्यों की शहनाइयां गूंजने लगती हैं. शास्त्रों में देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का भी विशेष महत्व माना जाता है. कहते हैं कि देवोत्थान पर तुलसी विवाह कराने पर साधक को कन्यादान के समान फल प्राप्त होता है. वहीं इस दिन व्रत रखने से मनचाहा फल भी प्राप्त होता है. लेकिन इस साल देवउठनी एकादशी को लेकर लोगों के मन में कंफ्यूजन बना हुआ है. ऐसे में चलिए हम आपको इस आर्टिकल में देवउठनी एकादशी की तिथि के बारे में बताते हैं.

कब मनाई जाएगी देवउठनी एकादशी?

हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 1 नवंबर को सुबह 09 बजकर 11 मिनट पर प्रारंभ होगी. तिथि का समापन अगले दिन यानी 2 नवंबर को सुबह 07 बजकर 31 मिनट पर है. तिथि के मुताबिक 1 नवंबर 2025 को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी.

देवउठनी एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, 1 नवंबर 2025 को देवउठनी एकादशी पर शाम 07 बजकर पूजा की शुभ मुहूर्त बन रहा है. इसके अलावा इस समय सभी देवी-देवता शयन मुद्रा से जागेंगे. इस दिन शतिभषा नक्षत्र भी बना हुआ है जो शाम 06 बजकर 20 मिनट तक रहेगा. इस दौरान ध्रुव योग भी बना रहेगा.

देवउठनी एकादशी पूजा विधि

देवउठनी एकादशी के दिन सुबह उठकर सन्ना करें और पूजा से पहले घर में गंगाजल का छिड़काव करें.

फिर पीले रंग के वस्त्र धारण करें और अब पूजन के लिए भगवान विष्णु के चरणों की मूर्ति बनाएं.

यह आकृति गेरु से बनाएं और उसके पास मौसमी फल, मिठाई और बेर-सिंघाड़े रखें.

फिर आप कुछ गन्नों को प्रभु की आकृति के पास रखें और छन्नी या डलिया से उसे ढक दें.

देवउठनी एकादशी का धार्मिक महत्व

धार्मिक महत्व के अनुसार देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु का विधिवत पूजन और व्रत रखने का विधान है. साथ ही मां लक्ष्मी और तुसली के पौधे की पूजा करने से भी विशेष पुण्य प्राप्त होता है. भगवान विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय है इसलिए तुलसी के बिना वे किसी भी भोग को स्वीकार नहीं करते. मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी के पौधे से संबंधित कुछ विशेष उपाय करने पर घर में सुख-शांति का वास होता है. 

 

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छठ पर्व पर महिलाएं आखिर क्यों नाक से लेकर मांग तक भरती है सिंदूर http://www.shauryatimes.com/news/211937 Mon, 27 Oct 2025 06:44:01 +0000 https://www.shauryatimes.com/?p=211937

 छठ  पूजा सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित चार दिनों का आध्यात्मिक त्योहार है. इस दौरान भक्त सूर्य की उपासना करते हैं जिसमें डूबते और उगसे सूरज को अर्घ्य दिया जाता है. यह त्योहार कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. जो सुख-समृद्धि और संतान की दीर्घायु के लिए मनाया जाता है.

छठ महापर्व दुनिया का एक मात्र ऐसा त्योहार है जिसमे डूबते सूर्य की भी पूजा की जाती है. छठ पर्व में आपने देखा होगा कि सुहागिन महिलाएं नाक तक सिंदूर लगाती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सुहागिन महिलाएं नाक तक सिंदूर क्यों लगाती है? तो चलिए जानते हैं छठ पर्व पर नाक से लेकर मांग तक सिंदूर लगाने के पीछे का धार्मिक महत्व के बारे में.

क्यों नाक से मांग तक लगाया जाता है सिंदूर?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महिलाओं का नाक से मांग तक सिंदूर लगाने के पीछे एक कारण है यह है कि सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए मांग से लेकर नाक तक सिंदूर लगाती है.  मान्यता है कि जो भी महिलाएं ऐसा करती है उनकी पति का आयु लंबी होती है और वो ज्यादा दिन तक जीवित रहते हैं. सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है और छठ पूजा में इसे मांग से नाक तक भरने से सुहाग की रक्षा होती है और संतान में वृद्धि होती है.

छठ पूजा में नाक से मांग तक सिंदूर लगाना सुहाग की रक्षा और पति की लंबी आयु के साथ-साथ परिवार में सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. यह मान्यता है कि जितना लंबा सिंदूर होगा पति की उम्र उतनी ही लंबी होगी और घर-परिवार में खुशहाली बनी रहेगी. यह सुहाग और सम्मान का भी प्रतीक माना जाता है.

हिंदू धर्म में सिंदूर की मान्यता

हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए मांग में सिंदूर भरना सुहागन की निशानी है.  कहते हैं कि सुहागिने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और खुशहाल जीवन  की कामना से मांग में सिंदूर भरती है. यह भी मान्यता है कि मांग में सिंदूर जितना लंबा होगा पति की उम्र भी उसी तरह लंबी होगी.

छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा का खास महत्व है. संतान और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य भगवान की पूजा की जाती है. महिलाएं निर्जला व्रत रखती है और सिंदूर लगाकर अपने पति के प्रति प्रेम और सम्मान भी जाहिर करती हैं.

 

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सूर्य को अर्घ्य देने का ये है शुभ मुहूर्त http://www.shauryatimes.com/news/211934 Mon, 27 Oct 2025 06:42:02 +0000 https://www.shauryatimes.com/?p=211934

 देश भर में छठ महापर्व की धूम है. आज माता छठी और सूर्य देव की अराधना की जाती है. संयम, भक्ति, पवित्रता और शुद्घता ही इस त्योहार का प्रमुख अंग है. क्या आपको पता है कि पूजा करने का शुभ मुहूर्त क्या है. आज किन मंत्रों का जाप करना लाभदायी होता है. अगर नहीं तो ये खबर आफके लिए हैं, आइये जानते हैं….

छठ पूजा का आज तीसरा दिन है. आज ही व्रती महिलाएं डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं. सूर्य देव और छठी मइया के मंत्रों का जप करना आज के दिन शुभ फल देता है. छठ पूजा के अंतिम दिन और चौथे दिन यानी कल उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है. व्रती महिलाएं इसके बाद प्रसाद ग्रहण करती हैं और व्रत का पारण करती हैं. व्रती महिलाओं के पारण के बाद इस प्रसाद को आस-पड़ोस के लोगों में बांट दिया जाता है.

सूर्य अर्घ्य का शुभ मुहूर्त

27 अक्टूबर को अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने का समय- शाम 4.50 बजे से 5.41 बजे तक

28 अक्टूबर को उदय होते सूर्य को अर्घ्य देने का समय- सुबह 6.29 बजे सूर्योदय होगा, नौ बजे तक सूर्य को अर्घ्य दिया जा सकता है.

नहाय-खाय के दिन क्या करें

बता दें, छठ पूजा चार दिनों की पूजा-पाठ और व्रत का त्योहार है. छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खास से होती है, जो 25 अक्टूबर को मनाई गई थी. पूरे घर को इस दिन साफ किया जाता है. व्रती पवित्र नदियों में स्नान करते हैं. मिट्टी के चूल्हे में इस दिन भोजन बनाया जाता है. कद्दू की सब्जी, चने की दाल प्रसाद के रूप में खाई जाती है.

खरना के दिन क्या करें

छठ पूजा का दूसरा दिन बहुत ही खास माना जाता है. इसे खरना के रूप में जाना जाता है. व्रती इस दिन आत्मिक और शारीरिक रूप से खुद को शुद्ध करते हैं. पूरे दिन व्रत रखकर शाम के वक्त छठी माता और सूर्य देव की पूजा की जाती है. प्रसाद के रूप में इस दिन गुड़ या फिर दूध की खीर बनाई जाती है. व्रती रोटी, पूड़ी और केला भी प्रसाद के रूप में खा सकती हैं. प्रसाद के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ हो जाता है, जो चौथे दिन सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होता है.

सूर्य अर्घ्य का शुभ मुहूर्त

27 अक्टूबर को अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने का समय- शाम 4.50 बजे से 5.41 बजे तक

28 अक्टूबर को उदय होते सूर्य को अर्घ्य देने का समय- सुबह 6.29 बजे सूर्योदय होगा, नौ बजे तक सूर्य को अर्घ्य दिया जा सकता है.

 

इन मंत्रों का करें ध्यान

आज छठ पूजा का तीसरा दिन है. आज के दिन ही डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. आज के दिन सूर्य देव और छठी मइया के मंत्रों का जप करना शुभ होता है. छठ पूजा के अंतिम दिन यानी कल उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करती हैं और व्रत का पारण करते हैं. इस प्रसाद को इसके बाद हर किसी में बांटा जाता है.

 

 

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छठ मईया का सबसे प्रिय फल है गन्ना, इस महाप्रसाद के फायदे जानकर आप नहीं करेंगे यकीन http://www.shauryatimes.com/news/211647 Sat, 25 Oct 2025 05:42:44 +0000 https://www.shauryatimes.com/?p=211647

छठ महापर्व की शुरुआत आज यानी  25 अक्तूबर, शनिवार से हो गई है. यह भारत के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक है. दिवाली के तुरंत बाद लोग छठ की तैयारियों में जुट जाते हैं. यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से खास है बल्कि वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. छठ में सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और छठी मैया की पूजा की जाती है. इस दौरान पूजा में जो सबसे अहम भूमिका निभाता है, वह है गन्ना (Sugarcane). कहा जाता है कि गन्ना छठ मैया का प्रिय फल है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गन्ना खाने सेहत के लिए भी किसी वरदान से कम नहीं है. चलिए आपको इसके फायदें बारे में बताते हैं.

गन्ना क्यों है खास?

गन्ना ऊर्जा, शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. आयुर्वेद में भी इसे औषधीय गुणों से भरपूर बताया गया है. वैज्ञानिक के नजरिए से देखें तो गन्ना शरीर को ऊर्जा देने, लिवर को साफ रखने और पाचन को दुरुस्त करने का काम करता है.

शरीर को देता है तुरंत एनर्जी

गन्ने में नेचुरल शुगर होती है, जो शरीर को तुरंत ग्लूकोज प्रदान करती है. इसे खाने या इसका रस पीने से शरीर को इंस्टेंट एनर्जी मिलती है. गर्मी के मौसम में यह शरीर को हाइड्रेट रखता है, क्योंकि इसमें पानी की मात्रा काफी अधिक होती है. इसलिए गन्ना थकान और कमजोरी को दूर करने में बेहद फायदेमंद माना जाता है.

लिवर के लिए वरदान

गन्ना लिवर को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक है. इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स लिवर की कोशिकाओं को नुकसान से बचाते हैं और शरीर से टॉक्सिन्स निकालने में मदद करते हैं. यह पीलिया (Jaundice) जैसी बीमारियों से बचाव करता है. आयुर्वेद में गन्ने को नेचुरल लिवर क्लेंज़र कहा गया है.

पाचन को रखे मजबूत

गन्ने में फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जिससे पाचन तंत्र दुरुस्त रहता है. यह कब्ज, गैस और एसिडिटी जैसी समस्याओं से राहत दिलाता है. गन्ने को चबाने के दौरान निकलने वाली लार पेट के एसिड को बैलेंस में रखने में मदद करती है, जिससे पाचन प्रक्रिया बेहतर होती है.

यूरिन संबंधी समस्याओं में राहत

गन्ना मूत्र संबंधी परेशानियों में भी फायदेमंद है. यदि किसी को जलन या बार-बार पेशाब आने की समस्या है, तो गन्ने का सेवन राहत दिला सकता है. यह शरीर में लिक्विड बैलेंस बनाए रखता है और इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है, जिससे सर्दी-जुकाम जैसी समस्याएं भी कम होती हैं.

 

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कार्तिक पूर्णिमा कब है? जानें सही डेट, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त http://www.shauryatimes.com/news/211640 Sat, 25 Oct 2025 05:40:34 +0000 https://www.shauryatimes.com/?p=211640

 हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि का खास महत्व है। हर महीने में एक पूर्णिमा आती है और हर पूर्णिमा का अपना महत्व होता है। इनमें से कार्तिक मास की पूर्णिमा सबसे खास मानी जाती है। इस दिन देव दीपावली मनाई जाती है और घर में लक्ष्मी-नारायण और शिव जी की पूजा का विधान होता है। इस साल कार्तिक पूर्णिमा 5 नवंबर को है। इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता पृथ्वी पर आते हैं, दीपदान और गंगा स्नान करते हैं। इसी वजह से इसे देव दीपावली कहा जाता है। वहीं, सिख धर्म के लोग इसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा 2025: स्नान और पूजा मुहूर्त

तिथि की शुरुआत: 04 नवंबर 2025, रात 10:36 बजे

तिथि का अंत: 05 नवंबर 2025, शाम 6:48 बजे

गंगा स्नान मुहूर्त: सुबह 4:52 से 5:44 बजे तक

पूजा मुहूर्त: सुबह 7:58 से 9:20 बजे तक

देव दीपावली (प्रदोषकाल) मुहूर्त: शाम 5:15 से रात 7:05 बजे तक

चंद्रोदय: शाम 5:11 बजे

कार्तिक पूर्णिमा व्रत पूजा विधि-

सूर्योदय से पहले गंगा स्नान करें।

घर में गंगाजल का छिड़काव करें।

इसके बाद फलाहार व्रत का संकल्प लें। इस व्रत में अनाज, मसाले, तंबाकू, चाय-कॉफी या तामसिक भोजन वर्जित हैं।

व्रत संकल्प के बाद गणेश जी की पूजा करें।

इस दिन शिव-पार्वती की भी विधि-विधान से पूजा करें।

भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को पूजा सामग्री अर्पित करें।

सत्यनारायण कथा का पाठ करें।

ब्राह्मण को दान दें– अन्न, वस्त्र, घी, तिल, चावल आदि।

दीपदान किसी तालाब या जलाशय में अवश्य करें।

इसके बाद व्रत का पारण करें।

मां लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने का आसान उपाय

उपाय- पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी की पूजा करते समय उन्हें लाल फूल अर्पित करें। साथ ही कनकधारा स्त्रोत का पाठ करें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और आपको सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इसके अलावा, 11 कौड़ियों पर हल्दी पिसकर लगाएं और इन्हें पूजा में अर्पित करें। घी का दीपक जलाकर लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। पूजा के बाद इन कौड़ियों को धन वाले स्थान या तिजोरी में रख दें।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य है और सटीक है। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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छठ पर्व पर महिलाएं आखिर क्यों नाक से लेकर मांग तक भरती है सिंदूर http://www.shauryatimes.com/news/211453 Fri, 24 Oct 2025 05:38:06 +0000 https://www.shauryatimes.com/?p=211453 छठ  पूजा सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित चार दिनों का आध्यात्मिक त्योहार है. इस दौरान भक्त सूर्य की उपासना करते हैं जिसमें डूबते और उगसे सूरज को अर्घ्य दिया जाता है. यह त्योहार कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. जो सुख-समृद्धि और संतान की दीर्घायु के लिए मनाया जाता है.

छठ महापर्व दुनिया का एक मात्र ऐसा त्योहार है जिसमे डूबते सूर्य की भी पूजा की जाती है. छठ पर्व में आपने देखा होगा कि सुहागिन महिलाएं नाक तक सिंदूर लगाती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सुहागिन महिलाएं नाक तक सिंदूर क्यों लगाती है? तो चलिए जानते हैं छठ पर्व पर नाक से लेकर मांग तक सिंदूर लगाने के पीछे का धार्मिक महत्व के बारे में.

क्यों नाक से मांग तक लगाया जाता है सिंदूर?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महिलाओं का नाक से मांग तक सिंदूर लगाने के पीछे एक कारण है यह है कि सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए मांग से लेकर नाक तक सिंदूर लगाती है.  मान्यता है कि जो भी महिलाएं ऐसा करती है उनकी पति का आयु लंबी होती है और वो ज्यादा दिन तक जीवित रहते हैं. सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है और छठ पूजा में इसे मांग से नाक तक भरने से सुहाग की रक्षा होती है और संतान में वृद्धि होती है.

छठ पूजा में नाक से मांग तक सिंदूर लगाना सुहाग की रक्षा और पति की लंबी आयु के साथ-साथ परिवार में सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. यह मान्यता है कि जितना लंबा सिंदूर होगा पति की उम्र उतनी ही लंबी होगी और घर-परिवार में खुशहाली बनी रहेगी. यह सुहाग और सम्मान का भी प्रतीक माना जाता है.

हिंदू धर्म में सिंदूर की मान्यता

हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए मांग में सिंदूर भरना सुहागन की निशानी है.  कहते हैं कि सुहागिने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और खुशहाल जीवन  की कामना से मांग में सिंदूर भरती है. यह भी मान्यता है कि मांग में सिंदूर जितना लंबा होगा पति की उम्र भी उसी तरह लंबी होगी.

छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा का खास महत्व है. संतान और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य भगवान की पूजा की जाती है. महिलाएं निर्जला व्रत रखती है और सिंदूर लगाकर अपने पति के प्रति प्रेम और सम्मान भी जाहिर करती हैं.

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गोवर्धन पूजा के बाद गोबर का क्या करें? http://www.shauryatimes.com/news/211129 Wed, 22 Oct 2025 05:32:13 +0000 https://www.shauryatimes.com/?p=211129

दीपावली के पांच दिवसीय त्योहारों में से एक महत्वपूर्ण पर्व है गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट उत्सव के नाम से भी जाना जाता है. यह त्योहार दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र देव के अहंकार को दूर किया था. इस साल गोवर्धन पूजा 22 अक्टूबर 2025, बुधवार को मनाई जाएगी.

गोवर्धन पूजा का महत्व

इस दिन लोग घर-घर में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर उसकी पूजा करते हैं. पूजा में श्रीकृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गायों की आराधना की जाती है. साथ ही, भगवान को छप्पन भोग यानी 56 प्रकार के व्यंजन जैसे दाल, चावल, मिठाई, सब्जी, फल आदि अर्पित किए जाते हैं. यह भगवान के प्रति कृतज्ञता और प्रेम का प्रतीक है.

गोबर का धार्मिक और पर्यावरणीय महत्व

हिंदू धर्म में गोबर को पवित्र माना गया है. मान्यता है कि इसमें देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का वास होता है. गोबर से बना गोवर्धन पर्वत धरती माता और भगवान कृष्ण का प्रतीक माना जाता है, जो हमें प्रकृति और पशुधन की रक्षा का संदेश देता है.

पूजा के बाद गोबर का क्या करें?

गोवर्धन पूजा के बाद गोबर को फेंकना नहीं चाहिए, बल्कि उसे पवित्र और उपयोगी रूप में इस्तेमाल करना चाहिए.

घर के आंगन को लीपें

पूजा के बाद गोबर के कुछ हिस्से से घर या आंगन को लीपने की परंपरा है. ऐसा करने से घर में माता लक्ष्मी का वास बना रहता है और शुद्धता बनी रहती है.

कंडे बनाएं

महिलाएं बचे हुए गोबर से कंडे तैयार कर सकती हैं, जिन्हें सर्दियों में खाना बनाने या ताप के लिए जलाने में उपयोग किया जा सकता है. इससे वातावरण भी शुद्ध होता है.

खाद के रूप में इस्तेमाल करें

पूजा के बाद गोबर को खेतों में डालना कृषि के लिए लाभदायक होता है. यह प्राकृतिक खाद का काम करता है, जिससे फसल की पैदावार बढ़ती है और मिट्टी की उर्वरक क्षमता बनी रहती है.

गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति संरक्षण और पर्यावरण संतुलन का प्रतीक भी है. गोबर के पुनः उपयोग से हम न केवल परंपराओं का पालन करते हैं, बल्कि सतत जीवनशैली की दिशा में भी कदम बढ़ाते हैं.

 

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गोवर्धन पूजा आज या कल, नोट कर लें सही तारीख http://www.shauryatimes.com/news/211126 Wed, 22 Oct 2025 05:29:45 +0000 https://www.shauryatimes.com/?p=211126

पांच दिवसीय दीपावली त्योहार के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा यानि दीपावली का अगला दिन अन्नकूट का पर्व श्रीकृष्ण द्वारा प्रकृति की पूजा के संदेश है. इसका आरंभ भगवान श्री कृष्ण द्वारा किया गया था. इस दिन समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा होती है. यह त्योहार विशेष रूप से मथुरा, वृंदावन, गुजरात और राजस्थान में धूमधाम से मनाई जाता है. ये त्योहार दिवाली के अगले दिन पड़ता है  लेकिन कभी-कभी तिथि में बदलाव होने के कारण इस त्योहार की डेट एक दिन आगे बढ़ जाती है. ऐसे में चलिए  हम आपको बताते हैं इस साल गोवर्धन पूजा कब है इसके अलावा  पूजा विधि और पौराणिक कथा के बारे में.

गोवर्धन पूजा 2025 तिथि

इस  साल गोवर्धन पूजा 22 अक्तूबर 2025 को है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की  प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ 21 अक्टूबर शाम 05 बजे से 54 मिनट तक होगा और  प्रतिपदा तिथि का समापन 22 अक्टूबर शाम 08 बजे से लेकर 16 मिनट तक हो जाएगा.

गोवर्धन पूजा का पूजन मुहूर्त

द्रिक पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा का पहला मुहूर्त 22 अक्टूबर 2025 को सुबह 06 बजकर 26 मिनट से   लेकर सुबह 08 बजकर 42 मिनट तक रहेगा. दूसरा मुहूर्त दोपहर 03 बजकर 29 मिनट से शुरू होकर शाम 05 बजकर 44 मिनट तक रहेगा. इस दिन शाम की पूजा का मुहूर्त दोपहर 03 बजकर 29 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 44 मिनट तक रहेगा.

गोवर्धन पूजा पूजा विधि

गोवर्धन पूजा सुबह उठकर सबसे पहले आंगन की साफ-सफाई करें. फिर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत जैसा छोटा सा  पर्वत बनाएं. इसके आस-पास बछड़े और ग्वालिन की मूर्तियां रखकर दीपक, फूल, जल और अन्न अर्पित करें. पूजा के बाद गोवर्धन पूजा की परिक्रमा करें. गाय और बछड़ों की भी इस दिन पूजा होती है. उन्हें गुड़ खिलाएं और चारा भी जरूर दें. इससे घर में सुख-समृद्धि आती है. साथ ही सारे कष्ट दूर होते हैं.

गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा

मान्यता है कि इस दिन देवराज इंद्र को अपनी शक्तियों पर घमंड हो गया था और भगवान श्री कृष्ण इंद्र के अहंकार को चूर करने के लिए लीला रची थी. इस कथा के अनुसार एक समय गोकुल में लोग किसी उत्सव की तैयारी में जुटे हुए थे. कृष्ण से सवाल पर मां यशोदा ने कहा कि हम देवराज इंद्र की पूजा कर रहे हैं. माता यशोदा के जवाब पर कृष्ण ने फिर पूजा कि हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं. तब यशोदा मां ने कहा कि हम इंद्र देव की कृपा से अच्छी बारिश होती है और अन्न की पैदावार होती है. माता यशोदा की बात सुनकर कृष्ण ने कहा कि अगर ऐसा है तो हमें गोवर्धन पर्वत की भी पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाय वहीं चरती है. श्री कृष्ण की बात मानकर सभी ने गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी.

यह सब देखकर इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने मूसलाधार बारिश शुरू कर दी. बारिश देखकर सभी गोकुल वासी घबरा गए. इस दौरान कृष्ण भगवान ने अपनी लीला दिखाई और गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी सी उंगली पर उठा लिया और सभी वासियों को पर्वत के नीचे बुला लिया. यह देखकर इंद्र देव और गुस्सा हो गए और उन्होंने बारिश और तेज कर दी लेकिन लगातार मूसलाधार बारिश के बाद भी गोकुल वासियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा.

 

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धनतेरस के दिन कर लें ये खास उपाय, अकाल मृत्यु के भय से मिलेगी मुक्ति http://www.shauryatimes.com/news/210613 Wed, 15 Oct 2025 04:29:43 +0000 https://www.shauryatimes.com/?p=210613

 सनातन धर्म में दिवाली से ठीक पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्‍ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व मनाया जाता है. इस दिन सुख-समृद्धि के लिए मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है. धनतेरस के अवसर पर सोना, चांदी खरीदना बेहद शुभ माना जाता है.

इसके अलावा ये भी मान्यता है कि ये खास दिन शत्रुओं और अकाल मृत्यु से मुक्ति पाने का भी दिन होता है. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन कुछ खास उपाय करने से अकाल मृत्‍यु का नाश हो जाता है. आइए आपको विस्तार से बताते हैं कि इस दिन क्या उपाय करें.

कब मनाया जाएगा धनतेरस (Dhanteras 2025)

इस  साल धनतेरस 18 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा. इस दिन खरीदारी के साथ ही यम का दीपक जलाया जाता है. इसे यमराज की पूजा का विशेष दिन माना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यम का दीपक जलाने से भय और अकाल मृत्यु का डर दूर हो जाता है. आइए विस्तार से जानते हैं इसके शक्तिशाली उपाय के बारे में.

धनतेरस के दिन होती है यमराज की पूजा

शास्त्रों के अनुसार, एकमात्र धनतेरस के ही दिन मृत्यु के देवता यम देव की पूजा दीप दान करके की जाती है. स्कंद पुराण में भी इसका जिक्र किया गया है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के प्रदोष काल में घर के बाहर यमराज के निमित्त दीप करने से अकाल मृत्यु का खतरा दूर होता है. हालांकि, छोटी दीपावली के दिन भी दीपदान किया जाता है.

धनतेरस पर करें ये खास उपाय (Dhanteras ke Upay)

शास्त्रों के अनुसार, धनतेरस के दिन गोबर का दीया बनाकर उसमें सरसों तेल डाल लें. इसके बाद उसे घर में ही जलाकर बाहर कहीं दूर किसी कूड़े के ढेर या नाली के पास दक्षिण (South Direction) की दिशा में मुख करके रख दें. इसके बाद जल चढ़ाएं. ध्यान रहे कि ये उपाय सूर्यास्‍त के बाद ही करना चाहिए.

जब परिवार के सभी सदस्य घर आ जाएं तब इसे करना बेहतर होता है. ऐसा करने से परिवारजनों के ऊपर से अल्प मृत्यु का खतरा दूर होता है तथा प्रेत बाधा का भी नाश होता है. यह भी माना जाता है कि इस दिन दीपदान करने से शत्रुओं से भी मुक्ती मिलती है.

धनतेरस कथा सुनना

  • मान्यता है कि धनतेरस के दिम यमराज और राजा हेमा के पुत्र की कथा सुनने से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है.
  • शाम की पूजा के बाद परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ बैठकर इस यम कथा को पढ़ना या सुनना चाहिए.
  • ऐसा माना जाता है कि जो लोग धनतेरस पर दीपदान करते हैं और कहानी सुनते हैं उन्हें यमराज के प्रकोप और अकाल मृत्यु से सुरक्षा मिलती है.

 

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