इतिहास के पन्नों में दर्ज है जवाहर लाल नेहरू के बचपन की कहानियां – Shaurya Times | शौर्य टाइम्स http://www.shauryatimes.com Latest Hindi News Portal Thu, 14 Nov 2019 06:39:34 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 इतिहास के पन्नों में दर्ज है जवाहर लाल नेहरू के बचपन की कहानियां http://www.shauryatimes.com/news/64459 Thu, 14 Nov 2019 06:39:34 +0000 http://www.shauryatimes.com/?p=64459  बच्चों से बेहद प्यार करने वाले नेता के रूप में सिर्फ एक ही नाम सबसे पहले लिया जाता है। उनको चाचा नेहरू के नाम से सभी जानते हैं। चूंकि उनको बच्चों से बहुत अधिक प्यार था इसलिए उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका बचपन भी कम खास नहीं था। आज भी उनके बचपन की ऐसी दर्जनों कहानियां इतिहास के पन्नों में दबी हुई हैं जिसे जानकर लोग चौंक पड़ते हैं। आज उनके जन्मदिवस के मौके पर हम आपको उनसे जुड़ी हुई कुछ ऐसी ही कहानियां बताते हैं।

जवाहर लाल नेहरू के बचपन के कुछ दिलचस्प किस्से 

जवाहर लाल नेहरू छोटे थे तो उनके पिता मोतीलाल नेहरू को गिफ्ट में दो बेशकीमती फाउंटेन पेन मिले थे। जवाहर लाल ने उनमें से एक पेन अपने पास रख लिया। इसके पीछे उनकी सोच थी कि उनके पिता को एक ही वक्त में दो पेन की जरूरत कभी नहीं पड़ेगी। जब मोतीलाल नेहरू को पता चला कि उनका एक पेन अपनी जगह पर नहीं है तो उन्होंने उसकी तलाश कराई। इससे वो इतने नाराज थे कि जवाहर लाल उनके सामने जाकर अपनी गलती स्वीकारने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। काफी खोजबीन के बाद जब वह पेन जवाहर लाल के पास से बरामद हुआ तो उनके पिता ने उनकी पिटाई की। पिटाई से उनके पूरे शरीर पर दवा लगानी पड़ी थी। इसके बाद वह पिता से काफी डरने लगे थे।

पिता को बिना बताए घोड़ा लेकर घर से निकले थे नेहरू, हो गए थे घायल 

जवाहर लाल नेहरू भी अपने बचपन में दूसरे बच्चों की ही तरह से थे, वो भी शरारतें किया करते थे। जैसे आजकल के बच्चे साइकल, बाइक या अन्य चीजें अपने परिवार में किसी को बिना बताए लेकर चले जाते हैं उसी तरह से एक बार वो भी अपने पिता का घोड़ा बिना बताए हुए लेकर चले गए थे। वह अपने घर आनंद भवन में पिता के अरबी घोड़े की सवारी कर रहे थे। सब लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे। इसी दौरान वो घोड़ा लेकर घर से बाहर निकल गए, किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया। थोड़ी देर बाद घोड़ा अकेला वापस आनंद भवन लौट आया, लेकिन जवाहर लाल नेहरू उस पर नहीं थे। इसके बाद पूरे शहर में उनकी खोजबीन शुरू हुई। पिता मोतीलाल भी अपने बेटे को खोजने के लिए निकले हुए थे, इतेफाक से पिता मोतीलाल ने खुद ही अपने बेटे जवाहर लाल को एक सड़क किनारे पड़ा देखा, उन्हें चोट लगी हुई थी और वह धीरे-धीरे घर की तरफ लौट रहे थे। पूछने पर पता चला कि घर से बाहर निकलने के बाद वह घोड़े की पीठ से गिरकर घायल हो गए थे।

भरी सभा में नाराज हो गया था बच्चा 

चाचा नेहरू एक बार एक कार्यक्रम में शामिल होने गए थे। यहां एक बच्चे ने अपनी ऑटोग्राफ पुस्तिका उनके सामने रखते हुए कहा- साइन कर दीजिए। नेहरू जी बच्चे के अनुरोध को नकार नहीं सके और उन्होंने ऑटोग्राफ देकर बच्चे को पुस्तिका वापस कर दी। बच्चे ने उनका ऑटोग्राफ देखा लेकिन उस पर तारीख नहीं लिखी थी। बच्चे ने चाचा नेहरू से कहा कि आपने ऑटोग्राफ तो दे दिया मगर उसमें तारीख तो लिखी ही नहीं है। इतना सुनते ही चाचा नेहरू के मन में बच्चों जैसी शरारत आ गई। उन्होंने उस बच्चे से ऑटोग्राफ की पुस्तिका ली और उस पर तारीख लिखकर उसे लौटा दी।

ऑटोग्राफ देखकर बच्चे ने दिखाया था गुस्सा 

इस बार बच्चे को उनका ऑटोग्राफ और उसके साथ लिखी तारीख देखकर गुस्सा आ गया। उसने चाचा नेहरू से कहा कि आपने तो तारीख उर्दू के अंकों में लिख दी है। इस पर चाचा नेहरू ने मजाक भरे लहजे में बच्चे से कहा कि भाई आपने पहले अंग्रेजी में साइन करने को कहा तो मैंने साइन कर दिए। फिर आपने उर्दू में तारीख लिखने को कहा तो मैंने उर्दू में तारीख डाल दी। चाचा नेहरू का ये जवाब सुनकर वहां मौजूद सभी लोग हंस पड़े। बच्चा भी समझ गया कि चाचा नेहरू उससे मजाक कर रहे हैं और उसका गुस्सा तुरंत शांत हो गया। वह देश को लेकर जितने गंभीर थे, बच्चों के साथ उतने ही बचपने और हंसी-मजाक से रहते थे।

उनका बचपन खुद भी एक प्रेरणा है 

पंडित जवाहर लाल नेहरू का बचपन खुद दूसरे बच्चों और लोगों के लिए एक प्रेरणास्रोत रहा है। इसका आपको एक किस्सा बताते हैं। ये बात उन दिनों की है जब पंडित जवाहर लाल नेहरू स्कूल में पढ़ाई करते थे। एक दिन सुबह वह अपने स्कूल के जूतों पर पॉलिश कर रहे थे। इसी दौरान उनके पिता पंडित मोतीलाल नेहरू ने उन्हें जूतों में पॉलिश करते हुए देख लिया। उन्होंने कहा कि तुम ये क्या कर रहे हो। जूतों में पॉलिश के लिए तुम नौकरों से कह सकते थे। इस पर उन्होंने अपने पिता से कहा कि जो काम मैं खुद कर सकता हूं, उसे नौकरों से क्यों कराऊं? उनके इस जवाब से पंडित मोतीलाल नेहरू बहुत प्रभावित हुए।

]]>